।। श्री गणेशाय नमः ।।
।। श्रीसीतारामाभ्याम नमः ।।
श्रीरामचालीसा
दोहा-
तुलसिदास मानस विमल, राम नाम श्रीराम ।
पवनतनय अरु विनय पद, सादर करौं प्रनाम ।।
अविगत अलख अनादि प्रभु, जगताश्रय जगरूप ।
पद कंज रति देहु मोहि, अविरल अमल अनूप ।।
चौपाई-
जय रघुनाथ राम जग नायक । दीनबन्धु सज्जन सुखदायक ।।
प्रनतपाल सुंदर सब लायक । असरन सरन धरे धनु सायक ।।
नाम लेत मुद मंगल दायक । सरल सबल असहाय सहायक ।।
सुमुख सुलोचन अज अविनासी । संतत गिरिजा पति उर वासी ।।
अगम अगोचर जन दुखनासी । सहज सुगम अनुपम सुखरासी ।।
दया क्षमा करुना गुन सागर । पुरुष पुरान सुशील उजागर ।।
हरि हर बिधि सुर नर मुनि भावन । अघ अविवेक समूल नसावन ।।
भरत लखन रिपुहन हनुमाना । संग सिया राजत भगवाना ।।
रूप अनूप मदन मद हारी । गावत गुन सुर नर मुनि झारी ।।
सुर नर मुनि प्रभु देखि दुखारे । तजि निज धाम धरा पगु धारे ।
सुत बिनु दशरथ राय दुखारी । सुत होइ उनको कियो सुखारी ।।
मख हित मुनिवर अति दुःख पाए । दुष्टन दलि तुम यज्ञ कराए ।।
पाहन बनि मुनि गौतम नारी । सहत विपिन नाना दुःख भारी ।।
ससंकोच निज पद रज डारी । दयासिन्धु तुम कियो सुखारी ।।
सोच मगन नृप सिया सहेली । मातु सकल नर नारि नवेली ।।
सबकर सोच मिटायेउ स्वामी । भंजि चाप जय राम नमामी ।।
परशुराम बहु आँखि दिखाए । गुन गन कहि धनु देय सिधाये ।।
करि कुचाल जननी पछितानी । उनको बहुत भांति सनमानी ।
केवट नीच ताहि उर भेटा । सुर दुर्लभ सुख दै दुःख मेटा ।।
भरत भाय अति कियो बिषादा । जगत पूज भे राम प्रसादा ।।
आप गरीब अनेक निवाजे । साधु सभा ते आय बिराजे ।।
बन बन जाय साधु सनमाने । तिनके गुन गन आप बखाने ।।
नीच जयंत मोह बस आवा । जानि प्रभाव बहुत पछितावा ।।
शवरी गीध दुर्लभ गति पाए । सो गति लखि मुनिराज लजाये ।।
कपि असहाय बहुत दुःख मानी । बसत खोह तजि के रजधानी ।।
करि कपीस तेहिं निज पन पाला । जयति जयति जय दीनदयाला ।।
बानर भालू मीत बनाये । बहु उजरे प्रभु आप बसाये ।।
कोल किरात आदि बनवासी । बानर भालु यती सन्यासी ।।
सबको प्रभु कियो एक समाना । को नहि नीच रहा जग जाना ।।
कोटि भालु कपि बीच बराए । हनुमत से निज काज कराए ।।
पवनतनय गुन श्रीमुख गाये । जग बाढ़ै प्रभु आप बढ़ाए ।।
हनुमत को प्रभु दिहेउ बड़ाई । संकटमोचन नाम धराई ।।
रावण भ्रात निसाचर जाती । आवा मिलइ गुनत बहु भांती ।।
ताहिं राखि बहु बिधि हित कीन्हा । लंका अचल राज तुम दीन्हा ।।
चार पुरुषारथ मान बड़ाई । देत सदा दासन्ह सुखदाई ।।
मो सम दीन नहीं हित स्वामी । मामवलोकय अन्तरयामी ।।
रीति प्रीति युग-युग चलि आई । दीनन को प्रभु बहु प्रभुताई ।।
देत सदा तुम गहि भुज राखत । साधु सभा तिनके गुन भाखत ।।
कृपा अनुग्रह कीजिए नाथा । विनवत दास धरनि धरि माथा ।।
छमि अवगुन अतिसय कुटिलाई । राखो सरन सरन सुखदाई ।।
दोहा-
राम राम संतोष कहु भरि नयनन महु नीर ।
प्रनतपाल असरन सरन सरन देहु रघुवीर ।।
राम चालीसा नेम ते, पढ़ जो प्रेम समेंत ।
बसहिं आइ सियाराम जु, ताके हृदय निकेत ।।
।। सियावर रामचन्द्र की जय ।।
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ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "जीवन के यक्ष प्रश्न - ब्लॉग बुलेटिन“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंअनूठी और मधुरिमा युक्त ।
जवाब देंहटाएंअनूठी और मधुरिमा युक्त ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा .... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ... Thanks for sharing this!! :) :)
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