मेरे कोशलाधीश भगवान श्रीराम बड़े अच्छे देवता हैं । इनकी सुंदरता करोड़ो कामदेवों से भी अधिक है । इनके कमल नयन बड़े ही सुंदर हैं । इनका सुंदर श्याम शरीर बड़ा ही मनोहर हैं । भगवान श्रीराम देवी सीता के साथ सदा शोभायमान रहते हैं ।
भगवान राम की भुजाएँ बहुत विशाल हैं । इसका एक मतलब है कि भगवान राम आजानुबाहु हैं । और दूसरा मतलब यह है कि संकट रुपी अथवा संसार रुपी समुंद्र में पड़े हुए अपने भक्तों को वे अपनी विशाल भुजाओं से आसानी से निकाल कर निहाल कर
देते हैं ।
भगवान राम अपने वाएँ हाथ में शारंग धनुष और दाएँ
हाथ में अमोघ वाण धारण किए हुए हैं । और अपनी कमर में वाणों से भरा हुआ सुंदर
तरकस बाँधे हुए हैं ।
भगवान राम वलि अथवा पूजा नहीं चाहते । रामजी केवल
प्रेम चाहते हैं । रामजी सुमिरन करने से अर्थात प्रेम से उनके नाम, रूप और लीला का
चिंतन करने से प्रसन्न हो जाते हैं । उनकी सब रीति जैसे दीन से प्रीति की रीति,
आरत जन के दुख को सुनकर द्रवित होने की रीति, शरणागत के पालन की रीति आदि बड़ी
पवित्र हैं । अर्थात रामजी ने कभी इनमें कोई कमी नहीं आने दिया है । उनकी रीति और
प्रति लोक और वेद आदि में प्रकाशित हैं ।
भगवान राम जन को सभी सुख देते हैं और उनके सभी दुख
दूर कर देते हैं । वे दीन-दुखी जन के बंधु –दीन बंधु हैं, आरत जन बंधु हैं ।
भगवान राम ऐसे करुणासागर हैं जो गुन को तो ग्रहण
करते हैं और अवगुन तथा पाप का हरण कर लेते हैं । वेद-पुराण कहते हैं कि भगवान राम से
सभी देश और काल सदैव परिपूर्ण रहते हैं । अर्थात कोई भी जगह-धरती, आकाश और पाताल
में ऐसी नहीं हैं जहाँ राम जी नहीं हैं । रामजी हर जगह समान रूप से व्याप्त हैं ।
और भूत, भविष्य और वर्तमान का कोई भी क्षण ऐसा नहीं है जब राम जी नहीं रहते । इस
प्रकार भगवान राम हर जगह और हर क्षण रहते हैं ।
भगवान राम सबके स्वामी हैं- सुर, नर, मुनि, जड़ और
चेतन सबके स्वामी हैं । भगवान राम का सबमें वास है । अर्थात भगवान राम जड़ और चेतन
सभी के अंदर रहते हैं । और राम जी सबकी गति जानते हैं । अर्थात राम जी से कुछ भी
छुपा नहीं है । वे अन्दर और बाहर दोनों को जानते हैं । मतलब रामजी से दुराव नहीं किया
जा सकता है । उनसे कुछ छुपाया नहीं जा सकता । भगवान राम बाहरजामी भी हैं और भगवान
राम अंर्तजामी भी हैं ।
करोड़ों कामनाएँ करके कौन बहुत से देवताओं को पूजता
फिरे ? गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज कहते हैं कि उनकी सेवा कीजिए जिनकी सेवा स्वयं
भगवान शंकर जी करते हैं ।
कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान राम जैसे
सीधे-सरल, रीति-प्रीति और विरद का निर्वाह करने वाले सर्व समर्थ देवता के होते हुए
भी लोग दुखी रहते हैं । अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए यहाँ-वहाँ चक्कर लगाते रहते
हैं । उनकी शरण में, उनकी सेवा में क्यों नहीं चले जाते जिनकी सेवा शंकर जी सरीखे
देवता किया करते हैं –
है नीको मेरो देवता कोशलपति राम ।
सुभग सरोरुह लोचन , सुठि सुंदर श्याम ।।
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तुलसिदास तेहि सीइये, शंकर जेहि सेव ।।
- श्रीविनयपत्रिका ।
।। कोशलाधीश भगवान राम की
जय ।।
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