शोध पत्रों में संदर्भ ग्रंथ और उनके लेखकों का नाम लिखने की पद्धति को रिफरेंसिंग स्टाइल कहा जाता है । भिन्न-भिन्न शोध पत्रों की रिफरेंसिंग स्टाइल भिन्न-भिन्न होती है ।
भारतीय धर्म ग्रंथों में शोध के बारे में भी वर्णन मिलता है । अंधकार से प्रकाश और पुरातन से नूतन की ओर अग्रसर होने का संदेश दिया गया है । अध्यन-अध्यापन के बारे में भी संतों ने, ऋषियों ने बहुत कुछ बताया है । गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज कहते हैं कि संसार में सब कुछ है । लेकिन कर्महीन मनुष्य कुछ प्राप्त नहीं कर पाता । जो जैसा और जिस दिशा में कर्म करता है उसे वैसी ही सफलता मिलती है ।
आजकल गणित, विज्ञान और अन्य विषयों के कई शोध पत्रों में संदर्भ लेखन की निन्मलिखित पद्धति प्रयोग में लाई जाती है ।
मान
लीजिए किसी लेखक का नाम राजा राम है । तो आधुनिक
संदर्भ पद्धति में लेखक के नाम को राजा राम न लिखकर राम राजा लिखा जाता है ।
यहाँ हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि नाम लेखन की इस पद्धति को गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज ने आज से लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व ही आरंभ कर दिया था ।
श्रीरामचरितमानस और श्रीविनयपत्रिका
जी में तुलसीदास जी ने कई बार अपना नाम दास तुलसी लिखा है । श्रीविनयपत्रिका जी
में इसके कई उदाहरण मिलते हैं-
१) सेस सर्वेस आसीन आनंद-वन,
दास तुलसी प्रनत त्रासहारी ।
२) प्रचुर भव-भंजनं, प्रनत
जन-रंजनं दासतुलसी सरन सानुकूलं ।
३) देहि रघुवीर पद प्रीति
निर्भर मातु, दास तुलसी त्रास हरनि भव-भामिनी ।
इसी तरह दो-तीन नहीं अनेकों उदाहरण हैं । इस प्रकार यह कहना गलत नहीं होगा कि गोस्वामी तुलसीदास महाराज शोध पत्रों में प्रयोग होने वाली लेखकों के नाम लेखन की आधुनिक संदर्भ पद्धति के जन्मदाता हैं ।
।। गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की जय ।।
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