सीतानाथ रघुनाथ पाप ताप हारी । द्रवउ रघुवंशमणि धनुष वाण धारी ।। -विनयावली

एको देवो रामचन्द्रो व्रतमेकं तदर्चनम । मंत्रोअप्येकश्च तत्नाम शास्त्रं तद्ध्येव तत्स्तुतिः ।। -पद्मपुराण ।


दीनबंधु तुहीं एक मोर गोहारी । देखउ रघुनाथ अब ओर हमारी ।। -विनयावली ।।

मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

बिगरी बनै हनुमान के बनाए से

 । श्रीहनुमते नमः 

। जय हनुमान जय जय हनुमान 

। बिगरी बनै हनुमान के बनाए से ।। 


दीनहित रामदूत गुनगन गाए से । 

बिगरी बनै हनुमान के बनाए से ।।

केसरीसुवन पवनपूत कृपा पाए से । 

जीवन जलज खिले दुःख तम जाए से ।। बिगरी बनै हनुमान. ।। 

महावीर हनुमान अंजना के जाए से । 

कौन ऐसो काज न होय हाथ लाए से ।। बिगरी बनै हनुमान. ।। 

देव वंदिछोर हनुमान के छुड़ाए से ।

ऐसो कौन छूटै नहि जग ग्राह खाए से ।। बिगरी बनै हनुमान. ।। 

संकटमोचन हनुमान के उड़ाए से । 

रोग शोक उड़ै जैसे तृण आँधी आए से ।। बिगरी बनै हनुमान. ।। 

युग-युग की भूँख हनुमान को सुनाये से । 

सहजहिं मिट जाए राम प्रेम पाए से ।। बिगरी बनै हनुमान. ।। 

रीझैं रघुनाथ हनुमान के रिझाए से । 

निज जन जानैं राम कपि के जनाए से ।। बिगरी बनै हनुमान. ।। 

मिलैं सीताराम हनुमान के मिलाए से । 

अपनावैं राम कपिनाह अपनाए से ।। बिगरी बनै हनुमान. ।। 

दीन संतोष हनुमान के दिलाये से । 

शरण पुर बास मिलै कपिके बसाए से ।। बिगरी बनै हनुमान. ।। 


।।  जय श्रीसीताराम ।।   

बुधवार, 21 अप्रैल 2021

श्रीराम नवमी का उत्सव मनाने से मंगल होता है और अमंगल का नाश होता है

श्रीराम नवमी का उत्सव मनाने से मंगल होता है । श्रीराम नवमी का उत्सव मनाने से अमंगल का नाश होता है । इसलिए श्रीराम नवमी का उत्सव सभी को मनाना चाहिए । और ऐसा मनाना चाहिए कि लगे कि आज कोई उत्सव है ।

 

मंगल भवन और अमंगल का हरण करने वाले भगवान श्रीराम का जन्म महोत्सव मनाने से घर-परिवार में सबका कल्याण होता है । अविनाशी भगवान श्रीराम का जन्म महोत्सव मना लेने से घर-परिवार में और किसी के जन्मदिन मनाने की कोई जरूरत नहीं रह जाती । और  श्रीराम जन्म महोत्सव मनाये बिना घर-परिवार के लोगों का जन्म दिन मनाने का कोई मतलब नहीं रहता ।

 

 आज तीनों लोकों में और चौदहों भुवनों में भगवान श्रीराम के जन्म का उत्सव श्रीरामनवमी महामहोत्सव मनाया जाता है । आज के दिन श्रीयोध्या जी में बड़े-बड़े देवता, सिद्ध, मुनि और तपस्वी आदि भी अपना रूप बदलकर आते हैं और भगवान श्रीराम का दर्शन करके, सेवा करके अपने को धन्य करते हैं- असुर, नाग, खग नर मुनि देवा । आइ करहिं रघुनायक सेवा ।।

 

आज के दिन जो लोग रख सकें उन्हें पूरे दिन व्रत रखना चाहिए । जप और पूजा करना चाहिए । घर में वंदनवार लगाना चाहिए । घर के पूजा स्थल को सजाना चाहिए । पुष्प माला, इत्र, चन्दन, धूप, घी के दीप और नैवेद्य आदि भगवान को अर्पण करना चाहिए । जितना और जैसा हो सके उतना करते हुए प्रसन्नतापूर्वक श्रीराम जन्म महोत्सव मनाना चाहिए । जितना घर के किसी सदस्य का जन्म दिन मनाने के लिए लोग करते हैं उससे कहीं अधिक आज करना चाहिए ।

 

प्रेमपूर्वक श्रीराम जन्म महामहोत्सव मनाना चाहिए । आज के दिन व्रह्माजी, शंकरजी, नारदजी, और सनकादिक ऋषि भी श्रीराम जन्म महोत्सव मनाकर अपने को धन्य करते हैं-

 

राम नवमी की महिमा न्यारी सुर नर मुनि सब गाइ रहे ।

सुक सनकादिक व्रह्मा आदिक जीवन सफल बनाय रहे ।।

सुर नर मुनि खग नाग असुर अरु तीर्थ अयोध्या आइ रहे ।

विविध रूप धरि दर्शन पूजन सरजू मुदित नहाय रहे ।।

दीनदयाल भगत आरतिहर गुनगन सकल लुभाय रहे ।

दीन संतोष आज को उत्सव चौदह भुवन मनाय रहे ।।

 

।। श्रीरामनवमी महामहोत्सव की जय ।।

  

