समुद्र पर सेतु बनाने का काम चल रहा था । बानर भालू गिरि, पादप आदि लाकर सेतु बनाने का काम पूर्ण करने में लगे हुए थे ।
आस-पास के क्षेत्रों के गिरि, बड़े-बड़े पत्थर तो काम में आ ही
रहे थे । सुदूर क्षेत्रों से भी इन्हें लाना पड़ रहा था । क्योंकि आस-पास के पत्थर
और पर्वत लगभग समाप्त हो रहे थे ।
पहले यानी त्रेता में गिरिराज गोवर्धन व्रजमण्डल में नहीं थे ।
हनुमान जी ने इन्हें सुदूर हिमालय क्षेत्र से लाकर व्रजमण्डल में स्थापित किया है ।
हनुमान जी ने कहा कि हे गोवर्धनजी मैं आपको समुंद्र पर सेतु बनाने हेतु उपयोग में
लाने के लिए आया हूँ । इससे आपको भगवान श्रीराम का दर्शन मिलेगा । और इतना ही नहीं
आपके ऊपर चरण रखकर राम जी समुंद्र पार करेंगे । इसलिए आपको भगवान के चरण स्पर्श का
सौभाग्य मिलेगा । यह सुनकर गिरिराज गोवर्धन बहुत प्रसन्न हुए और हनुमान जी के
प्रति कृतज्ञता प्रकट किया ।
हनुमानजी हथेली पर
गोवर्धन जी को रखकर समुंद्र की ओर चल दिए । लेकिन यहाँ समुंद्र पर पुल बाँधने का
कार्य लगभग पूर्ण हो चुका था । और रामजी गोवर्धन जी को व्रजमण्डल में ही स्थापित
करना चाहते थे । इसलिए रामजी का संदेश मिला कि जो बानर-भालू जहाँ हैं वहीं पत्थर,
पहाड़ आदि रखकर वापस आ जाएँ ।
तब हनुमानजी ने गिरि गोवर्धन को व्रजमण्डल में स्थापित कर दिया ।
इस पर गोवर्धन जी बड़े दुखी हो गए क्योंकि अब ये भगवान राम के दर्शन से वंचित हो गए
थे । हनुमानजी ने कहा कि आप चिंता न करें
रामजी बड़े दयालु हैं । वे अवश्य आपकी इच्छा पूरी करेंगे ।
हनुमान जी गिरिराज गोवर्धन को बचन और आश्वासन देकर रामजी के
पास चले आए और रामजी से बोले कि मैंने गिरिराज गोवर्धन को वचन और आश्वासन देकर आया
हूँ कि आप उनका मनोरथ अवश्य पूर्ण करेंगे ।
रामजी ने कहा कि आपका
वचन और आश्वासन मेरा ही वचन और आश्वासन है । मैं गोवर्धनजी का मनोरथ अवश्य पूर्ण
करूँगा ।
आप उन तक यह संदेश पहुँचा दीजिए कि उन्हें द्वापर में दर्शन का
लाभ मिलेगा और मैं अपने बाल सखाओं के साथ उनके लताओं, वृक्षों आदि का उपयोग करूँगा
। और इतना ही नहीं सात दिन तक मैं उन्हें
अपनी ऊँगली पर धारण करूँगा ।
रामकाज सुरकाज करैया । गिरि गोवर्धन
द्रोण धरैया ।।
।। जय रामजी और जय हनुमानजी ।।
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