राजा सुरथ और उनकी प्रजा दोनों भगवान राम के अनन्य भक्त थे । राजा सुरथ की सेना भी रामजी की भक्त थी । सैनिक भी रामजी का स्मरण और गुणगान करते रहते थे ।
राजा सुरथ
स्वयं तो रामजी का दर्शन करना चाहते थे । और ऐसा वह अयोध्या जाकर भी कर सकते थे ।
लेकिन वे चाहते थे कि उनके साथ-साथ उनकी प्रजा का भी कल्याण हो । इतनी बड़ी प्रजा
का कल्याण तो रामजी के कुण्डलपुर आने से ही हो सकता था ।
इसलिए राजा सुरथ का मानना था कि मैं अयोध्या जी
जाकर दर्शन नहीं करूँगा । रामजी को स्वयं दर्शन देने कुण्डलपुर आना होगा । इसलिए
राजा सुरथ ने यज्ञ का घोड़ा पकड़ा और युद्ध में सभी सैनिकों व योद्धाओं को पराजित कर
दिया । और अंत में सबको छुड़ाने और राजा
सुरथ को दर्शन देने भगवान राम स्वयं आए ।
राजा सुरथ ने अपने परिवार के साथ भगवान राम का
दर्शन और पूजन किया । और प्रार्थना किया कि भगवन अपने दर्शन का लाभ हमारे राज्य की
प्रजा और अन्य प्राणियों को भी देकर उन्हें भी कृतार्थ करने की कृपा करें ।
भगवान राम राजा सुरथ की इस प्रार्थना पर कुण्डलपुर
में तीन दिन रुके । जैसे आजकल राम जी की शोभा यात्रा निकाली जाती है । वैसे ही
राजा सुरथ ने भगवान श्रीराम की साक्षात शोभा यात्रा निकाली ।
राजा सुरथ ने अपने राज्य में सब ओर राम जी को रथ
पर बैठाकर सबको दर्शन कराया । इस प्रकार राजा सुरथ ने केवल अपना कल्याण नहीं किया
बल्कि अपने राज्य की समस्त प्रजा और साथ ही अन्य प्राणियों का भी भगवान राम का
दर्शन कराकर कल्याण किया ।
।। जयश्रीराम ।।
श्री सीता राम
जवाब देंहटाएंजय श्रीसीताराम
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