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

आजु महामंगल कोसलपुर सुनि नृप के सुत चारि भए

 आज यानी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के नवमी तिथि को राजा दशरथ के चार पुत्र हुए हैं, सुनकर कोसलपुर में महामंगल हो रहा है । घर-घर में सुंदर-सुहावने सोहर (मंगल गीत) गाए जा रहे हैं । और आकाश में तथा नगर में बाजने-नगाड़े आदि बजाए जा रहे हैं ।

 

भगवान श्रीराम के जन्म के समय देवता, किंनर और मुनि अपने-अपने यान सजा-सजाकर आए और भगवान के गुण-गणों का गायन करने लगे । आकाश में प्रसन्नचित होकर अप्सराएँ नृत्य कर रही हैं और बार-बार चुने हुए पुष्पों की वर्षा कर रही हैं ।

 

राजा दशरथ अति आनंदित होकर जल्दी से गुरू और व्राह्मणों को बुलाकर भवन के अंदर गए । और पुत्रों का जातिकर्म संस्कार करके सुवर्ण, वस्त्र, और मणियों से सजी हुई गौओं के समूह दान दिए ।

 

युवतियाँ थाल भर-भर कर दल, फल, फूल, दूब, दही, रोली आदि मांगलिक चीजें लेकर गीत गाती हुईं चलीं जिससे अवध की गलियों में भीड़ हो गई । बंदी जन महाराज दशरथ के वंश का अनोखा यश गा रहे हैं ।

 

जहाँ-तहाँ सुवर्ण कलश, चवँर,पताका और ध्वजा तथा नई-नई बंदनवारे लगाई गई हैं । सभी लोग एक रंग में रंगे हुए अबीर उड़ा रहे हैं और अरगजा छिड़क रहे हैं ।

 

 तीनों लोकों में आनंद उमड़ चला है । आनंद में भरे हुए सभी लोग अन-धन लुटाकर अपने घर खाली कर दिए, परंतु गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज कहते हैं कि भगवान राम की कृपा भरी दृष्टि पड़ते ही सबके घर पूर्ववत भरे ही दिखाई पड़ रहे हैं ।

 

इसप्रकार तीनों लोकों में राम जन्म महामहोत्सव मनाया जा रहा है । तीनों लोकों में आनंद उमड़ रहा है-

 

आजु महामंगल कोसलपुर सुनि नृप के सुत चारि भए ।

सदन-सदन सोहिलो सोहावनो, नभ अरु नगर निसान हए ।।

सजि सजि जान अमर किंनर मुनि जानि समय सम गान ठए ।

नाचहिं नभ अप्सरा मुदित मन, पुनि पुनि बरषहिं सुमन चए ।।

अति सुख बेगि बोलि गुरू भूसुर भूपति भीतर भवन गए ।

जातकरम करि कनक, बसन, मनिभूषति सुरभि-समूह दए ।।

दल-फल-फूल, दूब-दधि-रोचन, जुवतिन्ह भरि भरि थार लए ।

गावत चलीं भीर भइ  बीथिन्ह, बन्दिंह बाँकुरे बिरद बए ।।

कनक-कलस, चामर-पताक-धुज, जँह तँह बंदनवार नए ।

भरहिं अबीर, अरगजा छिरकहिं, सकल लोक एक रंग रए ।।

उमगि चल्यौ आनंद लोक तिहुँ, देत सबनि मंदिर रितए ।

तुलसिदास पुनि भरेइ  देखियत, रामकृपा चितवनि चितए ।।

 

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जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं

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।।श्रीराम जन्म महामहोत्सव की जय ।।

मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

सभी शुभ मुहूर्त हिंदू पंचांग से ही निर्धारित किए जाते है: हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत २०७८

आज चैत्र मास, जिसे मधुमास भी कहा जाता है, के शुक्ल पक्ष का प्रथम दिन है । हिंदू नव वर्ष का आरंभ इसी दिन से होता है । इसी दिन से चैत्र नवरात्र का भी आरंभ होता है । और इसी दिन के नवें दिन भगवान श्रीराम का जन्म महामहोत्सव मनाया जाता है । जो चैत्र राम नवमी के नाम से प्रसिद्ध है और इस दिन का बड़ा महत्व है (जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं )। 

 

सनातन धर्म तो करोड़ो वर्ष पुराना है लेकिन विक्रम संवत विक्रमादित्य जी के समय से चला आ रहा है फिर भी यह अग्रेजी वर्ष से ५७ वर्ष आगे है । वर्तमान अंग्रेजी वर्ष में ५७ जोड़ने पर वर्तमान विक्रम संवत प्राप्त हो जाता है  इसीतरह वर्तमान विक्रम संवत में से ५७ घटाने पर वर्तमान अंग्रेजी वर्ष प्राप्त होता है 

 

सनातन धर्म के आरंभ से ही हमारे ऋषियों ने एक महीने में तीस दिन और एक वर्ष में १२ महीने होते हैं ऐसा निर्धारण किया था ।  दिनों के नामों का निर्धारण और उनका क्रम भी हमारे ऋषियों ने ही तय किया है । और यह सब ग्रहों के गति के अनुसार निर्धारित किया गया था । 

 

हिंदुओं के सभी शुभ मुहूर्त हिंदू पंचांग, जो विक्रम संवत पे आधारित है, से ही निर्धारित किए जाते हैं । यह ज्योतिष विज्ञान पर आधारित है । जिसमें ग्रहों के गति के आधार पर तिथियों का निर्धारण किया जाता है । यह इतना वैज्ञानिक है कि इससे खगोलीय घटनाओं जैसे-सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण आदि का सटीक निर्धारण वर्षों पूर्व ही पंडित लोग कर लेते हैं । और पंचांग में वर्षों पूर्व ही लिख दते हैं  


