जब सीताजी को खोजने के लिए तीन दिशाओं के वानर चले
गए तब शेष दक्षिण दिशा में जाने वाले वानरों और भालुओं की बारी आई । दक्षिण दिशा में जाने
वाले वानर और भालू भी जाने लगे । और सबसे बाद में हनुमान जी महाराज भी जाने के लिए
प्रस्तुत हुए और रामजी को प्रणाम करके चलने वाले थे तो राम जी ने हनुमानजी को अपनी
अगूंठी देकर सीता जी से कहने के लिए संदेश भी दिया ।
हनुमानजी को रामजी ने रामकाज के लिए चयनित कर लिया
था । और लंका में बड़े-बड़े राक्षस थे एक से बढ़कर एक शक्तिशाली और दूसरे लंका तक
पहुँचने के लिए सौ योजन का समुद्र भी पार करना था । रामजी को तो पता ही था कि
सीताजी लंका में हैं-
जद्यपि प्रभू जानत सब बाता ।
राजनीति राखत सुरत्राता ।।
हनुमानजी को रामजी ने रामकाज के लिए चुना था यह तो हनुमानजी के लिए बड़े सौभाग्य की बात थी । लेकिन इतने बड़े उत्तरदायित्व को पूर्ण कैसे किया जाए यह प्रश्न हनुमानजी के मन में था ।
इसलिए हनुमानजी ने रामजी से पूछा कि हे नाथ मैं सौ योजन के समुद्र को कैसे पार कर पाऊँगा ? इतनी शक्ति कहाँ से आएगी ? और उसके बाद लंका में बड़े-बड़े असुर हैं उनसे सामना करने का उनसे भिड़ने की शक्ति कैसे प्राप्त करूँगा ?
तब रामजी ने हनुमानजी को एक मंत्र दिया । रामजी बोले हनुमान ‘श्रीराम’ इस मंत्र के एक पुरश्चरण जप से तुम्हारे अंदर समुद्र पार करने और राक्षसों का सामना करने की शक्ति आ जायेगी और तुम सीता का समाचार लाने में सफल हो जाओगे ।
सफलता का मंत्र प्राप्त करके हनुमानजी प्रसन्न
होकर चल दिए । जब समुंद्र के किनारे बैठकर अन्य सभी वानर-भालू समुद्र पार करने के
लिए विचार-विमर्श कर रहे थे और अपने-अपने बल का वर्णन कर रहे थे, उस समय हनुमान जी चुपचाप यही साधना करने में
व्यस्त थे- ‘का चुप साधि रहेउ बलवाना’ ।
इस प्रकार हनुमानजी ने सौ
योजन के समुद्र को पार करने और राक्षसों का सामना करने की शक्ति प्राप्त करके
रामकाज को पूर्ण किया ।
।। जय श्रीराम ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें