१. सनातन धर्म क्या है ?
वेद धर्म ही सनातन धर्म है । यह आदि-अंत रहित शास्वत धर्म है । इसे ही हिंदू
धर्म और आर्य धर्म भी कहा जाता है । वेद, पुराण उपनिषद और रामायण आदि में जिस धर्म का वर्णन है वह सनातन धर्म है ।
२. सनातनधर्म के प्रवर्तक
कौन हैं ?
यह अनादि धर्म है । यह शास्वत धर्म है । इसका न
आदि है न अंत है । जिस धर्म को कोई शुरू करता है उसे उस धर्म का प्रवर्तक कहा जाता है ।
प्रवर्तक के पहले उस धर्म (जिसे प्रवर्तक शुरू करता है ) का अस्तित्व नहीं रहता है
। लेकिन सनातनधर्म सदा चलता ही रहता है इसलिए इसका कोई प्रवर्तक नहीं है । सनातन
धर्म भगवत स्वरूप ही है ।
३. सनातन धर्म में कितने
भगवान हैं ?
भगवान तो एक ही हैं । लेकिन इनके कई स्वरूप
हैं ।
४. भगवान के कितने स्वरूप
हैं ?
भगवान के एक दो नहीं अनंत स्वरूप हैं ।
५. सनातन धर्म में अवतार
किसे कहा जाता है ?
वस्तुतः भगवान एक ही हैं । लेकिन समय-समय
पर जैसे रूप, गुण और लीला की जरूरत होती है उसके अनुरूप भगवान एक नया रूप बना लेते
हैं जिसे अवतार कहा जाता है ।
६. देवता और भगवान में क्या
अंतर है ? दोनों में कौन श्रेष्ठ होता है ?
देवता और भगवान में कई अंतर हैं । देवता भगवान से ही
उत्पन्न होते हैं । देवता श्रेष्ठ और भगवान सर्वश्रेष्ठ होते हैं ।
७. क्या भूत होते हैं ?
सनातन धर्म के अनुसार भूत होते हैं । इन्हें
उपदेवता समझना चाहिए । राक्षसों को भी उपदेवता कहा जाता है ।
८. भगवान राम और भगवान
श्रीकृष्ण में सबसे पहले किसका अवतार होता है ?
पहले भगवान राम का और बाद में भगवान श्रीकृष्ण का
अवतार होता है । और भगवान राम तथा भगवान श्रीकृष्ण के अवतार में लाखों वर्ष का
अंतर होता है । लेकिन कई लोग भ्रम के कारण स्वयं भ्रमित रहते हैं और दूसरों को भी
भ्रमित करते हैं ।
९. भगवान राम और भगवान
श्रीकृष्ण में कौन बड़ा है ?
भगवान राम और भगवान श्रीकृष्ण में मूलतः भेद नहीं
है । लीला, रूप और गुण में थोड़ी भिन्नता दिखती है । लेकिन दोनों एक हैं । कुछ लोग
भ्रम वश अंतर समझते हैं । जो ठीक नहीं है और सनातन धर्म के सिद्धांतों के विपरीति
है ।
१०. किस सिद्धांत, तथ्य अथवा
बिचार को सही समझना चाहिए ?
वेद अनुमोदित सिद्धांत,
तथ्य अथवा बिचार मानने योग्य हैंं । वेद-पुराण, उपनिषद, श्रीरामचरितमानस और
गीता जी के सिद्धांत ही अनुसरणीय हैं ।
११. भक्त और अभक्त किसे कहते
हैं ?
जो अपने को भगवान से जोड़कर रखता है वह भक्त होता
है । और जो अपने को भगवान से जोड़कर नहीं रखता वह अभक्त होता है ।
१२. क्या भगवान भक्त और अभक्त में भेद करते हैं ?
भगवान समदर्शी हैं । भक्त और अभक्त दोनों
भगवान के ही हैं । फिर भी भगवान भक्त का पक्ष लेते हैं । भगवान भक्त की मदद करते
हैं ।
१३. भगवान से कैसे जुड़ें ?
संसार में भगवान से जुड़ना थोड़ा कठिन है । संसार से
जुड़ना आसान होता है । लेकिन संत, भक्त और ग्रंथ आदि की मदद से भगवान से जुड़ा जा
सकता है । कोई सम्बंध जोड़कर भगवान से जुड़ा जा सकता है ।
१४. किस ग्रंथ के माध्यम से
भगवान से जुड़ सकते हैं ?