तिथि लोप जिसे तिथि क्षय भी कहा जाता है, ग्रहों के गति से ही उत्पन्न होता है । इसलिए दिनों की संख्या को समायोजित करने के लिए अधिकमास जिसे मलमास भी कहा जाता है, बनाया गया था । मलमास भगवान शंकरजी को समर्पित होता है ।

 

प्राचीन समय में विदेशियों के पास ऐसा ज्ञान नहीं था । वे लोग जब जंगलों और गुफाओं में रहते थे तब भारत में एक बहुत उन्नत समाज था ।

 

कई लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि विदेशों में बहुत दिनों तक एक वर्ष में केवल दस महीने माने जाते थे । उनके कैलेंडर में एक वर्ष में केवल दस महीने होते थे । और उनके यहाँ एक वर्ष में केवल ३०४ दिन ही होते थे । इस प्रकार एक वर्ष में दस महीने और एक वर्ष में ३०४ दिन का कैलेंडर उनके पास था ।

 

जबकि अपने यहाँ ऐसा नहीं था । क्योंकि अपना ज्ञान और विज्ञान बहुत उन्नत था । यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत के ज्ञान से ही प्रभावित होकर विदेशियों ने बहुत कुछ सीखा है और दिनों, महीनों और वर्ष का सही ज्ञान प्राप्त किया है ।

 

 इसलिए सभी सनातन धर्मी को अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व होना चाहिए । और सबको अपना नया वर्ष मनाना चाहिए । अपने आस-पास के लोगों, अपने बच्चों को इसके बारे में बताना और जागरूक करना चाहिए ।

 

  ग्रंथों में नव वर्ष कैसे मनाएं, इसका वर्णन मिलता है । क्या खाएँ जिससे एक वर्ष तक कोई रोग न सताए आदि का वर्णन है । फिर भी कम से कम घर में वंदनवार लगाएँ, पताका लगायें, हो सके तो नए कपड़े पहनें और दीपक जलाएँ । अपने-अपने आराध्य का पूजन करें, भोग लगाएँ और प्रसाद वितरित करें और अपना नव वर्ष मनाएं । कुछ नया करने का संकल्प अथवा कोई संकल्प लेना हो तो आज लेना चाहिए । चैत्र मास के शुक्ल पक्ष से आरंभ होने वाला यह नव वर्ष अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला तथा सुख और समृद्धि प्रदान करने वाला है ।

 

 चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन से आरंभ होने वाले इस नव वर्ष को एक उत्सव के रूप में मनाना चाहिए । इससे पूरा वर्ष मंगलमय होगा । और लिए गए संकल्प की भगवान की कृपा से पूर्ति होगी 


।। जय श्रीराम ।।

 

 

 

गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं

श्रीराम नवमी की महिमा वेद-पुराण और सुर, नर, मुनि सभी गाते हैं । वेद गाते हैं कि श्रीराम नवमी के दिन सभी तीर्थ अयोध्या जी में चले आते हैं । सारे तीर्थ अयोध्या जी में आकर भगवान राम के जन्म महोत्सव में शामिल होते हैं । ऐसा प्रत्येक वर्ष होता है । 

इतना ही नहीं प्रत्येक वर्ष श्रीराम नवमी को अयोध्याजी में राक्षस भी आते हैं, नाग आते हैं , मनुष्य आते हैं , पक्षी आते हैं, मुनि आते हैं और देवता भी आते हैं । अयोध्या जी में आकर ये सब रघुकुल श्रेष्ठ भगवान राम की सेवा करते हैं । ऐसा वेद भगवान स्वयं गाते हैं । बताते हैं ।

वुद्धिमान लोग श्री राम जन्म महोत्सव का आयोजन करते हैं । और भगवान राम के परम सुंदर और पावन चरित्र-कीर्ति का गायन करते हैं ।

अयोध्या जी में बहुत पवित्र सरयू जी बहती हैं । जिनकी अनंत महिमा है । इनकी महिमा का गायन विमल वुद्धि वाली सरस्वती जी भी नहीं कर सकती हैं । वेद-पुराण कहते हैं कि सरयू जी का दर्शन, स्पर्श, स्नान और जलपान पापों का हरण करता है ।

श्रीराम नवमी (चैत्र-मधु मास के शुक्ल पक्ष की नवमी) को सज्जन लोगों के बहुत से समूह पावन सरयू जी में स्नान करते हैं और ह्रदय में सांवले सलोने रामजी का ध्यान करते हुए राम नाम का जाप करते हैं । इस प्रकार सज्जन लोग श्रीराम जन्म महोत्सव मनाते हैं-

जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं । 

तीरथ सकल यहाँ चलि आवहिं ।

असुर नाग खग नर मुनि देवा । 

आइ करहिं रघुनायक सेवा ।।

जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना । 

करहिं राम कल कीरति गाना ।।


मज्जहिं सज्जन वृंद बहु, पावन सरजू नीर ।

जपहिं राम धरि ध्यान उर, सुंदर श्याम शरीर ।।


श्रीराम नवमी के दिन केवल दोपहर तक व्रत न रखकर पूरे दिन व्रत रखना चाहिए, अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें-

