सीतानाथ रघुनाथ पाप ताप हारी । द्रवउ रघुवंशमणि धनुष वाण धारी ।। -विनयावली

एको देवो रामचन्द्रो व्रतमेकं तदर्चनम । मंत्रोअप्येकश्च तत्नाम शास्त्रं तद्ध्येव तत्स्तुतिः ।। -पद्मपुराण ।


दीनबंधु तुहीं एक मोर गोहारी । देखउ रघुनाथ अब ओर हमारी ।। -विनयावली ।।

रविवार, 14 अप्रैल 2024

श्रीराम जन्म महोत्सव- प्रगटे राम धनुधारी, अवध में उत्सव है भारी

 

अयोध्या पुरी में बहुत बड़ा उत्सव हो रहा हैं क्योंकि अयोध्याजी में धनुषधारी रामजी प्रगट हुए हैं -


प्रगटे राम धनुधारी, अवध में उत्सव है भारी ।

सब कोउ नाचै सब कोउ गावै, आनंद अमित थाह को पावै ।

जन्में हैं सुत चारी । अवध. ।।

दशरथ मोद बरनि नहिं जावै, मणि माणिक गज बाजि लुटावैं ।

हर्षित सब नर नारी । अवध. ।।

सुर नर मुनि दर्शन को धाये, देखत सब जिमि चित्र बनाये ।

अनुपम रूप निहारी । अवध. ।।

स्मितवक्त्र राम छवि सोहै, सचर अचर अस कोउ नहिं मोहै ।

देखत ओर हमारी । अवध. ।।

दीन संतोष के नाथ सलोने, मत करना कोई जादू टोने ।

अतुलित छवि बलिहारी । अवध. ।।

 

।। श्रीराम लला की जय ।।

बुधवार, 10 अप्रैल 2024

दुर्गाजी और सीताजी में अभेद- जब दुर्गा जी ने सीताजी बनकर दर्शन दिया

 

एक बार भगवान श्रीराम अपने बंधु-बांधवों तथा सेना के साथ वन-विहार के लिए निकले । वन में राम जी एक मृग का पीछा करने लगे । पीछा करते-करते घोड़े पर सवार राम जी एक वन से दूसरे, दूसरे से तीसरे वन में जाते-जाते एक घनघोर वन में जा पहुँचे । लक्ष्मण आदि और सेना पीछे छूट गई । रामजी ने मृग पर निशाना साधा । तब रामजी उस स्थान पर थे जहाँ जल का नामोनिशान नहीं था ।

  रामजी को भूँख और प्यास लग गई थी । एक वृक्ष के नीचे बैठकर विश्राम करने लगे । वहाँ एक शवरी ने रामजी को देखा । उसने रामजी को प्रणाम किया । रामजी ने शवरी से सारी बात बताई ।

 

  शवरी ने कहा कि यहाँ से थोड़ी दूर पर एक सरोवर है और उसके किनारे एक दुर्गाजी का मंदिर है । आज अनेकों स्त्रियाँ वहाँ दुर्गाजी का पूजन करने आयेगीं । आप मेरे साथ वहाँ चलें वहाँ विविध प्रकार के व्यंजनों से आपको संतुष्टि प्राप्त हो जायेगी ।

   रामजी बोले मैं लक्ष्मण आदि की यहाँ प्रतीक्षा करूँगा आप उन स्त्रियों से मेरे बारे में बता देना । उसने वहाँ जाकर सारी बात बता दिया । वे स्त्रियाँ बहुत प्रसन्न हुईं कि आज उन्हें रामजी का दर्शन होने वाला है । वे बोलीं कि दुर्गाजी की पूजा करके और नैवेद्य अर्पित करके हम लोग चलेंगी ।

 

 मंदिर में चार दरवाजे थे चारों बंद हो गए तो वे स्त्रियाँ एक दरवाजे के पास बैठ गईं । और मंदिर के भीतर से आती हुई ध्वनि सुनाई पड़ी ।

 

मंदिर के अंदर जो दुर्गा है, वह मैं ही सीता रूप में हूँ और श्रीराम साक्षात महेश्वर हैं । अतः आप लोग सबसे पहले मेरे स्वामी जगत्प्रभु श्रीराम को  नैवेद्य के लिए लाए गए व्यंजनों से संतुष्ट करो और फिर शेष भाग को ग्रहण कर मैं संतुष्ट हो जाऊँगी ।

 

 स्त्रियाँ वहाँ गईं । रामजी को देवी जी की बात बताई । रामजी ने कहा यदि देवी ने ऐसा कहा है तो उनसे जाकर बोलो कि वे सीता के रूप में मेरे समीप आयें ।

 

  एक स्त्री ने राम जी का संदेश दुर्गाजी को सुनाया और दुर्गाजी  सीताजी बनकर आईं और राम जी के समीप बैठ गईं । फिर रामजी ने अपने वाण से पृथ्वी से जल प्रकट करके मध्यांह संध्या किया और भोजन के लिए बैठने वाले थे कि उसी समय लक्ष्मण आदि लव-कुश सहित सेना भी आ गई । वहाँ सीताजी को बैठे देख सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ । तब शवरी ने सारी बातें सबको बता दिया और फिर रामजी ने लक्ष्मण आदि और सेना और देवी सीता के साथ स्त्रियों द्वारा लाए गए व्यंजनों का भोग लगाया । और स्त्रियों से कहा आप लोगों को जो अभीष्ट हो वह वरदान माँग लो ।

 

   रामजी ने उन स्त्रियों को कई वरदान दिए । और यह भी वरदान दिया कि अगले जन्म द्वापर में तुम लोग व्राह्मणों की पत्नियाँ बनोगी । और मैं कृष्ण रूप में तुम लोगों को दर्शन दूँगा और वन में यज्ञ  के प्रसंग में तुम लोगों से अन्न की याचना करूगाँ । आदि ।

 

   फिर राम जी ने दुर्गाजी से जो सीताजी के रूप में थीं बोले कि अब आप सुखपूर्वक अपने स्थान को प्रस्थान करें । फिर सब लोग वापस चली गईं और मंदिर में स्त्रियों ने दुर्गाजी का पूजन किया । और रामजी लक्ष्मण आदि के साथ अयोध्या वापस आ गए ।

 

।। जय श्रीदुर्गा जी ।।

रविवार, 7 अप्रैल 2024

श्रीराम नवमी विशेष- प्रगटे राम रघुवीरा, अवधपुर बीथिन में भीरा

 अयोध्यापुरी और अयोध्या जी की गलियों में बड़ी भारी भीड़ है क्योंकि रघुवीर राम लला जी प्रगट हुए हैं और इस उपलक्ष में दिव्य महा महोत्सव मनाया जा रहा है-


