आजकल साधु वेष में कई
बहुरूपिये चारों दिशाओं में छाए हुए हैं । ऐसे में प्रश्न उठता हैं कि कैसे
पहिचानें कि कौन साधु है और कौन बहुरूपिया है । बहुरूपिया चारों दिशाओं
में छाए हुए हैं और ऐसे-ऐसे कृत को अंजाम देते हैं कि उनका वर्णन नहीं हो सकता -
नाम मात्र को साधु बहु रहे चहूँ दिस छाय ।
रामदास करनी करैं सो बरनी नहि जाय ।।
बहुरूपिये केवल नाम मात्र
को साधु होते हैं । ये साधू होते नहीं हैं साधू बने होते हैं । इन्हें बना साधू कहते हैं । इनमें साधुता नहीं होती है और ये छल कपट से परिपूर्ण होते हैं-
नाम मात्र को साधु जो बना साधु कहलाँय ।
रामदास बिनु साधुता कपटी छली अघाय ।।
ये जप, तप भी केवल नाम के लिए करते हैं और खुश होकर फोटो
खिचवाते हैं जिससे लोंगो को दिखा सकें, बता सकें कि ये बहुत जप तप करने वाले हैं ।अथवा कर चुके हैं । मतलब राम जी के बजाय दुनिया
को रिझाने पर इनका ज्यादा जोर होता है । राम जी रीझें या नहीं बस दुनिया के लोग
रीझ जाएँ तो इनका काम बन जाता है -
जप तप करते नाम को छाया मुदित खिचाय ।
रामदास नहि राम को दुनिया रहे रिझाय ।।
बहुरूपिया लोग रात-दिन छल
और कपट में लगे रहते हैं । तरह-तरह के छल-कपट करते हैं । ये मायावी होते हैं ।
इनकी नाना तरह की माया को देखकर लोग मूर्ख बन जाते हैं । अर्थात ये जो लोंगो
को फसाने के लिए तरह-तरह के तिकडम करते है उससे प्रभावित होकर लोग इन्हें बड़ा भक्त
और साधु मानने लग जाते हैं और इस प्रकार इनके द्वारा ठगे जाते हैं -
रामदास छल कपट बहु करत दिवस अरु रात ।
देखि देखि माया घनी जग मूरख बनि जात ।।
साधू और संतों की अनंत
महिमा है । सदग्रंथ इनकी महिमा को बताते हैं । ये स्वयं तरे होते हैं अथवा
स्वयं तो तरते ही हैं । दूसरों को भी तारते हैं । और जो लोग जाकर मिलते हैं । इनकी
चरण सन्निधि प्राप्त करते हैं उन्हें ये राम जी को दिखला देते हैं अथवा मिलने का
उपाय बता देते हैं -
साधु संत महिमा अमित ग्रंथ रहे बतलाय ।
तरे तारते जा मिले रामहिं देत लखाय ।।
जो लोग साधू से जुड़ते हैं ।
साधू उन्हें रामजी से जोड़ देते हैं । इन्हें रामजी के अलावा और किसी से कोई
प्रयोजन ही नहीं होता है । इनको और किसी से कुछ लेना देना नहीं होता है । जो लोग
बेराम होते हैं उन्हें साधु से मिलने पर आराम मिल जाता है । अर्थात जो लोग राम जी
से बिमुख हैं , दूर हैं उनके जीवन में भी राम जी आ जाते हैं और राम जी के आ जाने
से उनका जीवन भी आनंदमय हो जाता है –
साधु जोड़ते राम से नहीं और से काम ।
रामदास बेराम को साधु मिले आराम ।।
साधु के गुण, उनकी रहनी का वर्णन कोई भी
नहीं कर सकता हैं । इनका हर काम राम जी से जुड़ा
होता है । बहुरूपियों का ठीक इसके विपरीति होता है । धन, धाम और काम से जुड़ा होता
है । जैसा इनका नाम बहुरूपिया है ठीक इसी के अनुरूप इनके पास रुपया-पैसा भी बहुत
अधिक होता है । जबकि साधु जन के पास रुपया पैसा ज्यादा होता नहीं है । इसप्रकार
बहुरूपिए साधुता और साधु जन दोंनो को लज्जित करने का काम करते हैं-
रहनी साधू की कही काहू से नहिं जाय ।
रामदास साधू बने साधुन रहे लजाय ।।
बहुरूपिए अपने को ही सब कुछ कहते हैं ।
बताते हैं ।
अपने भक्तों से कहते हैं कि किसी और से तुम्हें कोई काम नहीं है, जरूरत नहीं है