श्रीराम नवमी को पूरे दिन व्रत रखने का पुण्य फल


।। श्रीराम जन्म महोत्सव की जय ।। 

चित करो राम कहे ग्रंथन की । कीजे लाज विरद अरु पन की ।।

।। श्रीसीतारामाभ्याम नमः ।।

चित करो राम कहे ग्रंथन की । कीजे लाज विरद अरु पन की ।।

सुर मुनि साधु कहे गुनगन की । हारत भीर सदा दीनन की ।।

कूर कपूत सकल दुर्जन की । नहिं गति और छाँड़ि चरनन की ।।

सरन राम पद सब असरन की । सादर बाँह गहत निबरन की ।।

सार संभार राम दीनन की । करत सदा जोगवत जन मन की ।।

सुनत राम सबबिधि हीनन की । कोल किरात आदि बनरन की ।।

बिगत सकल गुन जदपि सुजन की । राखो लाज नाथ अब जन की ।।

दीन संतोष नहीं तन मन की । जप तप बल नहिं और जतन की ।।

मोरे आश राम चितवन की । पतितपावन अरु शील सदन की ।।

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।। जय रघुवर जय राम धनुर्धर ।।

।। श्रीसीतारामाभ्याम नमः ।।

जय रघुवर जय राम धनुर्धर । सुंदर श्याम सुशील सियावर ।।

मंगल मूरति रूप मनोहर । सोहत सुंदर शारंग कर सर ।।

मंजु मराल बसत जन उर सर । मोहत साधु संत बिधि हरि हर ।।

चरण कमल जन मुनि मन मधुकर । तारन तरन होत चिंतन कर ।।

भरत लखन कपि आदिक अनुचर । सीताराम रूप सचराचर ।।

अगुन सगुन अज अमित अगोचर । अजर अमर सुखनिधि परमेश्वर ।।

ज्ञान विज्ञान सकल सदगुन घर । दीनदयाल प्रनत हित तत्पर ।।

पुरुष पुराण अनूप भूपवर । माया मानुष सोहत नरवर ।।

बानर भालु आदि बहु बनचर । दीनबंधु राखे सब निज कर ।।

दीन संतोष बसहु उर अंतर । परम उदार दीन आरति हर ।।

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लोकप्रिय पोस्ट

कुछ पुरानी पोस्ट

।। गोस्वामी तुलसीदास जी का संदेश ।।

हे मनुष्यों भटकना छोड़ दीजिए तरह-तरह के कर्म, अधर्म और नाना मतों को त्याग दीजिए । क्योंकि ये सब केवल शोक और कष्ट देने वाले हैं । इनसे शोक दूर होने के बजाय और बढ़ता ही है । जीवन में ठीक से सुख-चैन नहीं मिलता और परलोक में भी शांति नहीं मिलती । इसलिए विश्वास करके भगवान श्रीराम जी के चरण कमलों से अनुराग कीजिए । इससे तुम्हारे सारे कष्ट अपने आप दूर हो जाएंगे-

नर बिबिध कर्म अधर्म बहु मत सोकप्रद सब त्यागहू ।

बिस्वास करि कह दास तुलसी राम पद अनुरागुहू ।।

राम जी का ही सुमिरन कीजिए । राम जी की ही यश गाथा को गाइए और हमेशा राम जी के ही गुण समूहों को सुनते रहिए-

रामहिं सुमिरिए गाइए रामहिं । संतत सुनिए राम गुनग्रामहिं ।।

।।जय सियाराम ।।

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विज्ञान का बीज

संसार में हर चीज का बीज (मूल कारण ) होता है । अर्थात संसार और सांसारिक चीजों का कोई न कोई उदगम होता है । सबका बीज से ही उत्पत्ति और आगे विकास होता है । विज्ञान का बीज मतलब मूल कारण क्या है ? विज्ञान का बीज कहाँ से आया ? विज्ञान का बीज किसने बनाया ? विज्ञान का बीज किसने दिया ? यह एक बहुत ही विचारणीय प्रश्न है । यहाँ पर हम लोग देंखेगे कि विज्ञान का बीज तो भगवान द्वारा ही इस संसार को उपलब्ध कराया गया है ।

बहुत से लोग समझते हैं कि विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के विरोधी हैं । लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है । इस बात को समझने के लिए सनातन धर्म के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान का अध्ययन जरूरी है । आधुनिक विज्ञान की वैसे तो बहुत सी शाखाएँ हैं । परंतु इनमें से भौतिक विज्ञान यानी Physics ही ऐसा है जो व्रह्मांड के उत्पत्ति और संरचना की अध्ययन करता है । भौतिकी कि दो शाखाएँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । इनमे से एक जनरल रिलेटिविटी (General Relativity) और दूसरी क्वांटम मेकेनिक्स (Quantum Mechanics) है ।

गणित को आधुनिक विज्ञान की माता कहा जाता है । गणित का हम लोगों के जीवन और विज्ञान के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण रोल है । इस बात को हमारे ऋषि-मुनि भी जानते थे । अधिक जानकारी के लिए इस ब्लॉग के ‘गणित और व्रह्मांड’ लेख को पढ़ सकते हैं । आधुनिक गणित (Modern Mathematics) समुन्द्र के समान विस्तृत है । फिर भी समुच्चय सिद्धांत (Set Theory), संख्या सिद्धांत (Number Theory), फलन और तर्क सिद्धांत (Theory of Functions and Logic), आंशिक और साधारण अवकल समीकरण (Partial and Ordinary Differential Equations) और बीजगणित तथा आधुनिक बीजगणित (Algebra and Modern Algebra) आदि बहुत ही उपयोगी शाखाएँ हैं ।

