यह बात सबको पता है कि सुख और दुख अपने अधीन नहीं हैं । अगर ये अपने अधीन होते तो कोई दुखी नहीं रहता । क्या कोई दुख चाहता है ? दुख कोई नहीं चाहता है । हर कोई सुख चाहता है । लेकिन ऐसा देखा जाता है कि सुख चाहने पर भी नहीं मिलता और दुख बिना चाहे भी मिलता रहता है ।
इस प्रकार यह सत्य सिद्ध हो जाता है कि सुख और दुख
अपने अधीन नहीं हैं । किसी के भी दिन एक समान नहीं जाते हैं । कभी सुख तो कभी दुख
मिलता रहता है ।
लेकिन जो दीन-हीन हैं । जिनमें न अपना बल है और न
किसी दूसरे का बल है । उनके जीवन में तो दिन प्रति दिन दुर्दिन ही रहता है । दिनों
दिन उन्हें दुर्दशा भी झेलनी पड़ती है । और दिन-दिन यानी रोज दुख का भी सामना करना
पड़ता है । और तरह-तरह के दोष भी सताते रहते हैं ।
वैसे तो
हर जीव को अपने जीवन में कभी न कभी दुर्दिन, दुर्दशा, दुख और दोष का सामना करना
पड़ता है । लेकिन दीन-हीन को जीवन में इनका अधिक सामना करना पड़ता है ।
जीव के जीवन से दुर्दिन, दुर्दशा, दुख और दोष दूर
हो जाएँ ऐसा तभी संभव है जब उसे रघुवंश शिरोमणि भगवान राम की कृपा दृष्टि मिल जाये
। बिना रघुनाथ जी की कृपा के इनसे छुटकारा संभव नहीं है ।
भगवान
राम की कृपा दृष्टि मिलते ही दुर्दिन सुदिन में, दुर्दशा अनुकूल दशा में, दुख सुख
में और दोष गुण में बदल जाते हैं । इसलिए जीव को रामजी के चितवन की जरूरत होती है-
हे राम प्रभू मेरे भगवन ।
मैं चाह रहा तेरी चितवन ।।
करुणासागर संतोष शरन । है
ठौर इसे बस आप चरन ।।
नारद जी श्रीरामचरितमानस जी में भगवान श्रीराम से
कहते हैं कि-
मामवलोकय पंकजलोचन । कृपा
बिलोकनि सोचविमोचन
भगवान राम की कृपा दृष्टि तो शेष, महेश, गणेश,
व्रहमा जी आदि बड़े-बड़े देवता और सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार आदि जैसे
ऋषि-मुनि भी चाहते हैं । लेकिन मुझ जैसे दीन हीन जिनके एकमात्र अवलम्ब राम जी हैं ।
उनका तो जीवन भगवान राम की कृपा से ही चल सकता है और चलता है-
दीन मलीन हीन जग मोते राम
कृपा रंग चोखा है ।
संतोष के राम दया के धाम इसमें
नहि कछु धोखा है ।।
हम तो रामजी से यही प्रार्थना करते हैं-
दीनबंधु दीन पहिचान के ।
राघव कृपा करो जन जानि के ।।
रघुवंश
विभूषण भगवान श्रीराम की कृपा के बिना दुर्दिन, दुर्दशा, दुख और दोष दूर नहीं होते
। गोस्वामी जी श्रीविनयपत्रिका जी में कहते हैं कि-
दिन दुर्दिन दिन दुर्दशा
दिन दुख दिन दूषन
जब लौ तूँ न बिलोकिहै रघुवंश विभूषन ।।
।। रघुवंश विभूषन भगवान
श्रीराम जी की जय ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें