रामानंद सागर के रामायण धारावाहिक को रामायण पर बने धारावाहिकों में बहुत अच्छा स्थान प्राप्त है । और यह एक बहुत अच्छा प्रयास था । लेकिन इसमें कुछ गलतियाँ ऐसी हैं जिनसे बचा जा सकता था ।
रामानंद
सागर जी ने अपने रामायण धारावाहिक में अनेकों संदर्भ ग्रंथ का उल्लेख किया है । यह
वैसा ही लगता है जैसे आजकल कुछ शोध कर्ता अपने शोध में बहुत संदर्भ दे देते हैं लेकिन
उनमें से कुछ संदर्भो को ही वे ठीक से पढ़ते अथवा प्रयोग करते हैं ।
रामानंद
सागर जी ने कहा है कि उनके धारावाहिक का मुख्य स्रोत संस्कृत में रचित श्रीवाल्मीकि
रामायण जी हैं और दूसरा मुख्य स्रोत अवधी में रचित श्रीरामचरितमानस जी हैं । और दो
ग्रंथ अन्य भाषाओं के हैं । इन चार ग्रंथों के अतिरिक्त उन्होंने बहुत लंबी सूची
दे रखी है । लेकिन ठीक से किसी का पालन नहीं किया ।
हम यहाँ पर कुछ बातों का ही उल्लेख कर रहे हैं ।
श्रीवाल्मीकि रामायण के अनुसार जब राम जी के प्रगट
होने का समय आ जाता है तो आकाश में देवता लोग आकर भगवान की स्तुति करते हैं,
अप्सराएँ नृत्य करती हैं, गंधर्व गायन करते हैं । बाजे बजते हैं । आकाश से फूलों
की वर्षा होती है । लेकिन यह सब दिखाना उन्होंने जरूरी नहीं समझा । रामजी के जन्म
के समय देवता लोग स्तुति करते हैं इस बात का उल्लेख श्रीरामचरितमानस जी में भी है ।
लेकिन दोनों प्रमुख स्रोतों को नकार कर बहुत ही साधारण तरीके से जैसे आम राजकुमार
का जन्म हो, बिल्कुल वैसे दिखा दिया ।
जयंत को
दंड देना रामायण की बहुत बड़ी घटना है । इसका उल्लेख श्रीवाल्मीकि रामायण और
श्रीरामचरितमानस दोनों में है । लेकिन इसे भी नजरंदाज कर दिया गया । जयंत देवराज इंद्र
का पुत्र है । कौए के वेश में आकर चोंच से सीताजी के पैर में प्रहार करता है ।
रामजी विश्राम कर रहे होते हैं । पास में पड़ी सींक (घास) का ही धनुष और वाण बनाकर
वाण छोड़ देते हैं । जयंत का अभिमान चूर्ण हो जाता है । सहायता के लिए अपने पिता
देवराज इंद्र के पास जाता है लेकिन वे भी उसकी रक्षा नहीं कर पाते । शिव लोक,
व्रह्म लोक हर जगह जाता है लेकिन राम द्रोही की रक्षा कौन कर सकता है ? अन्ततः
नारदजी की प्रेरणा से रामजी की शरण में आता है तब उसकी प्राण रक्षा होती है । इस
घटना को भी नहीं दिखाया गया । जबकि यह बहुत ही महत्वपूर्ण घटना है ।
रामजी बड़े कृतज्ञ हैं । इसलिए युद्ध में मारे
गए वानरों और भालुओं को वे छोड़कर नहीं आते । और युद्ध में मरे हुए वानरों
और भालुओं को जीवित कर दिया जाता है । इसका वर्णन श्रीरामचरितमानस जी में है ।
इसका वर्णन अध्यात्म रामायण और व्रह्मांड पुराण में भी है । पद्म पुराण में भी है ।
लेकिन इस महत्वपूर्ण घटना
को नहीं दिखाया गया । जबकि पुष्प वाटिका प्रसंग जो प्रमुख चार स्रोतों में से केवल
श्रीरामचरितमानसजी में है उसे बहुत विस्तार में दिखाया गया । और फ़िल्मी ढ़ंग में प्रस्तुत
किया गया । इसे भी न दिखाते ।
सबसे बड़ी भूल शबरी जी के प्रसंग में जान-बूझकर
किया गया । यहाँ एक प्रश्न उठता है कि क्या रामानंद सागर और उनकी टीम गोस्वामी
तुलसीदासजी और वेद व्यास जी से भी बड़ी विद्द्वता पूर्ण और भक्त थी ? वेद व्यास जी
ने ही सभी पुराणों की, उपनिषदों की रचना की है और वेदों के विभाग किए हैं ।
श्रीरामचरितमानसजी के अनुसार राम जी शबरी जी
को नवधा भक्ति का उपदेश देते हैं । रामजी सामान्यतया अपने व्रह्म स्वरूप को प्रगट नहीं होने देते थे अपने
वास्तविक स्वरूप को छुपाते थे । लेकिन जो उच्च कोटि के समर्पित भक्त होते थे उनके
सामने यह भेद खुल जाता था । वहाँ यह छुपाव नहीं चलता था । इसका वर्णन गोस्वामी
तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस में किया और वेदव्यासजी ने व्रह्मांड पुराण और अध्यात्म रामायण में किया । लेकिन रामानंद सागर ने इस प्रसंग में श्रीरामचरितमानस
जी के चौपाइयों के माध्यम से नवधा भक्ति का उपदेश प्रस्तुत कराया लेकिन चौपाइयों
के साथ छेड़छाड़ करने की धृष्टता की । उदाहरण के लिए- दूसर रति मम कथा प्रसंगा
की जगह दूसर रति प्रभु कथा प्रसंगा बुलवाया । इसी तरीके से आगे के चौपाइयों
को बदलने की धृष्टता की ।
नवधा भक्ति का जैसा वर्णन गोस्वामी
तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस जी में किया है ठीक वैसा ही वर्णन अध्यात्म रामायण
में वेद व्यास जी ने किया है ।
चौपाइयों में बदलाव करके ये लोग क्या सिद्ध
करना चाहते थे ? इस प्रसंग में श्रीरामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास, अध्यात्म
रामायण और वेदव्यास जी की जान-बूझकर अवहेलना की गई है ।
ऐसे और प्रसंग हैं । लेकिन मुझे सबसे गलत नवधा
भक्ति के उपदेश में छेड़छाड़ करना लगा ।
।। जयश्रीसीताराम ।।