अवधवास की बड़ी महिमा है । व्रह्मादिक भी अवधवास की प्रशंसा करते हैं । भगवान की कृपा से ही अवधवास मिलता है । सुर, नर, मुनि अवधवास की अभिलाषा रखते हैं । लेकिन हर किसी को अवधवास मिल नहीं पाता है । गोस्वामीजी गीतावली में कहते हैं कि- ‘व्रह्मादि प्रसंसत अवधवास’ ।
अवधवास
मिल जाए और अयोध्याजी में ही प्राण निकले यह सौभाग्य हर किसी को नहीं मिल पाता ।
कई लोगों को अवधवास तो मिल जाता है लेकिन जब अंत समय आता है तो कोई न कोई ऐसा कारण
उपस्थिति हो जाता है कि अयोध्या जी से दूर चले जाना पड़ता है ।
कई बार
कुछ लोगों को अपने घर-गाँव अथवा किसी अन्य व्यक्ति या स्थान की याद आ जाती है और
वे अयोध्याजी छोड़कर बाहर चले जाते हैं । सोचते हैं कि कुछ दिन में वापस आ जायेंगे ।
लेकिन फिर वापस नहीं आ पाते और बाहर ही शरीर और प्राण का बिछोह हो जाता है ।
कुछ लोग
अंत समय में बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें इलाज के लिए दूर लेकर जाया जाता है और
अयोध्या जी में शरीर पूरा नहीं हो पाता ।
कुलमिलाकर बड़े सौभाग्य से भगवान
श्रीराम की कृपा से ही अवधवास मिलता है और अयोध्या जी में शरीर पूरा होता है ।
साधु-सदग्रंथ और अन्यान्य लोग भवसागर की
दुर्गमता बताते हैं । संसृत रोग कैसे छूटेगा ? चौरासी से मुक्ति कैसे मिलेगी ? आदि बाते बताते
और समझाते हैं । लेकिन अयोध्या जी में शरीर पूरा होने से प्राणी संसार चक्र से छूट
जाता है । संसृत रोग से बच जाता है और चौरासी से मुक्ति मिल जाती है, वह भवसागर
में दुबारा नहीं पड़ता- ‘अवध तजे तनु नहिं संसारा’ ।
मनुष्य की तो बात ही अलग है । कोई प्राणी, पशु-पक्षी,
कीड़े-मकोड़े व अन्य जीव-जन्तु तथा लता, पौधा और वृक्ष आदि नाना प्रकार के जरायुज, उद्भिज,
अंडज, स्वेदज जो भी हैं अवध में शरीर छोड़ने पर संसार में फिर नहीं आते । श्रीरामचरितमानस
जी में गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज कहते हैं कि-
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