गणित के अभाव में आधुनिक विज्ञान (Modern Science) और टेक्नोलोजी (Technology) की कल्पना ही नहीं की जा सकती । गणित को विद्वान और वैज्ञानिक विज्ञान की माता कहते हैं । लेकिन गणित की माता कौन है ? गणित की उत्पत्ति का मूल कारण क्या है । गॉस (Gauss) नाम के एक बहुत बड़े गणितज्ञ हुए हैं । गॉस ने कहा था कि गणित विज्ञान की माता है और संख्या सिद्धांत गणित की माता है । अब प्रश्न यह है कि संख्या सिद्धांत का मूल क्या है ? गणितज्ञ संख्या सिद्धांत का मूल प्राकृतिक संख्याओं (Natural Numbers) को बताते हैं । इंही से अन्य संख्याओं का विकास और संख्या सिद्धांत का विकास और फिर विज्ञान का विकास हुआ है । इस बात को वैज्ञानिक और गणितज्ञ जानते हैं ।

जो चीज प्राकृतिक होती है, उस पर सबका बराबर अधिकार होता है । जैसे हवा, गंगा जल आदि । ठीक इसीप्रकार से प्राकृतिक संख्याओं पर केवल पढ़े लिखे मनुष्यों का ही अधिकार नहीं है । इस पर अनपढ़ लोगों का तथा साथ ही पशु-पक्षियों का भी अधिकार है । एक, दो, तीन आदि का किसे पता नहीं है । सब लोग गणना में इनका इस्तेमाल करते हैं ।

पशु-पक्षियों के पास भी गणना की योग्यता होती है । उदाहरण के लिए मान लीजिए एक बृक्ष पर किसी चिड़िया का घोसला है । मान लीजिए उसमें दस बच्चे हैं । अब यदि चिड़ियाँ के अनुपस्थिति में कोई एक बच्चे को गायब कर दे तो वापस आने पर चिड़ियाँ अशांत हो जाती है । इधर-उधर, आस-पास मँडराने और चिल्लाने लगती है । जबकि उसके सभी बच्चे एक जैसे होते हैं । फिर भी उसे पता चल जाता है कि एक बच्चा गायब हो गया है । चिड़ियाँ को एक दो लिखना या बोलना नहीं आता । लेकिन प्रकृति प्रदत्त गणना की योग्यता से उसे इसका भान होता है ।

अब प्रश्न यह है कि प्राकृतिक संख्याओं का मूल क्या है ? जैसा कि नाम से भी स्पष्ट है । इसका मूल प्रकृति है । भगवान हैं । इस बात को क्रोंकर (Kronecker) नामक गणितज्ञ ने इस प्रकार कहा है- ‘Natural numbers are God given bricks’. अर्थात ये ईश्वर की दी हुई इंटें हैं ।

जिस प्रकार ईंट से भवन का निर्माण हो जाता है । इसी प्रकार से प्राकृतिक संख्या रुपी ईंटों से संख्या सिद्धांत रुपी भवन खड़ा किया गया । इस प्रकार से गणित की माता का जन्म हुआ । जिससे गणित बनी । फिर गणित के बाद गणित से आज का विज्ञान बना । इस प्रकार हम देखते हैं कि विज्ञान का बीज तो राम जी के द्वारा ही इस संसार को मिला है । गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने भी कहा है-

‘धरम तड़ाग ज्ञान विज्ञाना । ए पंकज विकसे बिधि नाना’ ।।

।। जय श्रीसीताराम ।।

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प्रार्थना

हे राम प्रभू मेरे भगवान । दीन सहायक दयानिधान ।।

तुम सम तुम प्रभु नहि को आन । गाये जग तेरा गुनगान ।।

तुमको सम प्रभु मान अमान । औरों को देते तुम मान ।।

धारण करते हो धनु वान । रखते हो निज जन की आन ।।

जग पालक जग के तुम जान । तुम ही ज्ञान और विज्ञान ।।

तुम सम नहि कोउ महिमावान । शिव अज नारद करें बखान ।।

वेद सके भी नहि पहिचान । जानूँ मैं क्या अति अज्ञान ।।

सरल सबल तुम सब गुनखान । दया करो हमको जन जान ।।

दूर करो अवगुन अभिमान । विद्यानिधि दो निर्मल ज्ञान ।।

छूटे नहि प्रभु तेरा ध्यान । संतोष शरन राखो भगवान ।।

।। जय सियाराम ।।

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राम नाम मंगलमूल दूर करे सब सूल

राम नाम मंगलमूल दूर करे सब सूल ।

तू भूले जग को जग भूले तुझको राम नाम मत भूल ।।

रामनाम में रमों राम भजे होए जग अनुकूल ।

सारा जग बेसार राम नाम ही सार मद बस मत झूल ।।

जग जाल कब काल जाना है मत फूल ।

बिषयरस सुखतूल नाम रस सुख मूल संतोष जान मत भूल ।।

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भगवान की तलाश

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सदग्रंथ, सुसंत और भक्त कहते हैं कि भगवान सर्वब्यापी हैं । घट-घट वासी हैं । कण-कण में भगवान हैं । फिर भी भगवान नहीं मिलते । क्यों ?

जैसे ग्रंथों में अपार ग्यान का भंडार भरा है । और ग्रन्थ सब जगह उपलब्ध भी हैं । फिर भी वह ज्ञान सहज प्राप्त नहीं है । न ही ज्ञान ग्रन्थ (जिसमें ज्ञान भरा है ) के अवलोकन से और न ही स्पर्श से प्राप्त होता है । और तो और ज्ञान ग्रंथों को पढ़ डालने से भी प्राप्त नहीं होता । ठीक ऐसे ही कण-कण में भगवान हैं और न ही दिखते हैं और न ही प्राप्त होते हैं ।

