श्रीरामचरितमानस जी के बालकाण्ड में निम्नलिखित चौपाइयाँ ऐसी
हैं जिन्हें लेकर कई लोग भ्रमित हैं और दूसरे लोगों को भी भ्रमित करते रहते हैं । कुछ
लोग जान बूझकर भी मनमाना अर्थ करते हैं और समुचित तथ्य को प्रकाशित नहीं करते अथवा
समझना और समझाना ही नहीं चाहते-
जेहि अघ बधेउ ब्याध जिमि बाली ।
फिरि सुकंठ सोइ कीन्हि कुचाली ।।
सोइ करतूति बिभीषन केरी ।
सपनेहूँ सो न राम हियँ हेरी ।।
बालि ने सुग्रीव की पत्नी रूमा को सुग्रीव के जीते जी उसकी
इच्छा के बिपरीत जबरन रख लिया था । इस पाप के चलते ही रामजी ने बालि का वध कर दिया
था । बाद में सुग्रीवजी ने तारा को अपनी पत्नी बना लिया और बिभीषण जी ने मंदोदरी
को पत्नी बना लिया । यही सुग्रीव की कुचाल और विभीषण की करतूति है ।
लेकिन रामजी ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया । क्योंकि सुग्रीव
और विभीषण ने पाप नहीं किया था । इस बात को बड़ी गंभीरता से समझना चाहिए ।
कई लोग कहते हैं कि तारा
और मंदोदरी तो रामजी की भक्ता थीं तो फिर ये लोग सुग्रीव और विभीषण की क्रमशः
पत्नी बनी हों यह गलत है । क्योंकि तारा के लिए आया है- ‘लीन्हेसि परम भगति वर
माँगी’ । मंदोदरी के लिए आया है- ‘भवन गई रघुपति गुन गन बरनत मन माहि’ ।
लेकिन भक्ता होना और धर्मपूर्वक पत्नी होना गलत नहीं है ।
संत शिरोमणि गोस्वामी
तुलसीदास जी स्वयं इस बात को स्वीकार करते हैं कि सुग्रीव और विभीषण बंधु बधू से
भोग करते थे / हैं । गोस्वामी जी कहते हैं कि- ‘कीस-निसाचर की करनी न सुनी, न
बिलोकी, न चित्त रही है’ । विभीषण जी
को एक कल्प तक राज्य करने का वरदान दिया है रामजी ने इसलिए विभीषण के लिए गोस्वामी
कहते हैं कि- ‘अजहूँ बिलसै बर बंधुबधू जो’ । इससे यह बात प्रमाणित हो गई कि
सुग्रीव ने तारा को और विभीषण ने मंदोदरी को पत्नी बना लिया था ।
अब प्रश्न है कि सुग्रीव और विभीषण को दोष क्यों नहीं लगा ? जबकि
सनातन धर्म के अनुसार तो ऐसा कृत पाप की श्रेणी में आता है और अनुमोदित भी नहीं है
। इसका उत्तर निम्नवत है-
तारा और मंदोदरी
पंचकन्या में आती हैं । ये साधारण स्त्री नहीं हैं । हर महीने इन्हें कौमार्य
प्राप्त हो जाता है । इसलिए पति की मृत्यु के बाद बैधव्य दोष इन्हें केवल एक महीने
के लिए लगा था । उसके बाद कौमार्य प्राप्त होने पर स्वेच्छा से तारा सुग्रीव की और
मंदोदरी विभीषण की पत्नी बन गईं ।
इसलिए न सुग्रीव को और न ही विभीषण को दोष लगा । यदि न तारा की इच्छा होती और न मंदोदरी की और इसके बावजूद सुग्रीव तारा को और विभीषण मंदोदरी को पत्नी बना लेते तो तारा और मंदोदरी के कौमार्य के होते हुए भी इन्हें दोष लगता । बालि को पाप क्यों लगा क्योंकि न रूमा पंचकन्या में थी और न ही रूमा की इच्छा थी । इच्छा होती तो भी दोष लगता । एक बात और यदि बालि और रावण जीवित होते तो हर महीने कौमार्य प्राप्त होने के बावजूद भी दूसरे की पत्नी बन जाने पर दोष लगता-पाप होता ।
इसलिए मनुष्यों को ऐसा कभी नहीं सोचना चाहिए कि सुग्रीव और विभीषण ने ऐसा किया था और उन्हें दोष नहीं लगा था तो हम भी ऐसा कर सकते हैं । मनुष्यों के लिए इच्छा होने पर भी दोष लगेगा । इस प्रकार तारा सुग्रीव की और मंदोदरी विभीषण की पत्नी बन गई थीं और चारों रामजी के भक्त थे और उनका कृत दोष युक्त नहीं दोष मुक्त था । लेकिन यही कृत आम लोगों के लिए, भक्तों के लिए अनुमोदित नहीं है क्योंकि दोष युक्त है ।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि विभीषण जी का नाम प्रातः स्मरणीय द्वादश भक्तों में आता है । विभीषण जी का नाम लेने से पातक दूर होते हैं । ऐसे में यदि मंदोदरी को पत्नी बनाना दोष-पाप युक्त कृत होता तो भला विभीषण जी ऐसा क्यों करते ?
।। जय श्रीराम ।।
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