प्रगटे राम रघुवीरा, अवधपुर बीथिन में भीरा ।

पावन अवधपुरी अति सोहै, सरजू की कल-कल मन मोहै ।।

भै अति निर्मल नीरा । अवधपुर. ।।

चारों भ्रात महा छवि सोहै, देखत रूप चराचर मोहै ।

बहै आनंद समीरा । अवधपुर. ।।

भूपति मगन, मगन सब रानी, सब नर नारि मनोहर वानी ।

राम रघुकुल के हीरा । अवधपुर. ।।

नारद आदि शंभु चतुरानन, निरखैं रामलला जी को आनन ।

उडै गुलाल अबीरा । अवधपुर . ।।

जाचक जन जाचैं सोइ पावैं, नाचैं गावैं देव मनावैं ।

कुशल रहैं चारों वीरा । अवधपुर. ।।

दीन संतोष रघुनाथ भरोसे, अनाथ के नाथ सदा प्रभु पोसे ।

नाथ हरो जन पीरा ।। अवधपुर. ।।

 

।। रामलला की जय ।।

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

श्रीराम नवमी को भोजन वर्जित है

 

श्रीराम नवमी अर्थात चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को भोजन करना वर्जित है । इसलिए सभी को श्रीराम नवमी को उपवास-व्रत रखना चाहिए । यह वर्णन सनातन धर्म के कई ग्रंथों में मिलता है ।

 

  अध्यात्म रामायण में निर्जल व्रत करने को कहा गया है । लेकिन कम से कम अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार फलाहार करके व्रत रखना चाहिए । लेकिन भोजन नहीं करना चाहिए ऐसा ग्रंथ कहते हैं ।

 

  इतना ही नहीं ग्रंथों के अनुसार प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को भोजन नहीं करना चाहिए और व्रत रखना चाहिए । ऐसा वर्णन मिलता है कि जैसे एकादशी व्रत करना चाहिए वैसे ही प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को व्रत करना चाहिए । प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को भोजन वर्जित है ।

 

  इस प्रकार भगवान श्रीराम के भक्तों को केवल राम नवमी को ही नहीं बल्कि प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को व्रत रखना चाहिए । सामान्यतया ग्रंथों में बालक-वृद्धि और रोगी आदि को व्रत-उपवास से छूट दी गई है । लेकिन अन्य सभी को व्रत रखना चाहिए 

 

 ।। शुक्ल पक्ष की नवमी व्रत की जय ।।

सोमवार, 1 अप्रैल 2024

रामजी डूबते हुए को उबार लेते हैं और अनेकों जन्मों की बिगड़ी को भी बना देते हैं

 हे दीन जनों के दुख को दूर करने वाले और खर नामक राक्षस को अपने परम धाम भेजने वाले भगवान श्रीराम आप मुझ दीन की भी सुधि लीजिए । साधू, संत और सदग्रंथ बताते हैं कि आप को दीन हीन मलीन भाते हैं अर्थात आप इनसे दूरी नहीं बनाते हैं बल्कि अपना लेते हैं । और डूबते हुए को उबार लेते हैं । आप दीन मलीन को आपने पास-अपने धाम में बसा लेते हैं । हे नाथ आप अनेकों जन्मों की बिगड़ी को भी बना देते हैं । यह बात प्रसिद्ध है, छुपी हुई नहीं है क्योंकि ऐसा देवता और मुनि पुकार कर कह रहे हैं । इसलिए हे खरारि ! आप मेरी भी सुधि लीजिए -


दीनन के दुख हारी, हमार सुधि लीजै खरारी ।

साधु संत सदग्रंथ बतावत, दीन मलीन राम को भावत ।

डूबत लेहिं उबारी । हमार सुधि. ।।

दीन मलीन को राम बसावत, बिगड़ी जनम की नाथ बनावत ।

सुर मुनि कहत पुकारी । हमार सुधि. ।।

नीच निषाद को कंठ लगाए, केवट से पद कंज धुलाए ।

शवरी अहिल्या तारी । हमार सुधि. ।।

कोल किरात भील अपनाए, वानर भालू सखा बनाए ।

गीध को दिहेउ उधारी । हमार सुधि. ।।

जो जन और ठौर नहिं पाए, आए सुनि गुन विरद बुलाए ।

राखेउ सब दुख टारी । हमार सुधि. ।।

दीन संतोष नहीं मुख मोरेउ, दीन मलीन ओर निज हेरेउ ।

रघुवर विरद संभारी । हमार सुधि. ।।

 

।। खरारी भगवान श्रीराम की जय ।।

बुधवार, 27 मार्च 2024

जन मन को अतिसुखवाला है, मेरे राम का रूप निराला है

 

जन मन को अतिसुखवाला है, मेरे राम का रूप निराला है । मेरे. ।।

सिर पे है उनके मणि का मुकुट, उर पे वैजंतीमाला है ।। मेरे. ।।

कर कमलों में है धनुष वाण, पीताम्बर द्युति वाला है ।। मेरे. ।।

नील जलद सा प्रभु का वदन, जिमि घिरी सावन घन माला है ।। मेरे. ।।

है जलज नयन प्रलम्ब बाहु, ओंठ बिम्बा के रंग वाला है ।। मेरे. ।।

अनुपम अनूप प्रभु का स्वरूप, आभा रवि कोटि उजाला है । मेरे. ।।

सारद शेष महेश बखानत, निगम नेति कहि डाला है । मेरे. ।।

संतोष राम छवि कौन बखानै, मन मधुकर मतवाला है । मेरे. ।।

 

।। जय श्रीराम ।।


गुरुवार, 21 मार्च 2024

दीनों के नाथ रघुनाथ रामजी नाता न तोरैं

 

दीनों के नाथ रघुनाथ रामजी नाता न तोरैं ।

सुर नर मुनि सदग्रंथ बतावैं, दीन मलीन रामजी को भावैं ।

निज चरनन से जोरैं ।। रामजी नाता न तोरैं ।।

अवध चले प्रभु वन को आए, दीनन बिच निज वास बनाए ।

वन वन दीनन हेरैं ।। रामजी नाता न तोरैं ।।

नारद आदि महामुनि गाए । रामायण शत कोटि बताए ।

दीन से मुख नहिं मोरैं ।। रामजी नाता न तोरैं ।।

दीन संतोष के राम रखैया, सुंदर कर सर चाप धरैया ।

अपनाए निज ओरैं । रामजी नाता न तोरैं ।।

 

।। जय श्रीराम ।।

शनिवार, 9 मार्च 2024

अद्भुत भक्तवत्सलता- एक छोटे से वानर को राम कृपा से जीवन दान

 

रामजी की सेना में असंख्य वानर और भालू थे । सुंदर काण्ड में कहा गया है- ‘पदम अठारह यूथप बंदर’ अर्थात रामजी की सेना में सेनापतियों की संख्या ही अठारह पद्म थी । ऐसे में रामजी की सेना में वानरों और भालुओं की संख्या की गणना कर पाना असंभव ही है । इसलिए ही भगवान शंकर माता पार्वती जी से कहते हैं कि हे उमा राम जी की सेना को मैंने देखा है । लेकिन मेरी समझ से जो उनकी सेना की गणना करना चाहे तो वह मूर्ख ही कहा जाएगा । अर्थात गणना कर पाना असंभव सा है-

