माता-पिता जहाँ तक हो सकता है बच्चों के हर जरूरत का ख्याल रखते हैं । भोजन देते हैं । कपड़ा देते हैं । पढ़ाते-लिखाते हैं । स्वास्थ्य का भी ख्याल रखते हैं । इसलिए ही बचपन में सामान्यतया बच्चों के सबसे नजदीक माता-पिता ही होते हैं ।
बच्चे
सोचते हैं कि ऐसा ही सदैव रहेंगे । कई बार बच्चे माता-पिता से कई तरह के वादा भी
करते हैं कि हम बड़े होकर ऐसा करेंगे । यह करेंगे । वह करेंगे । आदि । लेकिन
धीरे-धीरे सब बदलता जाता है और यह बदलाव कलियुग में कुछ अधिक ही होता है ।
शास्त्रों में कहा गया कि कलियुग में सामन्यतया पुत्र तब तक अपने माता-पिता को
मानते हैं जब
तक पत्नी का मुँह नहीं देख लेते- “सुत मानहिं मातु-पिता जब लौ । अबलानन दीख
नहीं जब लौ” ।।
इसके बाद स्थिति धीरे-धीरे और खराब होने लगती है
। पहले के सारे वादे धीरे-धीरे भूल जाते हैं । यदि माता-पिता को पैसे की जरूरत
है तो उन्हें पैसा देना, यदि दूर हैं तो उनसे मिलने जाना इत्यादि काम बहुत भारी
लगने लगते हैं ।
कहा गया
है कि कलियुग में पुरुषों की स्थिति बंदर की तरह और स्त्रियों की स्थिति मदारी की
तरह होती है-
नारि विवस नर सकल गोसाईं । नाचहिं नर मर्कट की
नाई ।।
जो लोग मदारी और बंदर का खेल देख चुके हैं उन्हें तो पता ही होगा कि मदारी कहता है तो बंदर आँख मूँद लेता है । मदारी कहता है तो नाचने लगता है । मदारी कहता है तो उछल-कूद करने लगता है । आदि ।
ऐसे में कई लोग यह भी भूल जाएँ कि उनके माता-पिता भी हैं तो क्या आश्चर्य है ? जो लोग जितने अधिक बंदर बने हों, उन पर कलियुग ज्यादा हावी है ऐसा ही समझना चाहिए ।
।। जय श्रीसीताराम ।।