देवराज इंद्र ने कई बार भगवान श्रीकृष्ण का विरोध किया । यहाँ तक सेना लेकर युद्ध भी करने आ गए थे । लेकिन देवराज इंद्र परिस्थिति बिपरीति होने के बावजूद भी कभी भी भगवान श्रीराम के विरुद्ध नहीं गए ।
यह कथा सबको विदित है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र की पूजा
के बजाय गिरिराज गोवर्धन की पूजा करवाई थी तो इंद्र बड़े क्रोधित हुए थे और इस
निर्णय के विरोध में गए थे । इंद्र ने पूरे ब्रजमंडल को तबाह करने की कोशिस भी
किया भले ही सफल नहीं हुए । और बाद में स्तुति करके छमा प्रार्थना किया ।
इसके बावजूद बहुत बाद में जब भगवान श्रीकृष्ण द्वारकाधीश बन गए
और द्वारकापुरी में रहने लगे तो सत्यभामा जी को देने के लिए देवलोक से परिजात
वृक्ष लाने गए । तब देवराज इंद्र देव सेना लेकर युद्द करने आ गए ।
लेकिन देवराज इंद्र
भगवान श्रीराम के बिरोध में कभी नहीं गए । जबकि परिस्थिति बिल्कुल उलट थी ।
एक बार राम जी ने
इंद्र के बेटे जयंत के पीछे सींक के धनुष पर चढ़ाकर सींक का वाण छोड़ दिया । यह अमोघ
वाण जयंत का पीछा करने लगा । जयंत को कहीं ठौर नहीं मिला । अपने पिता देवराज इंद्र
से भी सहायता माँगी लेकिन देवराज इंद्र रामजी से युद्ध करने के बारे में सोचे भी
नहीं और न ही बेटे की सहायता के लिए तैयार हुए । बाद में रामजी ने जयंत की एक आँख
फोड़कर जीवन दान दे दिया ।
बालि देवराज इंद्र का
बेटा था । रामजी ने बालि का बध किया । फिर भी देवराज इंद्र राम जी के विरोध में
नहीं गए ।
जबकि पूजा रुकवाने और
परिजात वृक्ष लेने के परिपेक्ष्य में उपरोक्त दोनों घटनाएँ इंद्र को युद्ध के लिए
तैयार करने के लिए पर्याप्त थीं ।
इस प्रकार देवराज इंद्र ने भगवान श्रीकृष्ण से विरोध और भगवान
श्रीराम से अनुरोध किया-
अब करि कृपा बिलोकि मोहि आयसु देहु
कृपाल ।
काह करौं सुनि प्रिय बचन बोले दीनदयाल
।।
।। जय श्रीराम ।।
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