जैसे ग्रंथों से ज्ञान प्राप्त करने के लिए साधना, ध्यान, चिंतन-मनन, प्रेम और विश्वास चाहिए । ठीक ऐसे ही कण-कण रुपी ग्रन्थ में बसे ज्ञान रुपी भगवान को प्राप्त करने के लिए साधना, ध्यान, चिंतन-मनन, प्रेम और विश्वास चाहिए । मालुम हो सबको ज्ञान प्राप्त नहीं होता । ठीक ऐसे ही सबको भगवान प्राप्त नहीं होते ।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि ग्रंथों से ज्ञान प्राप्त कर लेना तो आसान है लेकिन कण-कण में बसे भगवान को प्राप्त करना आसान नहीं है ।

लोग भगवान को खोजते हैं । भगवान को जानना, पाना अथवा देखना चाहते हैं । और भगवान स्वयं भक्त खोजते रहते हैं । लोग भगवान को तलाशते हैं और भगवान लोगों को । सच्चे भक्त की तलाश उन्हें हमेशा रहती है । सच्चे भक्त को भगवान को तलाशने की आवश्यकता ही नहीं रहती । भगवान स्वयं आकर मिलते हैं ।

कोई कितना ही बड़ा, संत, ज्ञानी अथवा विद्वान क्यों न हो, यदि उसमें भक्ति नहीं है, तो उसे भगवान कदापि नहीं मिलेंगे । वहीं दूसरी ओर कोई कितना भी छोटा अथवा मूर्ख ही क्यों न हो, यदि उसमें भक्ति है, तो उसे भगवान मिल जायेंगे ।

सारा संसार भगवान को प्रिय है । लेकिन भक्त सबसे प्रिय है । भगवान केवल सच्चे भक्त को मिलते हैं । और किसी को नहीं ।

भगवान को यहाँ-वहाँ, चाहे जहाँ तलाशो, पूजा-पाठ करो, प्रवचन करो अथवा सुनों अर्थात चाहे जो साधन अथवा साधना करो भगवान मिलने वाले नहीं । भगवान प्रेम और भक्ति से ही द्रवित होते हैं ।

भगवान को ढकोसला और बनावट बिल्कुल रास नहीं आती, रास आती है तो सरलता, मन की निर्मलता ।

भगवन तो मिलना चाहते हैं, प्रकट होना चाहते हैं । इसके लिए वे बेताब रहते हैं । लेकिन मिलें तो किससे ? किसके सामने प्रकट हों ? उन्हें योग्य अधिकारी चाहिए ? अनाधिकारी को कुछ भी देना पाप-अधर्म होता है । भगवान अनघ और धर्म स्वरूप-धर्म धुरंधर हैं, तो वे पाप या अधर्म कैसे करें ?

कण-कण के वासी भगवान को प्रकट करने के लिए प्रहलाद जैसा प्रेमी भक्त चाहिए । गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज प्रहलाद जी के प्रेम की सराहना करते हुए कहते हैं कि-

प्रेम बदौं प्रहलादहि को जिन पाहन से प्रमेश्वरू काढ़े

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भगवान को प्राप्त करने का सरलतम तरीका

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भगवान को प्राप्त करना बहुत ही सरल है । कहीं जाने की या दर-दर ठोकर खाने की भी जरूरत नहीं है । कई काम भी नहीं करना हैं । केवल और केवल एक काम करना हैं । और भगवान घर बैठे प्राप्त हो जायेंगे ।

जैसे कोई रोग हो जाए तो जितने डॉक्टर के पास जाओ उतनी ही तरह-तरह की दवाएं और हिदायतें दी जाती हैं । वैसे ही भगवान को प्राप्त करने के नाना तरीके हैं । और लोग बताते भी रहते हैं । लेकिन हम सिर्फ एक सरलतम तरीका बता रहे हैं ।

भगवान छल-कपट से और छल-कपट करने वालों से बहुत दूर रहते हैं । और छल-कपट रहित निर्मल मन वालों के बहुत पास रहते हैं । श्रीराम जी कहते हैं कि निर्मल मन वाले ही हमें पा सकते हैं । दूसरे नहीं ।

बिना मन निर्मल किये ही हम तीर्थों के चक्कर लगाते फिरते हैं । साधु-महात्माओं के दर्शन और आशीर्वाद लेते रहते हैं । प्रवचन सुनते रहते हैं । मंदिर जाया करते हैं । घर में भी पूजा-पाठ करते रहते हैं । यथा-शक्ति दान-दक्षिणा भी देते रहते हैं । व्रत-उपवास भी करते रहते हैं । लेकिन भगवान नहीं मिलते । क्योंकि हमारे पास निर्मल मन नहीं है ।

यही सबसे बड़ी समस्या है । हम सब भगवान को तो पाना चाहते हैं । लेकिन बिना मन निर्मल किये । जो कि सम्भव नहीं है । अपना मन ही निर्मल नहीं है । तो भगवान कैसे मिलें ?

अपना प्रतिबिम्ब भी देखना हो तो निर्मल यानी साफ-सुथरा दर्पण की आवश्यकता होती है । यदि दर्पण साफ-सुथरा न हो तो खुद अपना प्रतिबिम्ब भी नहीं दिखाई पड़ता । तब गंदे मन रुपी दर्पण से भगवान कहाँ दिखेंगे ? यदि दर्पण में अपनी छवि बसानी यानी देखनी है तो दर्पण को स्वच्छ करना ही होगा । ठीक ऐसे ही मन में श्रीराम को बसाने के लिए मन स्वच्छ करना ही पड़ेगा ।