श्रीरामचरितमानस, श्रीविनयपत्रिका, श्रीमद्भागवत
पुराण आदि के माध्यम से भगवान से जुड़ सकते हैं ।
१५. भगवान कल्कि का अवतार कब होगा ?
भगवान कल्कि के अवतार में अभी बहुत समय शेष है ।
पुराणों के अनुसार कलियुग के अंत में भगवान कल्कि का अवतार होना सुनिश्चित है ।
कल्कि भगवान अवतार लेकर सनातन धर्म की मर्यादा की स्थापना करेंगे और इसके बाद
सतयुग आ जाएगा ।
भगवान समदर्शी हैं तो भक्तों का पक्ष क्यों लेते हैं ?
भक्त भगवान से जुड़े होते हैं । भगवान को अपना मानते हैं । भगवान को पुकारते हैं । भगवान पुकारने वाले की मदद करते हैं । अभक्त में अपना बल और भक्त में भगवान का ही बल होता है इसलिए समदर्शी होकर भी भगवान पुकारने वाले भक्त की मदद करते हैं ।
१७. क्या भाग्य बदल सकती है ?
हाँ । भगवान की कृपा से भाग्य बदल सकती है ।
१८. भाग्य और कर्म में कौन श्रेष्ठ है ?
भाग्य और कर्म दोनों श्रेष्ठ हैं । भाग्य और कर्म एक दूसरे के पूरक होते हैं ।
१९. भजन करने का क्या फल होता है ?
भजन करने का फल अवश्य होता है बशर्ते भजन प्रेम और विश्वास से किया जाय । भजन से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है ।
२०. जीवन में दुःख दूर करने के लिए क्या करना चाहिए ?
भगवत शरणागति । यह उत्तम साधन है । प्रेम और विश्वास से भजन करने वाले सुखी रहते है ।
२१. संत लोग भजन करते हैं । क्या उनके जीवन में दुःख नहीं होता है ।
संत के जीवन में जितना सुख होता है उतना सुख और किसी के जीवन में नहीं होता । सुख का मतलब वाह्य सुख से नहीं आत्मानंद से होता है ।
२२. क्या भजन करने वाले के जीवन में कभी दुःख नहीं आता है ?
सुख और दुःख सबके जीवन में आते हैं । लेकिन जो भगवान से जुड़े होते हैं उनके जीवन में दुःख बाद में भगवान का अनुग्रह पहले आ जाता है । इससे जीवन आसानी से चलता जाता है ।
२३. संसार में लोग दुखी क्यों रहते हैं ?
भगवान से दूरी रखने के कारण ही लोग दुखी होते है । कई लोग भूंखे सोते हैं । न खाने को भोजन और न पहनने को कपड़ा मिलता है । लेकिन किसी साधु को कभी भोजन और वस्त्र की कमी नहीं रहती । साधू लोग भूंखे नहीं सोते हैं । ठाठ से रहते हैं । जो भगवान से जुड़ें हैं और प्रेम से भजन करते हैं उनके लिए ‘रोटी लूगा नीके राखै’ लागू होता है । यह रामजी की व्यवस्था है ।
२४. क्या बिना कर्तव्य पालन किए भजन सफल हो सकता है ?
जीवन में कर्तव्य का निर्वहन बहुत जरूरी होता है । निष्ठापूर्वक कर्तव्य पालन करने से ही भजन सफल होता है ।
२५. यदि जीवन में सत्य का अभाव है तो क्या भजन फलदाई होगा ?
यदि जीवन में सत्य का अभाव है तो भजन फलदाई नहीं होगा । जीवन में सत्य बहुत जरूरी है । सत्य और भजन एक दूसरे के पूरक है । असत्य भजन में बाधक है ।
२६. यदि जीवन में माता-पिता का सम्मान नहीं है तो क्या पूजा-पाठ का फल मिलता है ?
माता-पिता आदि गुरजनों का सम्मान जरूरी है । माता-पिता को कष्ट देने वालों के पूजा-पाठ, दान, पुण्य आदि सार्थक नहीं होते हैं ।
जीवन-मरण के चक्र से छूटकर भगवान को प्राप्त कर लेना ही मुक्ति है ।
२८. मुक्ति प्रदाता कौन है ?
भगवान मुक्ति प्रदाता हैं । देवी और देवता मुक्ति नहीं देते ।
२९. देवी और देवता क्या दे सकते हैं ?
