कबीरदास जी ने जिन मनुष्यों के लिए कहा है कि ‘पानी केरा बुदबुदा अस मानुष की जात’ ऐसे हम लोग भी अपने प्रभाव में रहते हैं ।
कोई धन के प्रभाव में, कोई पद के प्रभाव में तो कोई प्रतिष्ठा के प्रभाव में रहता है । कोई अपनी पहुँच के प्रभाव में रहता है ।
कई लोग इन्हीं सब प्रभावों के चलते न सीधे चलते हैं, न सीधे बोलते हैं, न सीधे रहते हैं । लेकिन हकीकत तो यही है कि हैं तो पानी के बुदबुदे ही ।
लेकिन ऐसे ठाकुर जिनके लिए ग्रंथ कहते हैं कि ‘हरिहिं हरिता, शिवहिं शिविता विधिहिं विधिता जो दई’ वे अपने प्रभाव में नहीं बल्कि सदा अपने स्वभाव में रहते हैं ।
इतना प्रभाव होकर भी प्रभाव का प्रभाव न दिखे ऐसा होना लगभग असंभव होता है । लेकिन हमारे रामजी इस असंभव को संभव करके दिखाते हैं । केवल एक मात्र मेरे रामजी, मेरे रघुनाथजी ही ऐसे ठाकुर हैं जो अपने स्वभाव में रहते हैं । बहुत ही सीधा और सरल स्वभाव है मेरे राम जी का ।
हर कोई इनके स्वभाव की चर्चा करता है । शंकरजी कहते हैं कि ‘उमा राम स्वभाव जेहि जाना । ताहिं भजन तजि भाव न आना’ । कागभुसुंडि जी गरुण जी से कहते हैं कि ‘अस स्वभाव कहुँ सुनहुँ न देखउँ । केहि खगेश रघुपति सम लेखहुँ’ ।।
धन्य हैं राम जी जो ‘विष्णु कोटि सम पालनकर्ता’ हैं ‘रूद्र कोटि सत सम संहर्ता’ हैं , ‘बिधि सत कोटि सृष्टि निपुनाई’ रखने वाले हैं, ‘दुर्गा कोटि अमित अरि मर्दन’ करने वाले हैं आदि । आदि । जो वास्तव में निरुपम हैं –
‘निरुपम न उपमा आन राम सामान राम निगम कहैं’ ।
ऐसे रामजी ने अपने प्रभाव को जीत लिया है । इसलिए
वे प्रभाव के वश में न रहकर अपने स्वभाव के वश में रहते हैं ।
।। जय श्रीराम ।।
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