गोस्वामी तुलसीदासजी के बारहों ग्रंथ सनातन धर्म के अनुयायियों-संतों, भक्तों आदि में इस कराल कलिकाल में सनातन परम्परा, उसके मूल्यों, आदर्शों, ज्ञान, भक्ति और वैराग्य आदि को जीवित रखने के लिए प्राण वायु का काम कर रहे हैं । साधु, संत, भक्त, ज्ञानी, वैरागी और साधारण जन को भी राह दिखा रहे हैं ।
जब गोस्वामी जी ने
देखा कि कराल कलिकाल का समय है और आगे यह समय और विकराल हो जायेगा तब सनातन परंपरा
और संतों भक्तों को बल प्रदान करने और उन्हें सही और सीधा रास्ता दिखाने के लिए
उन्होंने श्रीरामचरितमानस और श्रीविनयपत्रिका जैसे परम दिव्य और अलौकिक ग्रंथ रत्न
प्रदान किए-
काल कराल जानि जग कारन, मानस विनय दिए दुख हारे ।
साधु सुजान पुलकि मन गावत, आपु तरे अरु लोकहु तारे ।।
श्रीरामचरितमानस जी से सनातन धर्म का और संतों, भक्तों आदि का जितना
कल्याण हुआ है, जितना उत्थान हुआ है, हो रहा है और आगे होगा उसका वर्णन कर पाना
संभव नहीं है । हम संक्षेप में इतना ही कह सकते हैं-
गुरू तुलसीदास जो श्रीरामचरितमानस न गाते ।
परम मनोहर सहज कथा बिनु लोग अधिक भरमाते ।।१।।
भवसागर से तरने का सरल सुगम मारग न सुझाते ।
साधु सुजन जन प्रेरणादायक सुंदर उक्ति कहाँ पाते
।।२।।
बरबस ही लोंगो के मुख में पावन छंद कहाँ आते ।
सच में मानस न होती तो धरम-करम बहु मिट जाते ।।३।।
दीन संतोष हीन जन मोसे राम चरन नहि लगि पाते ।
मूढ़ मलीन बिबस कलिकाल जनम-जनम लगि फँसि जाते ।।४।।
।।
गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की जय ।।