भगवान श्रीराम ने जन्म-अवतार लेकर सारे संसार को आलोकित कर दिया । रामजी के प्रगट होते ही ही तीनों लोक और चौदहों भुवन आलोकित हो गए । सभी चर-अचर में सुख-शांति का संचार हो गया । रामजी के जन्म लेने से देवता-गंधर्व आदि के कष्ट मिटे, ऋषियों-मुनियों, मनुष्यों आदि के कष्ट मिटे । अनेकानेक शापित प्राणियों के जैसे ताड़का, अहिल्या, कबंध आदि के कष्ट मिटे । संसार में नियम-नीति, मर्यादा, ज्ञान, वैराग्य और धर्म का प्रकाश हुआ ।
रामजी रूप के समुंद्र हैं, रामजी शील के समुंद्र हैं, रामजी सुख के समुद्र हैं और रामजी सभी सदगुणों के
समुद्र हैं ।
रामजी ने
अपने रूप से संसार को आलोकित किया । जो देखे वह देखता ही रह जाए । जिधर से निकलें
उधर ही दर्शन करने वालों की भीड़ लग जाए । रामजी के रूप की चर्चा होने लगे । यहाँ
तक राक्षस भी रूप देखकर मोहित हो जाएँ । परम वैरागी ऋषि मुनि भी इनके रूप पे मोहित
होकर स्त्री भाव को प्राप्त होकर इन्हें पति रूप में वरण करने की कामना करने लग गए
।
रामजी ने अपने शील से सारे संसार को आलोकित किया ।
तीनों लोकों और चौदहों भुवनों में रामजी के शील- उदारता की चर्चा होती है ।
अहिल्या, शवरी, केवट, निषाद, कोल, भील, किरात, गीध, वानर, भालू और राक्षस सभी को
रामजी ने अपनाया । अपना बनाया । निषाद, वानर, भालू आदि रामजी के दरबार में विराजते
हैं ।
रामजी ने अपने सुख से सारे संसार को अवलोकित कर
रखा है । वैसे तो संसार को दुखमय कहा गया है लेकिन संसार में जो भी चर-अचर सुख का
अनुभव करते हैं अर्थात संसार का सभी सुख, सुख समुद्र की एक बूँद मात्र है ।
रामजी में कोई भी गुण न्यूनता में नहीं हैं ।
रामजी सभी गुणों के सागर हैं । इन गुणों के चलते ही शत्रु भी राम जी की बड़ाई करते
हैं । सराहना करते हैं ।
समस्त पुरवासी, सभी परिवार के लोग, गुरूजी, माता जी, पिता जी और अन्य सभी हित-मित्र और अन्य प्राणी भी रामजी के स्वभाव से सुख को प्राप्त होते थे । सुखी होते थे । रामजी का स्वभाव सभी को सुख देने वाला है । इस प्रकार रामजी ने सारे संसार को अपने स्वभाव से आलोकित किया । तीनों लोकों और चौदहों भुवनों में सुर, नर, मुनि आदि सभी रामजी के स्वभाव की चर्चा करते हैं । रामजी के स्वभाव से राम जी की पहचान होती है । रामजी के शील और सरल स्वभाव से ही दीन हीन मलीन जैसे खोटे सिक्के भी चलते हैं ।
राम जनमि जग कीन्ह उजागर ।
रूप शील सुख सब गुन सागर ।।
पुरजन परिजन गुर पितु
माता ।
राम सुभाउ सबहि सुखदाता ।।
।। जय श्रीराम ।।