वानर कटक उमा मैं देखा । सो मूरख जो करन चह लेखा ।।

 

   कितनी अद्भुत बात है कि इतनी बड़ी सेना होने के बावजूद राम जी को अपने एक-एक वानर भालू की परवाह रहती है । रामजी सबका कुशल समाचार भी पूछते रहते है । ऐसी है भगवान श्रीराम की भक्तवत्सलता-

 

अस कपि एक न सेना माही । राम कुशल जेहिं पूछी नाहीं ।।

अपनी अद्भुत भक्तवत्सलता के चलते लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम ने अमृत वर्षा द्वारा मरे हुए वानरों और भालुओं को जीवित कर दिया । इससे भगवान राम का एक नाम ‘मृतवानरजीवनः अर्थात मरे हुए वानरों को जीवन प्रदान करने वाले’ पड़ गया ।

मरे हुए वानर-भालू जीवित होकर प्रसन्नचित्त से सबसे मिले । राम जी ने अपनी सारी सेना को निहारा और हनुमानजी से बोले हनुमान ! सेना में एक बंदर नहीं है । ऐसा क्यों है ? वह कहाँ गया ?

तब हनुमानजी बोले भगवन उस वानर को कुम्भकर्ण ने खा लिया था । यदि उसकी कोई हड्डी, बाल अथवा खाल कुछ भी बचा होता तो अमृत वर्षा से वो भी जिन्दा हो जाता । लेकिन उसके शरीर का कोई भी अवशेष बचा ही नहीं है । इसलिए वह जीवित नहीं हो सका और सेना में एक वानर कम है ।

 

राम जी को छोटे से छोटे वानर-भालू की भी परवाह है । वे उसके बिना लंका से वापस नहीं जा सकते थे । जो रामजी की सेना में सम्मिलित हुआ । रामजी की ओर से लड़ा उसे छोड़कर रामजी चले जाएँ यह रामजी को स्वीकार्य नहीं है ।

 

  अमृत वर्षा से तो वह जी नहीं सकता था । इसलिए रामजी ने यमराज की ओर देखा । यमराज भगवान श्रीराम का भाव समझ गए । यमराज ने डरते हुए उस वानर को लाकर रामजी के सम्मुख खड़ा कर दिया । धन्य हैं रामजी और उनकी भक्तवत्सलता ।

 

 । भगवान श्रीराम की भक्तवत्सलता की जय 

शुक्रवार, 8 मार्च 2024

शिव शंकर भोलेनाथ उमापति देखउ ओर हमारी

 ।। श्रीउमामहेश्वराय नमः ।।


शिव शंकर भोलेनाथ उमापति देखउ ओर हमारी ।

वेद पुराण साधु सुर गावत महिमा अमित तुम्हारी ।।१।।

दीनदयाल दयाकर शंभू भाल बाल विधु धारी ।

सर्प राज शिव कंठ बिराजै सिर पे गंगा न्यारी ।।२।।

कबहुँ नहीं मुख मोरत शंकर द्वारे देखि भिखारी ।

दानि शिरोमणि तिहुँपुर जानत कीरति जग उजियारी ।।३।।

गंगाधर गिरजेश त्रिलोचन देवाधिदेव त्रिपुरारी ।

काशीश कैलास निवासी भव हर शरणागत भय हारी ।।४।।

दीन मलीन हीन दुखहर्ता महादेव उपकारी ।

दीन संतोष नाथ सुधि लीजे दीजे भगति खरारी ।।५।।

 

 ।। हर हर महादेव ।।

शुक्रवार, 1 मार्च 2024

राम राघव बड़े माहिर बिगड़ी को बनाने में

 

। श्रीरामचन्द्राय नमः 


राम राघव बड़े माहिर बिगड़ी को बनाने में ।

नहीं कोई कहीं दूजा रघुवर सा जमाने में ।।१।।

राम राघव बड़े माहिर गिरों को उठाने में ।

संकट हो कोई बांधा कुअंक को मिटाने में ।।२।।

राम राघव बड़े माहिर उजरे को बसाने में ।

दूजा बल नहीं जिनके हारे को जिताने में ।।३।।

राम राघव बड़े माहिर जन लाज को बचाने में 

भृगुनाथ जैसे ऋषी के गर्व को भगाने में ।४

राम राघव बड़े माहिर रूठे को मनाने में

पूर्वभाषी मृदुभाषी मितभाषी अधिक समझाने में ।।५।।

राम राघव बड़े माहिर निज चरित से सिखाने में । 

दीन हीनों से घिरे रहते प्रभुता को छिपाने में ।६

राम राघव बड़े माहिर विरद को बढ़ाने में ।

बोल को अचल रघुवर पाहन को तराने में ।।७।।

राम राघव बड़े माहिर नेह को निभाने में ।

कपि केवट भील भालू को अपना बनाने में ।।८।।

राम राघव बड़े माहिर पार भव से लगाने में ।

 करुणानिधि बड़ी करुणा डूबते को बचाने में ।।९।।

राम राघव बड़े माहिर दीनों को न भुलाने में ।

दीन संतोष दीनता काफी रघुवर को रिझाने में ।।१०।।

 

।। राम राघव की जय ।।

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024

रघुकुलभूषण दशरथनन्दन कौशल्यानन्दवर्धन राम

 

। श्रीरामभद्राय नमः 


रघुकुलभूषण दशरथनन्दन कौशल्यानन्दवर्धन राम

दूषण रहित खर-दूषण मर्दन सुंदर तन घनश्याम ।।१।।

परम मनोहर हरि हर मनहर सीतापति श्रीराम

सुर नर मनुज दनुज मुनि मोहत सकललोक अभिराम ।।२।।

को नहिं जोहत राम कृपा को सुर नर मुनि अविराम 

दीनदयाल राम गुनगन बल मोते अवगुन धाम ।।३

दीन हीन निज कर प्रभु राखत जन मन पूरणकाम ।

दीन संतोष दुख तम हारो रविकुल रवि श्रीराम ।।४

 

। श्रीरामभद्र की जय 

शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

रामराज्य कब और कैसे आता है ?