देवी और देवता भाग्य से अधिक नहीं दे सकते हैं ।
३०. भगवान को क्या प्रिय है ?
३१. भगवान को क्या अप्रिय है ?
३२. भगवान राक्षसों का विनाश क्यों करते हैं ?
भगवान राक्षसत्व का विनाश करते हैं । राक्षसों का नहीं । कई राक्षस भगवान के भक्त भी होते हैं ।
राक्षस का मतलब केवल भारी भरकम शरीर वाले निर्दयी प्राणी से नहीं होता है । जिसके अंदर राक्षसत्व आ जाए वही राक्षस होता है ।
माता-पिता और भगवान को न मानना और साधु-संतों का निरादर करना तथा दूसरे के धन और स्त्री आदि पर नजर रखना ही राक्षसत्व है ।
३५. वर्णाश्रमधर्म किसकी देन है ?
ग्रंथों के अनुसार वर्णाश्रमधर्म भगवान की देन है । उदाहरण के लिए गीता में भगवान कहते हैं कि वर्णाश्रमधर्म मैंने ही बनाया है ।
३६. वर्णाश्रमधर्म में वर्णधर्म का निर्धारण किससे होता है ?
ग्रंथों के अनुसार वर्णाश्रमधर्म में वर्णधर्म का निर्धारण पूर्व जन्म के कर्म से होता है ।
३७. ग्रंथों के अनुसार कलियुग में वर्णाश्रमधर्म की क्या स्थिति होती है ?
ग्रंथों के अनुसार कलियुग आने पर धीरे-धीरे वर्णाश्रमधर्म क्षीण होता जाता है और समाप्त हो जाता है ।
सनातन धर्म में चार आश्रम होते हैं । व्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास । इन चारों आश्रम के अपने-अपने धर्म-नियम हैं जिन्हें आश्रम धर्म कहा जाता है ।
३९. ग्रंथों के अनुसार कलियुग में आश्रम धर्म की क्या स्थिति होती है ?
आश्रम धर्म भी धीरे-धीरे क्षीण होकर लगभग समाप्त हो जाता है ।
४०. क्या भगवान को प्राप्त करने के लिए सन्यास धर्म का पालन जरूरी है ?
४१. क्या गृहस्थ को भी भगवान मिल सकते हैं ?
हाँ । गृहस्थ को भगवान जल्दी मिल जाते हैं बशर्तें गृहस्थाश्रम में रखकर भगवान से जुड़कर रहा जाय और उनसे प्रेम किया जाय । भगवान की शरणागति ले ली जाय तो कृपा मिल जाती है ।
४२. किस पर भगवान जल्दी कृपा करते हैं ?
धर्म की कोई एक परिभाषा नहीं है । इसके कई स्वरूप हैं । इसका निर्धारण देश,काल और परिस्थिति पर भी निर्भर करता है । फिर भी सनातन परंपरा में परहित, सत्य, अहिंसा और दया को धर्म कहा जाता है ।
४४. क्या पूजा-पाठ धर्म है ?
पूजा-पाठ धर्म की क्रिया है ।
इसके भी कई स्वरूप हैं । फिर भी परपीड़ा, झूठ, निंदा, और हिंसा को ग्रंथों ने अधर्म कहा है ।
४६. भक्त का प्रमुख लक्षण क्या होता है ?
भक्ति के कई स्वरूप हैं । फिर भी सरलता और दीनता को भक्ति का परिमाण समझना चाहिए ।
४८. भक्ति की सबसे उच्च अवस्था क्या है ?
चर-अचर सबमें श्रीसीताराम के दर्शन करना ।
४९. भगवान के भजन-पूजन का अधिकार किस-किसको है ?
श्रीरामचरितमानसजी के अनुसार भगवान के भजन-पूजन का अधिकार चर-अचर, स्त्री, पुरुष, नपुसंक, इत्यादि सभी को है । कोई भी हो, किसी भी देश-जाति का हो सबको राम से जुड़कर अपना परम कल्याण करने का अधिकार है ।
५०. मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है ?
भगवान श्रीसीतारामजी के चरणों में प्रेम मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है यदि यह उपलब्धि न मिली तो मनुष्य जीवन निरर्थक माना जाता है । हर किसी को अपने जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि प्राप्त करने का अधिकार है और इसलिए हर किसी को भगवान राम से जुड़ने का प्रयास करना चाहिए ।
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