दर्पण स्वच्छ हो तो कुछ करना थोड़े पड़ता है । जैसे दर्पण के सामने गए प्रतिबिम्ब उसमें आ गया । भगवान तो हर जगह हैं । कण-कण में हैं । कहीं जाना भी नहीं है । हम हमेशा भगवान के सामने पड़ते हैं । लेकिन भगवान हमारे मन रुपी दर्पण में नहीं आते, नहीं दिखते । क्योंकि अपना मन रुपी दर्पण निर्मल नहीं है । अतः यदि हमारा मन निर्मल हो जाए तो हमें भगवान को पाने के लिए कुछ करना थोड़े पड़ेगा । भगवान खुद हमारे मन में बस जायेंगे । आ जायेंगे और हमें दिखने लगेंगे ।

भगवान को रहने के लिए जगह की कमी थोड़े है । लेकिन भक्त के मन में, हृदय में रहने का मजा ही दूसरा है । इसलिए भगवान निर्मल मन वाले को तलासते रहते हैं । जैसे कोई निर्मल मन मिला उसमें बस जाते हैं ।

अतः भगवान को पाने के लिए हमें कुछ नहीं करना है । सिर्फ हमें अपने मन को निर्मल बना लेना है । सब छोड़कर हम अगर यह काम कर ले जाएँ तो भगवान हमें मिल जाएंगे । भगवान खुद कहते हैं-