 

जब तक संसार रहेगा लोग रामराज्य के लिए लालायित रहेंगे । रामराज्य की चर्चा करेंगे । राम राज्य चाहेंगे । और रामराज्य चाहना, रामराज्य के लिए प्रयास करना बहुत अच्छी बात है क्योंकि इसी बहाने देश-समाज में सुधार होगा ।

  राम राज्य में मनुष्यों को छोड़िये पशु-पक्षियों आदि अर्थात प्राणी मात्र के कल्याण की कामना और इसके लिए उपाय किया जाता है । जिससे संसार में सुख, संपदा, समता सभी के अधिकार की रक्षा और सबको सुरक्षा प्राप्त होती है । इसलिए हर कोई सुख-चैन से रहता है ।

  लेकिन जैसे कोई घर बनाना हो तो कुछ आधार भूत चीजों की जरूरत होती है । जैसे बिना नींव के घर नहीं बन सकता है । उसी प्रकार रामराज्य के लिए कुछ आधार भूत चीजों की जरूरत होती है । राम राज्य के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह है धर्म आधारित शासन व्यवस्था । धर्म आधारित शिक्षा व्यवस्था । और धर्म और न्याय से युक्त आदर्श राजा ।

 

  इसलिए राम राज्य करोड़ो वर्षों में केवल एक बार और वो भी त्रेता युग में तब आता है जव स्वयं भगवान श्रीराम राजा बनते हैं ।

 

  फिर भी प्रयास करने में कोई बुराई नहीं है क्योंकि रामराज्य के लिए प्रयास करने से भी मंगल होगा । श्रीरामचरितमानस जी के अनुसरण से राम राज्य की ओर बढ़ा जा सकता है-

भारतीय संस्कृति को मानस से जीवटता मिल जाती है ।

राम-राज्य की शुभ गाथा को मुक्त कंठ से गाती है ।।

न्याय शांति सुख समता वैभव राम राज्य की थाती है ।

राजधर्म है प्रजा रंजन सार यही बतलाती है ।। 


 श्रीरामचरितमानस जी में वर्णित राज धर्म, मानव धर्म आदि के पालन से ही राम राज्य आयेगा । और इसके लिए अन्य उपाय नहीं है ।


जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी । सो नृप अवसि नरक अधिकारी ।।

  

।। जय श्रीराम ।।

शनिवार, 20 जनवरी 2024

श्रीराम स्तुति

   ।। श्रीरामचन्द्राय नमः ।।

 

जय रघुवर जय राम धनुर्धर । सुंदर श्याम सुशील सियावर ।।

मंगल मूरति रूप मनोहर । सोहत सुंदर शारंग कर सर ।।

मंजु मराल बसत जन उर सर । मोहत साधु संत बिधि हरि हर ।।

चरण कमल जन मुनि मन मधुकर । तारन तरन होत चिंतन कर ।।

भरत लखन कपि आदिक अनुचर । सीताराम रूप सचराचर ।।

अगुन सगुन अज अमित अगोचर । अजर अमर सुखनिधि परमेश्वर ।।

ज्ञान विज्ञान सकल सदगुन घर । दीनदयाल प्रनत हित तत्पर ।।

पुरुष पुराण अनूप भूपवर । माया मानुष सोहत नरवर ।।

बानर भालु आदि बहु बनचर । दीनबंधु राखे सब निज कर ।।

दीन संतोष बसहु उर अंतर । परम उदार दीन आरति हर ।।

 

।। जय श्रीराम ।।

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बुधवार, 17 जनवरी 2024

रामराज्य लाने में गुरू वशिष्ठ की उचित शिक्षा और उपदेश का योगदान

 

रामराज्य में केवल मनुष्य मात्र का ही नहीं प्राणीमात्र का कल्याण होता है और सभी लोग सुखी और समपन्न होते हैं । दुख दरिद्रता आदि का अभाव होता है । इसलिए हर युग और हर काल में लोग रामराज्य के लिए लालायित रहते हैं ।

 

  लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि रामराज्य लाने में गुरू वशिष्ठ की उचित शिक्षा और उपदेश का बड़ा योगदान था । यदि गुरू वशिष्ठ जी उचित शिक्षा और उचित उपदेश न देते तो राम राज्य कभी नहीं आता । इस रहस्य को सभी को जानना और समझना चाहिए ।

 

   आजकल कलियुग में कई लोग ऐसा उपदेश देते हैं कि गुरू की बात को एक ही बार में मान लेना चाहिए । अर्थात जो गुरू ने कह दिया उसे मानना ही है ।  लोग ऐसा भी उपदेश देते हैं कि सारे शास्त्र एक तरफ और गुरू आज्ञा एक तरफ । यदि ऐसा ही उपदेश गुरू वशिष्ठ भी देते तो रामराज्य कभी नहीं आता । लेकिन उस समय कलियुग नहीं था तो ऐसा उपदेश नहीं दिया जाता था ।

 

  गुरू वशिष्ठ ऐसा उपदेश नहीं देते थे । स्वयं राम जी भी कहते थे कि मैं जो आपको बता रहा हूँ, आप से कह रहा हूँ वह अच्छी लगे आपको रुचे तो उसके अनुरूप कार्य कीजिए और उसमें यदि कोई बात नीति विरुद्ध हो तो मुझे बिना किसी भय के रोक दो, बता दो । लेकिन आजकल कलियुग है तो लोग शास्त्र को भी किनारे करने की बात करते हैं । 

 

   वशिष्ठ जी ने भरत जी से कहा कि राजा दशरथ ने अयोध्या का राज्य आपको दिया है । इसलिए आप राजा बनिये और अयोध्या और प्रजा का पालन कीजिए । माता कौशल्या ने भी कहा कि बेटा भरत गुरू जी की आज्ञा पथ्य है - ‘पूत पथ्य गुरु आयसु अहई’ । इसलिए इसका पालन कीजिए । सचिवों ने कहा कि जैसा गुरू जी कह रहे हैं आप अयोध्या का राज्य स्वीकार करके प्रजा का पालन कीजिए । लेकिन भरत जी ने कहा कि भले ही कैकेयी ने यह राज्य वरदान में मेरे लिए माँग लिया है । भले ही पिताजी ने अयोध्या का राज्य मुझे दिया है । लेकिन यह राज्य भैया राम का है । और मैं राजा बनने में असमर्थ हूँ । मुझे रामजी के चरणों में ही रहना है । मैं राजा बनने के लिए सर्वथा अयोग्य हूँ । मुझे रामजी के चरणों का दर्शन करने के लिए जाने हेतु आज्ञा और आशिर्वाद चाहिए न कि राजा बनने की ।

 

  अब यदि गुरू वशिष्ठ जी कलियुग वाला उपदेश दिए होते कि गुरू की आज्ञा एक ही बार में मान लेना है और सारे शास्त्र एक तरफ और गुरू आज्ञा एक तरफ तब तो भरत जी राजा बन जाते । और जब भरत राजा बन जाते तो रामजी अपने प्रिय और छोटे भाई भरत जी के स्थान पर फिर कभी राजा नहीं बनते ।

 

राम जी राजा नहीं बनते तो राम राज्य कभी नहीं आता । इस प्रकार गुरू वशिष्ठ जी की शिक्षा और उचित उपदेश का राम राज्य लाने में महती भूमिका है । इसके बिना राम राज्य नहीं आ सकता था ।

 

।। जय श्रीराम ।।

 

