एक बार
भगवान श्रीराम अपने बंधु-बांधवों तथा सेना के साथ वन-विहार के लिए निकले । वन में राम
जी एक मृग का पीछा करने लगे । पीछा करते-करते घोड़े पर सवार राम जी एक वन से दूसरे,
दूसरे से तीसरे वन में जाते-जाते एक घनघोर वन में जा पहुँचे । लक्ष्मण आदि और सेना
पीछे छूट गई । रामजी ने मृग पर निशाना साधा । तब रामजी उस स्थान पर थे जहाँ जल का
नामोनिशान नहीं था ।
रामजी को भूँख और प्यास लग गई थी । एक वृक्ष के
नीचे बैठकर विश्राम करने लगे । वहाँ एक शवरी ने रामजी को देखा । उसने रामजी को
प्रणाम किया । रामजी ने शवरी से सारी बात बताई ।
शवरी ने कहा कि यहाँ से थोड़ी दूर पर एक सरोवर
है और उसके किनारे एक दुर्गाजी का मंदिर है । आज अनेकों स्त्रियाँ वहाँ दुर्गाजी
का पूजन करने आयेगीं । आप मेरे साथ वहाँ चलें वहाँ विविध प्रकार के व्यंजनों से
आपको संतुष्टि प्राप्त हो जायेगी ।
रामजी बोले मैं लक्ष्मण आदि की यहाँ
प्रतीक्षा करूँगा आप उन स्त्रियों से मेरे बारे में बता देना । उसने वहाँ जाकर
सारी बात बता दिया । वे स्त्रियाँ बहुत प्रसन्न हुईं कि आज उन्हें रामजी का दर्शन
होने वाला है । वे बोलीं कि दुर्गाजी की पूजा करके और नैवेद्य अर्पित करके हम लोग
चलेंगी ।
मंदिर में चार दरवाजे थे चारों बंद हो गए तो वे
स्त्रियाँ एक दरवाजे के पास बैठ गईं । और मंदिर के भीतर से आती हुई ध्वनि सुनाई
पड़ी ।
मंदिर
के अंदर जो दुर्गा है, वह मैं ही सीता रूप में हूँ और श्रीराम साक्षात महेश्वर हैं
। अतः आप लोग सबसे पहले मेरे स्वामी जगत्प्रभु श्रीराम को नैवेद्य के लिए लाए गए व्यंजनों से संतुष्ट करो
और फिर शेष भाग को ग्रहण कर मैं संतुष्ट हो जाऊँगी ।
स्त्रियाँ वहाँ गईं । रामजी को देवी जी की बात
बताई । रामजी ने कहा यदि देवी ने ऐसा कहा है तो उनसे जाकर बोलो कि वे सीता के रूप
में मेरे समीप आयें ।
एक स्त्री ने राम जी का संदेश दुर्गाजी को
सुनाया और दुर्गाजी सीताजी बनकर आईं और
राम जी के समीप बैठ गईं । फिर रामजी ने अपने वाण से पृथ्वी से जल प्रकट करके मध्यांह संध्या किया और भोजन के लिए बैठने वाले थे कि उसी समय लक्ष्मण आदि लव-कुश सहित सेना
भी आ गई । वहाँ सीताजी को बैठे देख सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ । तब शवरी ने सारी
बातें सबको बता दिया और फिर रामजी ने लक्ष्मण आदि और सेना और देवी सीता के साथ
स्त्रियों द्वारा लाए गए व्यंजनों का भोग लगाया । और स्त्रियों से कहा आप लोगों को
जो अभीष्ट हो वह वरदान माँग लो ।
रामजी ने उन स्त्रियों को कई वरदान दिए । और
यह भी वरदान दिया कि अगले जन्म द्वापर में तुम लोग व्राह्मणों की पत्नियाँ बनोगी ।
और मैं कृष्ण रूप में तुम लोगों को दर्शन दूँगा और वन में यज्ञ के प्रसंग में तुम लोगों से अन्न की याचना
करूगाँ । आदि ।
फिर राम जी ने दुर्गाजी से जो सीताजी के रूप
में थीं बोले कि अब आप सुखपूर्वक अपने स्थान को प्रस्थान करें । फिर सब लोग वापस
चली गईं और मंदिर में स्त्रियों ने दुर्गाजी का पूजन किया । और रामजी लक्ष्मण आदि
के साथ अयोध्या वापस आ गए ।
।। जय श्रीदुर्गा जी ।।
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