सनातन धर्म में चार आश्रम कहे गए हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ
और सन्यास । इनमें से गृहस्थाश्रम एक प्रमुख और महत्वपूर्ण आश्रम माना जाता है ।
सनातन धर्म में संग्रह
को दोष माना गया है । लेकिन कई लोग इस बात को नहीं समझते हैं कि जो लोग
त्यागी-वैरागी अथवा सन्यासी हैं उनके लिए संग्रह दोष होता है । इन्हें संग्रह से
बचना चाहिए । कई त्यागी-सन्यासी ऐसे होते भी हैं जो रात में जब सोते हैं तो कमंडल
में बचा हुआ जल भी सुबह के लिए नहीं रखते अर्थात छोटी से छोटी चीज का भी संग्रह
नहीं करते हैं ।
एक लोग कथा कहते हुए
कह रहे थे कि अभी आप के यहाँ कोई माँगने आएगा तो जो लोग अपना हार आदि भी दे
देंगे हाथ उठाओ । देखना है कि किसकी-किसकी आसक्ति हार में है । एक दो लोगों ने हाथ उठाया । एक स्त्री
बहुत संकोच करते हुए दुखी मन से बाद में बोली महाराज जी मैंने हाथ इसलिए नहीं
उठाया क्योंकि मेरे पास हार नहीं है । वे बोले उठाना चाहिए था । इनका मानना रहा
होगा कि हार न सही कुछ गहने तो होंगे ही ।
यहाँ यह ध्यान देने वाली
बात है कि यदि किसी के पास एक हार है और वह उसे अपनी बेटी अथवा बहू को देने के लिए
रखा है । तो इसमें क्या समस्या है ? जिसके पास बहुत अधिक है वह हाथ भी उठाये और किसी
को दे भी दे तो इसमें भी कोई समस्या नहीं है ।
अपने हक का जो है, जो
अनीति पूर्वक नहीं प्राप्त किया गया है और जिसका आगे भविष्य में जरूरत है ऐसे धन का संग्रह दोष नहीं
है । गृहस्थ यदि धन का संग्रह नहीं करेगा तो आवश्यकता पड़ने पर किसी बीमारी की
अवस्था में, बच्चों की पढ़ाई के लिए, व्याह आदि के लिए धन कहाँ से लाएगा ?
इतना ही नहीं ग्रंथों
में गृहस्थों को अन्न का संग्रह करके रखने को, अचार आदि बनाकर संग्रह करके रखने के
लिए कहा गया है ।
इस प्रकार गृहस्थों
के लिए भविष्य की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए धर्म पूर्वक कमाए हुए धन आदि का
संग्रह दोष नहीं माना गया है । जबकि
सन्यासियों के लिए, त्यागी और वैरागियों के लिए संग्रह दोष माना गया है ।
।। जय श्रीराम ।।