चित करो राम कहे ग्रंथन की । कीजे लाज विरद अरु पन की ।।

।। श्रीसीतारामाभ्याम नमः ।।

चित करो राम कहे ग्रंथन की । कीजे लाज विरद अरु पन की ।।

सुर मुनि साधु कहे गुनगन की । हारत भीर सदा दीनन की ।।

कूर कपूत सकल दुर्जन की । नहिं गति और छाँड़ि चरनन की ।।

सरन राम पद सब असरन की । सादर बाँह गहत निबरन की ।।

सार संभार राम दीनन की । करत सदा जोगवत जन मन की ।।

सुनत राम सबबिधि हीनन की । कोल किरात आदि बनरन की ।।

बिगत सकल गुन जदपि सुजन की । राखो लाज नाथ अब जन की ।।

दीन संतोष नहीं तन मन की । जप तप बल नहिं और जतन की ।।

मोरे आश राम चितवन की । पतितपावन अरु शील सदन की ।।

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।। जय रघुवर जय राम धनुर्धर ।।

।। श्रीसीतारामाभ्याम नमः ।।

जय रघुवर जय राम धनुर्धर । सुंदर श्याम सुशील सियावर ।।

मंगल मूरति रूप मनोहर । सोहत सुंदर शारंग कर सर ।।

मंजु मराल बसत जन उर सर । मोहत साधु संत बिधि हरि हर ।।

चरण कमल जन मुनि मन मधुकर । तारन तरन होत चिंतन कर ।।

भरत लखन कपि आदिक अनुचर । सीताराम रूप सचराचर ।।

अगुन सगुन अज अमित अगोचर । अजर अमर सुखनिधि परमेश्वर ।।

ज्ञान विज्ञान सकल सदगुन घर । दीनदयाल प्रनत हित तत्पर ।।

पुरुष पुराण अनूप भूपवर । माया मानुष सोहत नरवर ।।

बानर भालु आदि बहु बनचर । दीनबंधु राखे सब निज कर ।।

दीन संतोष बसहु उर अंतर । परम उदार दीन आरति हर ।।

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लोकप्रिय पोस्ट

कुछ पुरानी पोस्ट

।। गोस्वामी तुलसीदास जी का संदेश ।।

हे मनुष्यों भटकना छोड़ दीजिए तरह-तरह के कर्म, अधर्म और नाना मतों को त्याग दीजिए । क्योंकि ये सब केवल शोक और कष्ट देने वाले हैं । इनसे शोक दूर होने के बजाय और बढ़ता ही है । जीवन में ठीक से सुख-चैन नहीं मिलता और परलोक में भी शांति नहीं मिलती । इसलिए विश्वास करके भगवान श्रीराम जी के चरण कमलों से अनुराग कीजिए । इससे तुम्हारे सारे कष्ट अपने आप दूर हो जाएंगे-

नर बिबिध कर्म अधर्म बहु मत सोकप्रद सब त्यागहू ।

बिस्वास करि कह दास तुलसी राम पद अनुरागुहू ।।

राम जी का ही सुमिरन कीजिए । राम जी की ही यश गाथा को गाइए और हमेशा राम जी के ही गुण समूहों को सुनते रहिए-

रामहिं सुमिरिए गाइए रामहिं । संतत सुनिए राम गुनग्रामहिं ।।

।।जय सियाराम ।।

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विज्ञान का बीज

संसार में हर चीज का बीज (मूल कारण ) होता है । अर्थात संसार और सांसारिक चीजों का कोई न कोई उदगम होता है । सबका बीज से ही उत्पत्ति और आगे विकास होता है । विज्ञान का बीज मतलब मूल कारण क्या है ? विज्ञान का बीज कहाँ से आया ? विज्ञान का बीज किसने बनाया ? विज्ञान का बीज किसने दिया ? यह एक बहुत ही विचारणीय प्रश्न है । यहाँ पर हम लोग देंखेगे कि विज्ञान का बीज तो भगवान द्वारा ही इस संसार को उपलब्ध कराया गया है ।

बहुत से लोग समझते हैं कि विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के विरोधी हैं । लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है । इस बात को समझने के लिए सनातन धर्म के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान का अध्ययन जरूरी है । आधुनिक विज्ञान की वैसे तो बहुत सी शाखाएँ हैं । परंतु इनमें से भौतिक विज्ञान यानी Physics ही ऐसा है जो व्रह्मांड के उत्पत्ति और संरचना की अध्ययन करता है । भौतिकी कि दो शाखाएँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । इनमे से एक जनरल रिलेटिविटी (General Relativity) और दूसरी क्वांटम मेकेनिक्स (Quantum Mechanics) है ।

गणित को आधुनिक विज्ञान की माता कहा जाता है । गणित का हम लोगों के जीवन और विज्ञान के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण रोल है । इस बात को हमारे ऋषि-मुनि भी जानते थे । अधिक जानकारी के लिए इस ब्लॉग के ‘गणित और व्रह्मांड’ लेख को पढ़ सकते हैं । आधुनिक गणित (Modern Mathematics) समुन्द्र के समान विस्तृत है । फिर भी समुच्चय सिद्धांत (Set Theory), संख्या सिद्धांत (Number Theory), फलन और तर्क सिद्धांत (Theory of Functions and Logic), आंशिक और साधारण अवकल समीकरण (Partial and Ordinary Differential Equations) और बीजगणित तथा आधुनिक बीजगणित (Algebra and Modern Algebra) आदि बहुत ही उपयोगी शाखाएँ हैं ।

गणित के अभाव में आधुनिक विज्ञान (Modern Science) और टेक्नोलोजी (Technology) की कल्पना ही नहीं की जा सकती । गणित को विद्वान और वैज्ञानिक विज्ञान की माता कहते हैं । लेकिन गणित की माता कौन है ? गणित की उत्पत्ति का मूल कारण क्या है । गॉस (Gauss) नाम के एक बहुत बड़े गणितज्ञ हुए हैं । गॉस ने कहा था कि गणित विज्ञान की माता है और संख्या सिद्धांत गणित की माता है । अब प्रश्न यह है कि संख्या सिद्धांत का मूल क्या है ? गणितज्ञ संख्या सिद्धांत का मूल प्राकृतिक संख्याओं (Natural Numbers) को बताते हैं । इंही से अन्य संख्याओं का विकास और संख्या सिद्धांत का विकास और फिर विज्ञान का विकास हुआ है । इस बात को वैज्ञानिक और गणितज्ञ जानते हैं ।

जो चीज प्राकृतिक होती है, उस पर सबका बराबर अधिकार होता है । जैसे हवा, गंगा जल आदि । ठीक इसीप्रकार से प्राकृतिक संख्याओं पर केवल पढ़े लिखे मनुष्यों का ही अधिकार नहीं है । इस पर अनपढ़ लोगों का तथा साथ ही पशु-पक्षियों का भी अधिकार है । एक, दो, तीन आदि का किसे पता नहीं है । सब लोग गणना में इनका इस्तेमाल करते हैं ।