निर्मल मन जन सोमोहि पावा । हमहिं कपट छल छिद्र न भावा।।

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संकटमोचन मारूतनंदन

संकटमोचन मारूतनंदन हनूमान अतुलित प्रभुताई ।

महाबीर बजरंगबली प्रभु निज मुख कीन्ह बड़ाई ।।

राम सुसेवक राम प्रिय रामहु को सुखदाई ।

तुमसे तात उरिन मैं नाही कहि दीन्हेउ रघुराई ।।

बालि त्रास त्रसित सुग्रीव को राम से दिहेउ मिलाई ।

भक्त विभीषन धीरज दीन्हेउ राम कृपा समुझाई ।।

गुन बुधि विद्या के तुम सागर कृपा करि होउ सहाई ।

राम प्रभु के निकट सनेही अवसर पाइ कहउ समुझाई ।।

अब तो नाथ विलम्ब न कीजे वेगि द्रवहु सुर साई ।

अघ अवगुन खानि संतोष तो स्वामी तव चरण की आस लगाई ।।

विरद की रीति छ्मानिधि रखिए करुनाकर रघुराई ।

नाथ चरन तजि ठौर नहीं संतोष रहा अकुलाई ।।

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रघुपति राघव जन सुखदाई

रघुपति राघव जन सुखदाई ।

आरतपाल सहजकृपाल अग जग के तू साई ।।

जग जो बड़े हुए अरु होते तुम्हरे दिए बड़ाई ।

शिव, हरि, बिधि आदिक को प्रभु दई तुम्हीं प्रभुताई ।।

घट-घट के जाननहार सुधि कियो न कोउ कराई ।

ठौर नहीं प्रभु द्रवहुँ वेगिंह कहौ कहाँ हम जाई ।।

आस पियास बुझै नहि रघुवर बिनु कृपा जल पाई ।

संतोष रखो प्रभु करुनासागर कृपा वारि पिलाई ।।

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।। श्रीराम चालीसा ।।

।। श्री गणेशाय नमः ।।

।। श्रीसीतारामाभ्याम नमः ।।

श्रीरामचालीसा

दोहा-

तुलसिदास मानस विमल, राम नाम श्रीराम ।

पवनतनय अरु विनय पद, सादर करौं प्रनाम ।।

अविगत अलख अनादि प्रभु, जगताश्रय जगरूप ।

पद कंज रति देहु मोहि, अविरल अमल अनूप ।।

चौपाई-

जय रघुनाथ राम जग नायक । दीनबन्धु सज्जन सुखदायक ।।

प्रनतपाल सुंदर सब लायक । असरन सरन धरे धनु सायक ।।

नाम लेत मुद मंगल दायक । सरल सबल असहाय सहायक ।।

सुमुख सुलोचन अज अविनासी । संतत गिरिजा पति उर वासी ।।

अगम अगोचर जन दुखनासी । सहज सुगम अनुपम सुखरासी ।।

दया क्षमा करुना गुन सागर । पुरुष पुरान सुशील उजागर ।।

हरि हर बिधि सुर नर मुनि भावन । अघ अविवेक समूल नसावन ।।

भरत लखन रिपुहन हनुमाना । संग सिया राजत भगवाना ।।

रूप अनूप मदन मद हारी । गावत गुन सुर नर मुनि झारी ।।

सुर नर मुनि प्रभु देखि दुखारे । तजि निज धाम धरा पगु धारे ।

सुत बिनु दशरथ राय दुखारी । सुत होइ उनको कियो सुखारी ।।

मख हित मुनिवर अति दुःख पाए । दुष्टन दलि तुम यज्ञ कराए ।।

पाहन बनि मुनि गौतम नारी । सहत विपिन नाना दुःख भारी ।।

ससंकोच निज पद रज डारी । दयासिन्धु तुम कियो सुखारी ।।

सोच मगन नृप सिया सहेली । मातु सकल नर नारि नवेली ।।

सबकर सोच मिटायेउ स्वामी । भंजि चाप जय राम नमामी ।।

परशुराम बहु आँखि दिखाए । गुन गन कहि धनु देय सिधाये ।।

करि कुचाल जननी पछितानी । उनको बहुत भांति सनमानी ।

केवट नीच ताहि उर भेटा । सुर दुर्लभ सुख दै दुःख मेटा ।।

भरत भाय अति कियो बिषादा । जगत पूज भे राम प्रसादा ।।

आप गरीब अनेक निवाजे । साधु सभा ते आय बिराजे ।।

बन बन जाय साधु सनमाने । तिनके गुन गन आप बखाने ।।

नीच जयंत मोह बस आवा । जानि प्रभाव बहुत पछितावा ।।

शवरी गीध दुर्लभ गति पाए । सो गति लखि मुनिराज लजाये ।।

कपि असहाय बहुत दुःख मानी । बसत खोह तजि के रजधानी ।।

करि कपीस तेहिं निज पन पाला । जयति जयति जय दीनदयाला ।।

बानर भालू मीत बनाये । बहु उजरे प्रभु आप बसाये ।।

कोल किरात आदि बनवासी । बानर भालु यती सन्यासी ।।

सबको प्रभु कियो एक समाना । को नहि नीच रहा जग जाना ।।

कोटि भालु कपि बीच बराए । हनुमत से निज काज कराए ।।

पवनतनय गुन श्रीमुख गाये । जग बाढ़ै प्रभु आप बढ़ाए ।।

हनुमत को प्रभु दिहेउ बड़ाई । संकटमोचन नाम धराई ।।

रावण भ्रात निसाचर जाती । आवा मिलइ गुनत बहु भांती ।।

ताहिं राखि बहु बिधि हित कीन्हा । लंका अचल राज तुम दीन्हा ।।

चार पुरुषारथ मान बड़ाई । देत सदा दासन्ह सुखदाई ।।

मो सम दीन नहीं हित स्वामी । मामवलोकय अन्तरयामी ।।

रीति प्रीति युग-युग चलि आई । दीनन को प्रभु बहु प्रभुताई ।।

देत सदा तुम गहि भुज राखत । साधु सभा तिनके गुन भाखत ।।

कृपा अनुग्रह कीजिए नाथा । विनवत दास धरनि धरि माथा ।।

छमि अवगुन अतिसय कुटिलाई । राखो सरन सरन सुखदाई ।।

दोहा-

राम राम संतोष कहु भरि नयनन महु नीर ।

प्रनतपाल असरन सरन सरन देहु रघुवीर ।।

राम चालीसा नेम ते, पढ़ जो प्रेम समेंत

बसहिं आइ सियाराम जु, ताके हृदय निकेत ।।

।। सियावर रामचन्द्र की जय ।।

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।। श्रीराम स्तुति ।।

।। श्रीसीतारामाभ्याम नमः ।।

हे राम प्रभूजी दयाभवन । तुमसा है जग में और कवन ।।१।।

सुखसागर नागर जलजनयन । गुन आगर करुना छमा अयन ।।२।।

सुखदायक लायक विपति समन । भवतारन हारन जरा मरन ।।३।।

संकोच सिंधु धुर धर्म धरन । शारंगधर टारन भार अवन ।।४।।

जग पालन कारन सिया रमन । देवों को दायक तुम्ही अमन ।।५।।

मन लाजै तुमको देखि मदन । शोभा की सीमा शील सदन ।।६।।

विश्वाश्रय रघुवर विश्वभरन । तुमको प्रभु बारंबार नमन ।।७।।

तुम बिनु प्रभु क्या यह मानुष तन । बन जावो मेरे जीवनधन ।।८।।

दुख दारिद दावन दोष दमन । तुमको ही ध्याये मेरा मन ।।९।।

प्रभुजी अवगुन अघ ओघ हरन । हो चित चकोर बिधु आप वदन ।।१०।।

नहि मालुम मुझको एक जतन । तुम बिनु को हारे दुख दोष तपन ।।११।।

कहते हैं स्वामी तव गुनगन । शरनागत राखन प्रभु का पन ।।१२।।

मेंरा उर हो प्रभु आप सदन । गहि बाँह रखो मोहि जानि के जन ।।१३।।

विनती प्रभुजी तारन तरन । मन का भी मेरे हो नियमन ।।१४।।

हे राम प्रभू मेरे भगवन । मैं चाह रहा तेरी चितवन ।।१५।।

करुनासागर संतोष सरन । है ठौर इसे बस आप चरन ।।१६।।

।। सियावर रामचंद्र की जय ।।

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श्रीहनुमान स्तुति

।। श्री हनुमते नमः ।।

जय हनुमंत जयति मतिसागर । बल विक्रम त्रैलोक उजागर ।।१।।

पवनतनय समरथ गुन आगर । जय कपीस सेवक हित नागर ।।२।।

महावीर सब सिधि निधि दायक । जय रनधीर राम गुन गायक ।।३।।

रामदूत सुंदर सब लायक । बसत हिय सिय सह रघुनायक ।।४।।

ज्ञान विज्ञान विवेक अपारा । तव गुनगन गावत जग सारा ।।५।।

रवि सुरेश तव पौरुष भारी । जानत सकल देव नर नारी ।।६।।

दानव दैत्य भूत जग जेते । डरपहिं नाम सुनावत तेते ।।७।।

छीजहिं सकल दुष्ट अधियारी । घोर निशा जिमि देखि तमारी ।।८।।

अग-जग जाल सकल जेहिं सिरिजा । मानत सकल देव हर गिरिजा ।।९।।

सेवक तासु प्रिय सुखदाई । बार-बार प्रभु कीन्हि बड़ाई ।।१०।।

कहेउ उरिन तुमसे नहि भाई । संकटमोचन नाम धराई ।।११।।

धन्य-धन्य कीरति जग छाई । शेष-महेश सके नहि गाई ।।१२।।

हरि-हर-बिधि तव भगति सराही । राम भगत तुम सम कोउ नाही ।।१३।।

राम प्रेम मूरति धरे देहीं । मिले जेहिं आप राम मिले तेहीं ।।१४।।

राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।१५।।

अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहि श्रीरघुराई ।।१६।।

।। श्रीहनुमानजी महाराज की जय ।।

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