क्योंकि सबकुछ मैं ही हूँ । लेकिन इनको संसार से ही काम होता है । साधु अपने से जुड़े हुए लोंगो से कहते हैं कि तुम्हें
और किसी से कोई प्रयोजन नहीं होना चाहिए । होना चाहिए तो राम जी से । लेकिन बहुरूपिए
कहते हैं कि प्रयोजन सिर्फ मुझसे होना चाहिए । इतना ही नहीं बहुरूपिए कहते हैं कि
हम राम जी से भी, सारे संसार से बड़े हैं अथवा हम ही राम हैं, तूँ सदा इस तरह ही हमें देखा कर तो तेरा कल्याण हो जाएगा-
अपने को सर्बस कहैं जग से इनको काम ।
रामदास साधू बने जगत बड़े हम राम ।।
बहुरूपियों को राम जी से कोई लेना देना
नहीं होता है । इन्हें लेना देना सिर्फ धरा, धन और धाम से
होता है । अपने भक्तों का सबकुछ-घर,खेत, धन आदि अपना कर लेना चाहते हैं । इनके
चक्कर से वो ही लोग बच सकते हैं जिन्हें राम जी स्वयं कृपा करके बचा लें अन्यथा
बचना मुश्किल होता है-
नहि मतलब कछु राम से चहैं धरा धन धाम ।
रामदास वो ही बचैं जिन्हें बचावैं राम ।।
साधु भी धरा, धन और
धाम चाहते हैं और बहुरूपिए भी । लेकिन अंतर यह है कि साधु राम
जी की धरा (जैसे अयोध्या, चित्रकूट और वृंदावन आदि ) चाहते हैं । साधु राम रतन धन
(पायों री मैंने राम रतन धन पायों ) चाहते हैं, राम जी को अपना जीवन धन बनाना
चाहते हैं । साधु राम जी का धाम जैसे अयोध्या धाम चाहते हैं और शरीर संसार से विदा
लें तो साकेत धाम चाहते हैं । लेकिन बहुरूपिए सारे संसार की धराको, धन और धाम को
अपने नाम करा लेना चाहते हैं-
साधु चहैं सब राम का धरा और धन धाम ।
रामदास साधू बना जग का अपने नाम ।।
बहुरूपिए अर्थात जो साधू नहीं हैं पर साधू बने हैं, जब मरने के बाद
ऊपर जाएँगे तब देवता लोग कहेंगे कि मनुष्य जीवन सत्कर्म करने के लिए मिला था ।
रामजी की भक्ति करने के लिए मिला था । लेकिन तुमने तो सब कुछ बेकार कर दिया ।
अनमोल जीवन ऐसे ही गवां कर चले आए । तब ये लोग देवताओं को भी डांटकर बोंलेगे कि
तुम्हें कुछ दिखता भी है पता भी है-
अंत समय सुर बोलिहैं जीवन दियो गवाँय ।
रामदास तब डांटिहैं तुमको नहीं लखाय ।।
हम मूर्ख थोड़े हैं । हमारे हाथ में सबूत है । हमने बहुत जप और
तप किए हैं । किसी की हिम्मत नहीं है कि कोई झूठ कह दे । क्योंकि हम जब भी जप, तप
करते थे तो चित्र खिचवाने की पूरी व्यवस्था रखते थे-
रामदास मूरख नहीं हमरे हाँथ सबूत ।
पूजा जप तप बहु किये झूठ कहै को बूत ।।
छल-कपट से, माया से, तिकड़म
से, चित्र खिचवाने से दुनिया भले ही रीझ जाए लेकिन राम जी रीझने वाले नहीं हैं ।
ऐसे में बिना राम जी के रीझे क्या होने वाला है ? क्या यही जीवन का उद्देश्य है ?
बहुरूपिए यह जानते हैं कि राम जी ऐसे नहीं रीझेंगे फिर भी वे दुनिया को रिझाने में
लगे रहते हैं । एक रास्ता राम की ओर जाता है और एक दाम की ओर (दुनिया को रिझाने से
धरा, धन. धाम और दाम ही तो मिलता है) ।
लेकिन बहुरूपिए राम जी की ओर जाने की बजाय दाम की ओर जाते हैं । राम और दाम के बीच
दाम का चुनाव करते हैं । जबकि साधु जन राम जी का ही चुनाव करते हैं । क्योंकि वे
उस रास्ते पर चलते हैं जो राम जी की ओर जाता है-
जग रीझा तो क्या हुआ रीझे नहि जो राम ।
रामदास चुनने लगे राम दाम बिच दाम ।।
।। जय श्रीसीताराम ।।
(सभी दोहे दोहा संग्रह-‘मानव माने होय’ से
लिए गए हैं । )
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