पशु-पक्षियों के पास भी गणना की योग्यता होती है । उदाहरण के लिए मान लीजिए एक बृक्ष पर किसी चिड़िया का घोसला है । मान लीजिए उसमें दस बच्चे हैं । अब यदि चिड़ियाँ के अनुपस्थिति में कोई एक बच्चे को गायब कर दे तो वापस आने पर चिड़ियाँ अशांत हो जाती है । इधर-उधर, आस-पास मँडराने और चिल्लाने लगती है । जबकि उसके सभी बच्चे एक जैसे होते हैं । फिर भी उसे पता चल जाता है कि एक बच्चा गायब हो गया है । चिड़ियाँ को एक दो लिखना या बोलना नहीं आता । लेकिन प्रकृति प्रदत्त गणना की योग्यता से उसे इसका भान होता है ।

अब प्रश्न यह है कि प्राकृतिक संख्याओं का मूल क्या है ? जैसा कि नाम से भी स्पष्ट है । इसका मूल प्रकृति है । भगवान हैं । इस बात को क्रोंकर (Kronecker) नामक गणितज्ञ ने इस प्रकार कहा है- ‘Natural numbers are God given bricks’. अर्थात ये ईश्वर की दी हुई इंटें हैं ।

जिस प्रकार ईंट से भवन का निर्माण हो जाता है । इसी प्रकार से प्राकृतिक संख्या रुपी ईंटों से संख्या सिद्धांत रुपी भवन खड़ा किया गया । इस प्रकार से गणित की माता का जन्म हुआ । जिससे गणित बनी । फिर गणित के बाद गणित से आज का विज्ञान बना । इस प्रकार हम देखते हैं कि विज्ञान का बीज तो राम जी के द्वारा ही इस संसार को मिला है । गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने भी कहा है-

‘धरम तड़ाग ज्ञान विज्ञाना । ए पंकज विकसे बिधि नाना’ ।।

।। जय श्रीसीताराम ।।

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प्रार्थना

हे राम प्रभू मेरे भगवान । दीन सहायक दयानिधान ।।

तुम सम तुम प्रभु नहि को आन । गाये जग तेरा गुनगान ।।

तुमको सम प्रभु मान अमान । औरों को देते तुम मान ।।

धारण करते हो धनु वान । रखते हो निज जन की आन ।।

जग पालक जग के तुम जान । तुम ही ज्ञान और विज्ञान ।।

तुम सम नहि कोउ महिमावान । शिव अज नारद करें बखान ।।

वेद सके भी नहि पहिचान । जानूँ मैं क्या अति अज्ञान ।।

सरल सबल तुम सब गुनखान । दया करो हमको जन जान ।।

दूर करो अवगुन अभिमान । विद्यानिधि दो निर्मल ज्ञान ।।

छूटे नहि प्रभु तेरा ध्यान । संतोष शरन राखो भगवान ।।

।। जय सियाराम ।।

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राम नाम मंगलमूल दूर करे सब सूल

राम नाम मंगलमूल दूर करे सब सूल ।

तू भूले जग को जग भूले तुझको राम नाम मत भूल ।।

रामनाम में रमों राम भजे होए जग अनुकूल ।

सारा जग बेसार राम नाम ही सार मद बस मत झूल ।।

जग जाल कब काल जाना है मत फूल ।

बिषयरस सुखतूल नाम रस सुख मूल संतोष जान मत भूल ।।

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भगवान की तलाश

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सदग्रंथ, सुसंत और भक्त कहते हैं कि भगवान सर्वब्यापी हैं । घट-घट वासी हैं । कण-कण में भगवान हैं । फिर भी भगवान नहीं मिलते । क्यों ?

जैसे ग्रंथों में अपार ग्यान का भंडार भरा है । और ग्रन्थ सब जगह उपलब्ध भी हैं । फिर भी वह ज्ञान सहज प्राप्त नहीं है । न ही ज्ञान ग्रन्थ (जिसमें ज्ञान भरा है ) के अवलोकन से और न ही स्पर्श से प्राप्त होता है । और तो और ज्ञान ग्रंथों को पढ़ डालने से भी प्राप्त नहीं होता । ठीक ऐसे ही कण-कण में भगवान हैं और न ही दिखते हैं और न ही प्राप्त होते हैं ।

जैसे ग्रंथों से ज्ञान प्राप्त करने के लिए साधना, ध्यान, चिंतन-मनन, प्रेम और विश्वास चाहिए । ठीक ऐसे ही कण-कण रुपी ग्रन्थ में बसे ज्ञान रुपी भगवान को प्राप्त करने के लिए साधना, ध्यान, चिंतन-मनन, प्रेम और विश्वास चाहिए । मालुम हो सबको ज्ञान प्राप्त नहीं होता । ठीक ऐसे ही सबको भगवान प्राप्त नहीं होते ।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि ग्रंथों से ज्ञान प्राप्त कर लेना तो आसान है लेकिन कण-कण में बसे भगवान को प्राप्त करना आसान नहीं है ।

लोग भगवान को खोजते हैं । भगवान को जानना, पाना अथवा देखना चाहते हैं । और भगवान स्वयं भक्त खोजते रहते हैं । लोग भगवान को तलाशते हैं और भगवान लोगों को । सच्चे भक्त की तलाश उन्हें हमेशा रहती है । सच्चे भक्त को भगवान को तलाशने की आवश्यकता ही नहीं रहती । भगवान स्वयं आकर मिलते हैं ।

कोई कितना ही बड़ा, संत, ज्ञानी अथवा विद्वान क्यों न हो, यदि उसमें भक्ति नहीं है, तो उसे भगवान कदापि नहीं मिलेंगे । वहीं दूसरी ओर कोई कितना भी छोटा अथवा मूर्ख ही क्यों न हो, यदि उसमें भक्ति है, तो उसे भगवान मिल जायेंगे ।

सारा संसार भगवान को प्रिय है । लेकिन भक्त सबसे प्रिय है । भगवान केवल सच्चे भक्त को मिलते हैं । और किसी को नहीं ।

भगवान को यहाँ-वहाँ, चाहे जहाँ तलाशो, पूजा-पाठ करो, प्रवचन करो अथवा सुनों अर्थात चाहे जो साधन अथवा साधना करो भगवान मिलने वाले नहीं । भगवान प्रेम और भक्ति से ही द्रवित होते हैं ।

भगवान को ढकोसला और बनावट बिल्कुल रास नहीं आती, रास आती है तो सरलता, मन की निर्मलता ।

भगवन तो मिलना चाहते हैं, प्रकट होना चाहते हैं । इसके लिए वे बेताब रहते हैं । लेकिन मिलें तो किससे ? किसके सामने प्रकट हों ? उन्हें योग्य अधिकारी चाहिए ? अनाधिकारी को कुछ भी देना पाप-अधर्म होता है । भगवान अनघ और धर्म स्वरूप-धर्म धुरंधर हैं, तो वे पाप या अधर्म कैसे करें ?

