अभी घोर कलियुग है । और आगे घोरतम कलियुग आएगा । इस कलिकाल में भगवान से जोड़ने वाली बाते कम और भगवान से दूर करने वाली बातें ज्यादा हो रही हैं । आजकल सदराह दिखाने वालों की कमी और गुमराह करने वालों की अधिकता होती जा रही है । समाज में, आस्तिक जगत में व्याप्त गुरू तत्व की महिमा का लाभ उठाकर कई लोग गुरू बनकर भी गुमराह करते हैं ।
सनातन
धर्म में गुरू को भगवान से जोड़ने के लिए माध्यम बताया गया है । गुरू अपने शिष्य को
भगवान से जुड़ना सिखाता है, भगवान से जोड़ता है । इसलिए ही गुरू की महत्ता है । जो
गुरू के चरणों में झुकना, रहना, सेवा करना आदि सीख जाता है । उसे धीरे-धीरे भगवान के चरणों
में झुकना, रहना और सेवा करना आ जाता है ।
यही गुरू सेवा का, गुरू की महत्ता का रहस्य है ।
यह कहना
कि रामजी राम और कृष्णजी कृष्ण गुरू समर्पण से बने तो यह सही नहीं है । यह अपने
शिष्य को गुमराह करना है । यह बात सत्य है कि रामजी और कृष्णजी ने गुरू के यहाँ
जाकर अध्यन किया, गुरू के अनुशासन में रहे, उनकी सेवा की आदि । ऐसा करके रामजी ने
और कृष्णजी ने संसार को गुरू का महत्व समझाया और सिखाया कि सबको गुरू का आदर और
सम्मान करना चाहिए । रामजी राम और कृष्णजी कृष्ण पहले से ही थे । इस प्रकार उन्हें
किसी ने बनाया नहीं है और न ही वे बने हैं ।
मनुष्य
अपने जीवन को त्याग, तपस्या और भजन से ऊँचा उठा सकता है । यह बात सत्य है । लेकिन
यह कहना कि पार्वती जी साधरण कन्या थी । और उन्होंने अपने जीवन को इतना ऊपर उठाया
कि वह शिव जी की पत्नी बन गईं । पूर्णतया गलत है । गोस्वामी जी ने कहा कि पार्वती
जी अजन्मा है, अनादि शक्ति हैं , अविनासी हैं और वे सदा सर्वदा से शिवजी की
अर्धांगिनी हैं- ‘अजा अनादि शक्ति अविनासिन । सदा शंभु अर्धंग निवासिन ।।
इसी तरह यह कहना कि एक साधारण सी लड़की राधा बन गई
और उसका नाम भगवान कृष्ण के साथ जुड़ गया । गलत है ।
कुल मिलाकर न कोई किसी को रामजी, न कृष्णजी, न
पार्वतीजी और न ही राधाजी बना सकता है और न ही कोई बन सकता है । केवल भगवान के
भक्त बन कर रह लिया जाय यह ही पर्याप्त है । ऐसे किसी भी व्यक्ति के चक्कर में नहीं
पड़ना चाहिए जो गुमराह कर रहा हो ।
सच्चे गुरू का सदा यही और एक ही प्रयास रहता है कि
उनका शिष्य भगवान से जुड़े । यह याद रखना चाहिए जो भगवान की ओर ले जाए वही गुरू है ।
जो भगवान से जोड़े वही गुरू है ।
।। जय श्रीराम ।।
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