भगवान श्रीराम संसारिक रोगों के परम वैद्य हैं- ‘नमामि रामं भव रोग वैद्यं’- श्रीसनत्कुमारसंहिता । राम जी जिस दवा से रोगोपचार करते हैं उसका नाम है- ‘राघव कृपा भेषज’ ।
इस भेषज से जीव भव रोग से मुक्त हो जाता है । इतना ही नहीं यह दवाई बड़ी कारगर है और हर रोग में काम करती है, बड़ी से बड़ी महामारी हो उससे भी बचाती है ।
सदग्रंथ कहते हैं, उदाहरण के लिए श्रीरामचरितमानसजी कहते हैं, कि किसी भी रोग को छोटा नहीं समझना चाहिए । और उसका तुरंत उचित उपचार करना चाहिए ।
श्रीविनयपत्रिका में गोस्वामी जी कहते हैं कि रोग
के अनुरूप दवा होनी चाहिए । यदि जैसा रोग है वैसा इलाज नहीं मिला तो रोग ठीक थोड़े
होगा ।
श्रीरामचरितमानसजी में एक संकेत और मिलता है कि
दवा के काम करने का भी एक समय होता है । एक समय ऐसा भी आता है जब कोई दवा काम नहीं
करती । यदि दवा सदैव काम करती रहे तो लोग मरेंगे ही नहीं ।
कुछ भी हो, रोग कोई भी हो, उपचार कोई और कैसा भी
हो रोग मुक्ति तो राघव कृपा भेषज से ही होती है ।
इसप्रकार यदि कोई किसी रोग से उपचार के बाद मुक्त
हो जाता है तो यही समझना चाहिए कि डॉक्टर की दवा के साथ इन्हें राघव कृपा भेषज भी
मिली है । क्योंकि डॉक्टर तो उपचार सबका करते हैं लेकिन हर कोई रोग मुक्त थोड़े होता
है ।
रोग मुक्त वे ही होते हैं जिन्हें उपचार के साथ राघव कृपा रुपी भेषज मिल जाती है क्योंकि रामजी संसार सागर से पार ले जाने वाले पोत (जहाज) हैं और संसार के रोगों के लिए परम वैद्य हैं-
भवाब्धिपोतं भरताग्रजंतं
भक्तप्रियं भानुकुल प्रदीपं ।
भूतादिनाथं भुवनाधिपत्यम्
भजामि रामं भवरोग वैद्यं ।।
कवितावली में गोस्वामी जी कहते हैं कि किसी रोग के घेर लेने पर सहज कृपा करने वाले राम जी, जिनके हनुमानजी जैसे सेवक हैं, रक्षा करेंगे । इस प्रकार राघव कृपा भेषज से जीवन की रक्षा होती है ।
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