हे रघुवंश हीरे राम जी ! हे रघुनाथ जी ! आप मेरी बात सुनिए । आप तो जानते ही हैं कि यह संसार दीन-मलीन से नाता तोड़ लेता है । ऐसी स्थिति में मैं आपको छोड़कर और किसके बल पर रहूँ । हे नाथ ! मेरा कोई दूसरा नहीं है । आप ही एक मेरे हो ।
हे सीतानाथ ! मैं दोनों हाथ जोड़कर आपसे कह रहा हूँ
कि मेरे मुहँ से यदि कोई गीत निकले तो वह आपके गुन समूह ही हों । अर्थात मैं कभी
आप के गुणों को छोड़कर और किसी संसारी (कलियुगी) गीतों का गायन न करूँ । ऐसे गीत
मेरे मुँह से न निकले ।
मेरे शिर पर सदैव आपका हाथ रहे । और मेरी जिह्वा राम-राम पुकारती रहे । हे प्रभु ! मुझे दुर्मति न घेरे अर्थात कभी भी मैं आप से, आपके गुणों से विमुख होकर न रहूँ । जिससे आपके चरणकमलों में मेरी प्रीति सदैव बनी रहे । क्योकि जिसे दुर्मित घेर लेती है वह आव-बाव बकने लगता है और राम जी से विमुख होकर रहता है । भगवान को न मानना भी दुर्मति का ही परिणाम होता है । हे प्रभु मुझे सदैव सुबह और शाम आपका ध्यान होता रहे ।
आपकी विशेष कृपा मुझ पर सदैव बनी रहे । और इसके
अतरिक्त मैं और किस बात की कामना करूँ । भाव यह है कि रघुनाथ जी की कृपा मिल जाने
से सबकुछ मिल जाता है । कुछ भी पाना शेष नहीं रहता । ऐसे में कई चीज चाहने से,
माँगने से क्या लाभ । कृपा प्राप्त कर लेने में बड़ा लाभ है । भगवान राम की कृपा से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण
हे प्रभु यह
दीन संतोष कहीं भी रहे लेकिन आप से दूर न रहे । आप सदा इसके समीप रहें । अर्थत
इसका और आपका कभी दुराव न हो । और मुझे चाहे बार-बार जन्म ही क्यों न लेना पड़े
लेकिन मेरा और आपका साथ न छूटे । अर्थात मेरा और आपका सेवक और स्वामी का नाता सदैव
बना रहे ।
सुनों राम रघुनाथ रघुवंश
हीरे हो ।
तुम बिनु रहौं नाथ बल
केहि केरे हो ।।
दीन मलीन से जग नाता तोरे
हो ।
दूजा नहीं नाथ कोई तुम्ही
एक मेरे हो ।।
कहौं सीतानाथ मैं दुहूँ
कर जोरे हो ।
गाएँ कोई गान जो गुनगन
तेरे हों ।।
शिर पे तेरा हाथ रहे जीहा
राम टेरे हो ।
पद कंज प्रीति रहे
दुर्मति न घेरे हो ।।
सदा तेरा ध्यान ही साँझ
सवेरे हो ।
चाहों और नाथ क्या तव
कृपा घनेरे हो ।।
छूटे नहीं साथ तेरा चाहे
बहु फेरे हों ।
रहे संतोष कहीं सदा आप
नेरे हों ।।
।। असहाय सहायक राम रघुनाथ जी की जय ।।
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