कण-कण के वासी भगवान को प्रकट करने के लिए प्रहलाद जैसा प्रेमी भक्त चाहिए । गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज प्रहलाद जी के प्रेम की सराहना करते हुए कहते हैं कि-

प्रेम बदौं प्रहलादहि को जिन पाहन से प्रमेश्वरू काढ़े

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भगवान को प्राप्त करने का सरलतम तरीका

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भगवान को प्राप्त करना बहुत ही सरल है । कहीं जाने की या दर-दर ठोकर खाने की भी जरूरत नहीं है । कई काम भी नहीं करना हैं । केवल और केवल एक काम करना हैं । और भगवान घर बैठे प्राप्त हो जायेंगे ।

जैसे कोई रोग हो जाए तो जितने डॉक्टर के पास जाओ उतनी ही तरह-तरह की दवाएं और हिदायतें दी जाती हैं । वैसे ही भगवान को प्राप्त करने के नाना तरीके हैं । और लोग बताते भी रहते हैं । लेकिन हम सिर्फ एक सरलतम तरीका बता रहे हैं ।

भगवान छल-कपट से और छल-कपट करने वालों से बहुत दूर रहते हैं । और छल-कपट रहित निर्मल मन वालों के बहुत पास रहते हैं । श्रीराम जी कहते हैं कि निर्मल मन वाले ही हमें पा सकते हैं । दूसरे नहीं ।

बिना मन निर्मल किये ही हम तीर्थों के चक्कर लगाते फिरते हैं । साधु-महात्माओं के दर्शन और आशीर्वाद लेते रहते हैं । प्रवचन सुनते रहते हैं । मंदिर जाया करते हैं । घर में भी पूजा-पाठ करते रहते हैं । यथा-शक्ति दान-दक्षिणा भी देते रहते हैं । व्रत-उपवास भी करते रहते हैं । लेकिन भगवान नहीं मिलते । क्योंकि हमारे पास निर्मल मन नहीं है ।

यही सबसे बड़ी समस्या है । हम सब भगवान को तो पाना चाहते हैं । लेकिन बिना मन निर्मल किये । जो कि सम्भव नहीं है । अपना मन ही निर्मल नहीं है । तो भगवान कैसे मिलें ?

अपना प्रतिबिम्ब भी देखना हो तो निर्मल यानी साफ-सुथरा दर्पण की आवश्यकता होती है । यदि दर्पण साफ-सुथरा न हो तो खुद अपना प्रतिबिम्ब भी नहीं दिखाई पड़ता । तब गंदे मन रुपी दर्पण से भगवान कहाँ दिखेंगे ? यदि दर्पण में अपनी छवि बसानी यानी देखनी है तो दर्पण को स्वच्छ करना ही होगा । ठीक ऐसे ही मन में श्रीराम को बसाने के लिए मन स्वच्छ करना ही पड़ेगा ।

दर्पण स्वच्छ हो तो कुछ करना थोड़े पड़ता है । जैसे दर्पण के सामने गए प्रतिबिम्ब उसमें आ गया । भगवान तो हर जगह हैं । कण-कण में हैं । कहीं जाना भी नहीं है । हम हमेशा भगवान के सामने पड़ते हैं । लेकिन भगवान हमारे मन रुपी दर्पण में नहीं आते, नहीं दिखते । क्योंकि अपना मन रुपी दर्पण निर्मल नहीं है । अतः यदि हमारा मन निर्मल हो जाए तो हमें भगवान को पाने के लिए कुछ करना थोड़े पड़ेगा । भगवान खुद हमारे मन में बस जायेंगे । आ जायेंगे और हमें दिखने लगेंगे ।

भगवान को रहने के लिए जगह की कमी थोड़े है । लेकिन भक्त के मन में, हृदय में रहने का मजा ही दूसरा है । इसलिए भगवान निर्मल मन वाले को तलासते रहते हैं । जैसे कोई निर्मल मन मिला उसमें बस जाते हैं ।

अतः भगवान को पाने के लिए हमें कुछ नहीं करना है । सिर्फ हमें अपने मन को निर्मल बना लेना है । सब छोड़कर हम अगर यह काम कर ले जाएँ तो भगवान हमें मिल जाएंगे । भगवान खुद कहते हैं-

