रघुनाथ भगवान श्रीराम की कृपा से क्या नहीं हो
सकता है ? अर्थात सब कुछ हो सकता है । साधु-संत और सदग्रंथ कहते हैं, ऐसा बताते
हैं कि रघुनाथ जी की कृपा सब पर होती है, हो सकती है लेकिन दीन-हीनों पे विशेष
कृपा होती है ।
रामजी
की कृपा से मच्छर भी व्रह्मा बन सकता है । ऐसी कृपा है रामजी की । असंभव भी संभव
हो जाता है ।
गोस्वामी तुलसीदास जी को पहले कोई पूछता नहीं था । लेकिन जब रघुनाथजी की कृपा हो गई तो तुलसीदास जी की महिमा बहुत बढ़ गई । जंगल में एक पौधा होता है जिसे वन तुलसी कहा जाता है । इसे कोई नहीं पूछता । और एक तुलसी का पौधा होता है जिसकी पूजा की जाती है । इसको लोग घर में लगाते हैं । भगवान की पूजा में भी इसका प्रयोग होता है । भगवान को भोग भी तुलसी दल-पत्र के साथ ही लगाया जाता है ।
कितना अंतर है वन तुलसी और तुलसी में । तुलसी दास
जी कहते हैं कि पहले मैं वन तुलसी जैसा था लेकिन जब रघुनाथजी की कृपा हो गई तो मैं
वन तुलसी से तुलसी-तुलसीदास बन गया-
कृपा भई रघुनाथ की तुलसी तुलसीदास ।
वानर-भालू को विकारी माना जाता था । इनका सुमिरन,
इनका नाम लेना भी अशुभ माना जाता था- ‘अशुभ होइ जिनके सुमिरेते वानर
भालु-विकारी’। लेकिन जब से राम जी कृपा हुई वानर-भालू भी पूजनीय हो गए,
मंगलकारी हो गए-‘सब भए मंगलकारी’ ।
साधु-संत का जो सम्मान होता है उसके पीछे रघुनाथ
जी की कृपा ही होती है । इतना ही नहीं किसी भी को जो बड़ाई मिलती है वो भी रघुनाथ
जी की कृपा से ही मिलती है । वो जाने या न जाने, माने या न माने यह बात दूसरी है ।
राम जी करुणा की मूरत हैं । उनकी करुणा-कृपा की जरूरत है किसे नहीं होगी । मुझे भी उनकी कृपा करुणा की जरूरत है । जिस पर किसी की कृपा-करुणा नहीं होती, उस पर रघुनाथ जी की विशेष कृपा-करुणा होती है ।
मुझे रघुनाथ की कृपा
की जरूरत है ।
सियावर राम दया के धाम
करुणा की मूरत हैं ।।
रघुनाथ जी ही ऐसे हैं जो अपनी ओर से खोजकर कृपा
करते हैं । बस दीन दिखा नहीं की रामजी की कृपा हो गई । रामजी की कृपा के लिए दीनता
विशेष पात्रता है-
खोजि-खोजि के दीन उधारेउ
दीनन दिहेउ बड़ाई ।
दीनबंधु रघुनाथ दयानिधि
कृपा कहाँ विसराई ।।
एक आस विश्वास तुम्हारो
करुणाकर रघुराई ।
बम संबल अवलंब हमारो दीनन
को सुखदाई ।।
देर भई प्रभु दिन-दिन
बीते सुधि अजहूँ नहि आई ।
दीन संतोष बेर नहिं कीजे गुनगन
निज चित लाई ।।
।। जय श्रीराम ।।