आज चैत्र मास, जिसे मधुमास भी कहा जाता है, के शुक्ल पक्ष का प्रथम दिन है । हिंदू नव वर्ष का आरंभ इसी दिन से होता है । इसी दिन से चैत्र नवरात्र का भी आरंभ होता है । और इसी दिन के नवें दिन भगवान श्रीराम का जन्म महामहोत्सव मनाया जाता है । जो चैत्र राम नवमी के नाम से प्रसिद्ध है और इस दिन का बड़ा महत्व है (जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं )।
सनातन धर्म तो करोड़ो वर्ष पुराना है लेकिन विक्रम संवत विक्रमादित्य जी के समय से चला आ रहा है फिर भी यह अग्रेजी वर्ष से ५७ वर्ष आगे है । वर्तमान अंग्रेजी वर्ष में ५७ जोड़ने पर वर्तमान विक्रम संवत प्राप्त हो जाता है । इसीतरह वर्तमान विक्रम संवत में से ५७ घटाने पर वर्तमान अंग्रेजी वर्ष प्राप्त होता है ।
सनातन धर्म के आरंभ से ही हमारे ऋषियों ने एक महीने में तीस दिन और एक वर्ष में १२ महीने होते हैं ऐसा निर्धारण किया था । दिनों के नामों का निर्धारण और उनका क्रम भी हमारे ऋषियों ने ही तय किया है । और यह सब ग्रहों के गति के अनुसार निर्धारित किया गया था ।
हिंदुओं के सभी शुभ मुहूर्त हिंदू पंचांग, जो विक्रम संवत पे आधारित है, से ही निर्धारित किए जाते हैं । यह ज्योतिष विज्ञान पर आधारित है । जिसमें ग्रहों के गति के आधार पर तिथियों का निर्धारण किया जाता है । यह इतना वैज्ञानिक है कि इससे खगोलीय घटनाओं जैसे-सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण आदि का सटीक निर्धारण वर्षों पूर्व ही पंडित लोग कर लेते हैं । और पंचांग में वर्षों पूर्व ही लिख दते हैं ।
तिथि लोप जिसे तिथि क्षय भी कहा जाता है, ग्रहों
के गति से ही उत्पन्न होता है । इसलिए दिनों की संख्या को समायोजित करने के लिए अधिकमास
जिसे मलमास भी कहा जाता है, बनाया गया था । मलमास भगवान शंकरजी को समर्पित होता है
।
प्राचीन समय में विदेशियों के पास ऐसा ज्ञान नहीं
था । वे लोग जब जंगलों और गुफाओं में रहते थे तब भारत में एक बहुत उन्नत समाज था ।
कई लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि विदेशों में
बहुत दिनों तक एक वर्ष में केवल दस महीने माने जाते थे । उनके कैलेंडर में एक वर्ष
में केवल दस महीने होते थे । और उनके यहाँ एक वर्ष में केवल ३०४ दिन ही होते थे ।
इस प्रकार एक वर्ष में दस महीने और एक वर्ष में ३०४ दिन का कैलेंडर उनके पास था ।
जबकि अपने यहाँ ऐसा नहीं था । क्योंकि अपना ज्ञान
और विज्ञान बहुत उन्नत था । यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत के ज्ञान से ही
प्रभावित होकर विदेशियों ने बहुत कुछ सीखा है और दिनों, महीनों और वर्ष का सही ज्ञान प्राप्त किया
है ।
इसलिए सभी
सनातन धर्मी को अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व होना चाहिए । और सबको अपना नया
वर्ष मनाना चाहिए । अपने आस-पास के लोगों, अपने बच्चों को इसके बारे में बताना और
जागरूक करना चाहिए ।
ग्रंथों में नव वर्ष कैसे मनाएं, इसका वर्णन मिलता है । क्या खाएँ जिससे एक वर्ष तक कोई रोग न सताए आदि का वर्णन है । फिर भी कम से कम घर में वंदनवार लगाएँ, पताका लगायें, हो सके तो नए कपड़े पहनें और दीपक जलाएँ । अपने-अपने आराध्य का पूजन करें, भोग लगाएँ और प्रसाद वितरित करें और अपना नव वर्ष मनाएं । कुछ नया करने का संकल्प अथवा कोई संकल्प लेना हो तो आज लेना चाहिए । चैत्र मास के शुक्ल पक्ष से आरंभ होने वाला यह नव वर्ष अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला तथा सुख और समृद्धि प्रदान करने वाला है ।
।। जय श्रीराम ।।
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