सुंदरकाण्ड की प्रसिद्ध चौपाई- ‘प्रात लेइ जो नाम हमारा ।
तेहिं दिन ताहिं न मिलइ अहारा’ के अनुसार कुछ लोग कहते, सोचते अथवा समझते हैं
कि हनुमान जी का नाम प्रातः काल नहीं लेना चाहिए । इस चौपाई पर लोगों ने बहुत से
व्याख्यान भी दिए हैं । और अपने-अपने तरफ से समझाने का प्रयास भी किया है ।
लेकिन इस चौपाई के
माध्यम से हनुमान जी ने विभीषण जी को भगवान श्रीराम की दीनों पर कृपा, उनकी
दयालुता, उनकी सरलता, भक्त वत्सलता और शरणागत वत्सलता को दिखाने के लिए ऐसा कहा कि
जब मुझ पर भगवान श्रीराम ने कृपा कर दिया तब आप पर तो अवश्य ही करेंगे । क्योंकि
एक तो मैं वानर जो स्वभाव से ही चंचल होते हैं । दूसरे मैं सब प्रकार से हीन हूँ ।
इतना हीन हूँ कि कोई सुबह-सुबह नाम भी ले ले तो उसे उस दिन भोजन तक न मिले । इतना
हीन होने पर भी रामजी ने मुझे अपना लिया इसलिए आपको भी अवश्य अपना लेंगे ।
अतः
उपरोक्त चौपाई का यह मतलब नहीं है कि हनुमानजी का नाम प्रातः काल नहीं लेना चाहिए
। अपनी दीनता दिखाने के लिए और रामजी दीनों पर विशेष कृपा करते हैं यह समझाने
के लिए हनुमानजी ने ऐसा कहा था ।
जब तक वानर-भालू राम
जी से नहीं मिले थे, उन पर रामजी की कृपा नहीं हुई थी तब अवश्य ऐसा था कि लोग
वानरों और भालुओं को विकारी समझते थे और ऐसा मानते थे कि वानर और भालू का सुमिरण
करने से अशुभ होता है-‘अशुभ होइ जिनके सुमिरन ते वानर-भालु-विकारी’ । लेकिन
जब से राम जी ने अपनाया तब से वानरों-भालुओं का सुमिरण शुभ हो गया । वानर-भालु
पवित्र हो गए और रामजी ने इनको अपना मित्र बना लिया ।
श्रीवाल्मीकि जी
महाराज ने श्रीआनंद रामायण में ऐसा लिखा है कि हनुमान जी का नाम प्रातः काल लेने
से शुभ होता है । इसलिए जो सुबह नींद खुलते ही हनुमानजी का नाम लेता है उसका दिन
अच्छा जाता है । अतः हनुमान जी का नाम प्रातः काल अवश्य लेना चाहिए ।
।। जय श्रीराम ।।
।। जय श्रीहनुमान ।।
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