निर्मल मन जन सोमोहि पावा । हमहिं कपट छल छिद्र न भावा।।

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संकटमोचन मारूतनंदन

संकटमोचन मारूतनंदन हनूमान अतुलित प्रभुताई ।

महाबीर बजरंगबली प्रभु निज मुख कीन्ह बड़ाई ।।

राम सुसेवक राम प्रिय रामहु को सुखदाई ।

तुमसे तात उरिन मैं नाही कहि दीन्हेउ रघुराई ।।

बालि त्रास त्रसित सुग्रीव को राम से दिहेउ मिलाई ।

भक्त विभीषन धीरज दीन्हेउ राम कृपा समुझाई ।।

गुन बुधि विद्या के तुम सागर कृपा करि होउ सहाई ।

राम प्रभु के निकट सनेही अवसर पाइ कहउ समुझाई ।।

अब तो नाथ विलम्ब न कीजे वेगि द्रवहु सुर साई ।

अघ अवगुन खानि संतोष तो स्वामी तव चरण की आस लगाई ।।

विरद की रीति छ्मानिधि रखिए करुनाकर रघुराई ।

नाथ चरन तजि ठौर नहीं संतोष रहा अकुलाई ।।

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रघुपति राघव जन सुखदाई

रघुपति राघव जन सुखदाई ।

आरतपाल सहजकृपाल अग जग के तू साई ।।

जग जो बड़े हुए अरु होते तुम्हरे दिए बड़ाई ।

शिव, हरि, बिधि आदिक को प्रभु दई तुम्हीं प्रभुताई ।।

घट-घट के जाननहार सुधि कियो न कोउ कराई ।

ठौर नहीं प्रभु द्रवहुँ वेगिंह कहौ कहाँ हम जाई ।।

आस पियास बुझै नहि रघुवर बिनु कृपा जल पाई ।

संतोष रखो प्रभु करुनासागर कृपा वारि पिलाई ।।

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।। श्रीराम चालीसा ।।

।। श्री गणेशाय नमः ।।

।। श्रीसीतारामाभ्याम नमः ।।

श्रीरामचालीसा

दोहा-

तुलसिदास मानस विमल, राम नाम श्रीराम ।

पवनतनय अरु विनय पद, सादर करौं प्रनाम ।।

अविगत अलख अनादि प्रभु, जगताश्रय जगरूप ।

पद कंज रति देहु मोहि, अविरल अमल अनूप ।।

चौपाई-

जय रघुनाथ राम जग नायक । दीनबन्धु सज्जन सुखदायक ।।

प्रनतपाल सुंदर सब लायक । असरन सरन धरे धनु सायक ।।

नाम लेत मुद मंगल दायक । सरल सबल असहाय सहायक ।।

सुमुख सुलोचन अज अविनासी । संतत गिरिजा पति उर वासी ।।

अगम अगोचर जन दुखनासी । सहज सुगम अनुपम सुखरासी ।।

दया क्षमा करुना गुन सागर । पुरुष पुरान सुशील उजागर ।।

हरि हर बिधि सुर नर मुनि भावन । अघ अविवेक समूल नसावन ।।

भरत लखन रिपुहन हनुमाना । संग सिया राजत भगवाना ।।

रूप अनूप मदन मद हारी । गावत गुन सुर नर मुनि झारी ।।

सुर नर मुनि प्रभु देखि दुखारे । तजि निज धाम धरा पगु धारे ।

सुत बिनु दशरथ राय दुखारी । सुत होइ उनको कियो सुखारी ।।

मख हित मुनिवर अति दुःख पाए । दुष्टन दलि तुम यज्ञ कराए ।।

पाहन बनि मुनि गौतम नारी । सहत विपिन नाना दुःख भारी ।।

ससंकोच निज पद रज डारी । दयासिन्धु तुम कियो सुखारी ।।

सोच मगन नृप सिया सहेली । मातु सकल नर नारि नवेली ।।

सबकर सोच मिटायेउ स्वामी । भंजि चाप जय राम नमामी ।।

परशुराम बहु आँखि दिखाए । गुन गन कहि धनु देय सिधाये ।।

करि कुचाल जननी पछितानी । उनको बहुत भांति सनमानी ।

केवट नीच ताहि उर भेटा । सुर दुर्लभ सुख दै दुःख मेटा ।।

भरत भाय अति कियो बिषादा । जगत पूज भे राम प्रसादा ।।

आप गरीब अनेक निवाजे । साधु सभा ते आय बिराजे ।।

बन बन जाय साधु सनमाने । तिनके गुन गन आप बखाने ।।

नीच जयंत मोह बस आवा । जानि प्रभाव बहुत पछितावा ।।

शवरी गीध दुर्लभ गति पाए । सो गति लखि मुनिराज लजाये ।।

कपि असहाय बहुत दुःख मानी । बसत खोह तजि के रजधानी ।।

करि कपीस तेहिं निज पन पाला । जयति जयति जय दीनदयाला ।।

बानर भालू मीत बनाये । बहु उजरे प्रभु आप बसाये ।।

कोल किरात आदि बनवासी । बानर भालु यती सन्यासी ।।

सबको प्रभु कियो एक समाना । को नहि नीच रहा जग जाना ।।

कोटि भालु कपि बीच बराए । हनुमत से निज काज कराए ।।

पवनतनय गुन श्रीमुख गाये । जग बाढ़ै प्रभु आप बढ़ाए ।।

हनुमत को प्रभु दिहेउ बड़ाई । संकटमोचन नाम धराई ।।

रावण भ्रात निसाचर जाती । आवा मिलइ गुनत बहु भांती ।।

ताहिं राखि बहु बिधि हित कीन्हा । लंका अचल राज तुम दीन्हा ।।

चार पुरुषारथ मान बड़ाई । देत सदा दासन्ह सुखदाई ।।

मो सम दीन नहीं हित स्वामी । मामवलोकय अन्तरयामी ।।

रीति प्रीति युग-युग चलि आई । दीनन को प्रभु बहु प्रभुताई ।।

देत सदा तुम गहि भुज राखत । साधु सभा तिनके गुन भाखत ।।

कृपा अनुग्रह कीजिए नाथा । विनवत दास धरनि धरि माथा ।।

छमि अवगुन अतिसय कुटिलाई । राखो सरन सरन सुखदाई ।।

दोहा-

राम राम संतोष कहु भरि नयनन महु नीर ।

प्रनतपाल असरन सरन सरन देहु रघुवीर ।।

राम चालीसा नेम ते, पढ़ जो प्रेम समेंत

बसहिं आइ सियाराम जु, ताके हृदय निकेत ।।

।। सियावर रामचन्द्र की जय ।।

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।। श्रीराम स्तुति ।।

।। श्रीसीतारामाभ्याम नमः ।।

हे राम प्रभूजी दयाभवन । तुमसा है जग में और कवन ।।१।।

सुखसागर नागर जलजनयन । गुन आगर करुना छमा अयन ।।२।।

सुखदायक लायक विपति समन । भवतारन हारन जरा मरन ।।३।।

संकोच सिंधु धुर धर्म धरन । शारंगधर टारन भार अवन ।।४।।

जग पालन कारन सिया रमन । देवों को दायक तुम्ही अमन ।।५।।

मन लाजै तुमको देखि मदन । शोभा की सीमा शील सदन ।।६।।

विश्वाश्रय रघुवर विश्वभरन । तुमको प्रभु बारंबार नमन ।।७।।

तुम बिनु प्रभु क्या यह मानुष तन । बन जावो मेरे जीवनधन ।।८।।

दुख दारिद दावन दोष दमन । तुमको ही ध्याये मेरा मन ।।९।।

प्रभुजी अवगुन अघ ओघ हरन । हो चित चकोर बिधु आप वदन ।।१०।।

नहि मालुम मुझको एक जतन । तुम बिनु को हारे दुख दोष तपन ।।११।।

कहते हैं स्वामी तव गुनगन । शरनागत राखन प्रभु का पन ।।१२।।

मेंरा उर हो प्रभु आप सदन । गहि बाँह रखो मोहि जानि के जन ।।१३।।

विनती प्रभुजी तारन तरन । मन का भी मेरे हो नियमन ।।१४।।

हे राम प्रभू मेरे भगवन । मैं चाह रहा तेरी चितवन ।।१५।।

करुनासागर संतोष सरन । है ठौर इसे बस आप चरन ।।१६।।

।। सियावर रामचंद्र की जय ।।

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श्रीहनुमान स्तुति

।। श्री हनुमते नमः ।।

जय हनुमंत जयति मतिसागर । बल विक्रम त्रैलोक उजागर ।।१।।

पवनतनय समरथ गुन आगर । जय कपीस सेवक हित नागर ।।२।।

महावीर सब सिधि निधि दायक । जय रनधीर राम गुन गायक ।।३।।

रामदूत सुंदर सब लायक । बसत हिय सिय सह रघुनायक ।।४।।

ज्ञान विज्ञान विवेक अपारा । तव गुनगन गावत जग सारा ।।५।।

रवि सुरेश तव पौरुष भारी । जानत सकल देव नर नारी ।।६।।

दानव दैत्य भूत जग जेते । डरपहिं नाम सुनावत तेते ।।७।।

छीजहिं सकल दुष्ट अधियारी । घोर निशा जिमि देखि तमारी ।।८।।

अग-जग जाल सकल जेहिं सिरिजा । मानत सकल देव हर गिरिजा ।।९।।

सेवक तासु प्रिय सुखदाई । बार-बार प्रभु कीन्हि बड़ाई ।।१०।।

कहेउ उरिन तुमसे नहि भाई । संकटमोचन नाम धराई ।।११।।

धन्य-धन्य कीरति जग छाई । शेष-महेश सके नहि गाई ।।१२।।

हरि-हर-बिधि तव भगति सराही । राम भगत तुम सम कोउ नाही ।।१३।।

राम प्रेम मूरति धरे देहीं । मिले जेहिं आप राम मिले तेहीं ।।१४।।

राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।१५।।

अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहि श्रीरघुराई ।।१६।।

।। श्रीहनुमानजी महाराज की जय ।।

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