हे दीनबन्धु ! हे राघवजी ! मैं वास्तव में दीन-हीन हूँ । इस बात को आप गौर से देखकर निश्चित करके और मुझे अपना दास जानकर अब कृपा कीजिए ।
हे भगवान
! आप ने दीनों को सदा सम्मान देकर अपनाया है । और मुझ दीन को रखने वाला, मेरी
सुनने वाला आदि कोई दूसरा और कहीं भी नहीं है । अर्थात मुझ दीन के एक मात्र अवलंब
आप ही हो । इस बात का विश्वास करके हे राघव जी ! आप मुझ पर कृपा कीजिए ।
हे दशरथनन्दन आप बड़े दाता हैं, बड़े दानी हैं । आप
अपने कहे हुए वचन पर सदा अडिग रहते है । आप का जो दीनों से प्रीति और उनसे नेह निभाने
का, उनका सार-सभार करने का, प्रनतपालन का जो वाना है आप उस पर भी सदा अडिग रहते
हैं । अतः आप मेरा भी पालन कीजिए । हे राघव जी ! आप मुझ पर कृपा कीजिए ।
आप दशकंधर रावण के गुमान को तोड़ने वाले और विभीषणजी के प्राणों की रक्षा करने वाले हैं
। अतः आप मेरी भी रक्षा कीजिए । हे राघव जी ! मुझपर कृपा कीजिए ।
आप सुग्रीवजी और हनुमानजी के स्वामी और सखा हो । आप गीध जटायु को
तारने वाले हो । आप पत्थर की अहिल्या को तारने वाले और पत्थरों को नाव की तरह
तराने वाले हो । अर्थात आप की दीन-हीन पर विशेष कृपा है । आप गुणहीन को भी गुणवान
बना देते हो । अतः हे राघव जी ! आप मुझ दीन पर भी अपनी कृपा दृष्टि कीजिए ।
हे धनुष और वाण को धारण करने वाले रघुनाथ जी ! आप संतों, भक्तों और
ग्रंथों आदि द्वारा कहे गए अपने विरद को ह्रदय में उतारिये । अर्थात आप अपने विरद
का स्मरण कीजिए । और दीन संतोष पर कृपा करके अपने शरण में रख लीजिए । हे राघव जी !
मुझे अपना दास जानकर कृपा कीजिए –
दीनबंधु दीन पहिचानि के । राघव कृपा करो जन जानि के ।।
दीन राखे सदा सनमानि के । मोको दूजों नहीं यह मानी
के । राघव कृपा करो. ।।
राय दशरथ के देवैया बड़े दान के । बोल को तूँ अचल
निज वान के । राघव कृपा करो. ।।
तोड़नहारे दशकंध गुमान के । राखनहारे विभीषण के
प्रान के । राघव कृपा करो. ।।
सखा स्वामी कपीश हनुमान के । तारनहारे गीध पाषान
के । राघव कृपा करो. ।।
दीन संतोष धरैया धनु वान के । मोहूँ राखो विरद उर आन के । राघव कृपा करो. ।।
।। दीनबंधु राघव सरकार की जय ।।
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