जैसे स्वयं मरना पड़ता है । किसी और के मरने से अपना मरना नहीं
रुकता है । ठीक ऐसे ही अपना कल्याण स्वयं करना पड़ता है । किसी और के करने से अपना
कल्याण नहीं होगा ।
किसी से कहो कि भाई आप मेरे लिए मर जाना जिससे मुझे न मरना पड़े । और मान लीजिए वह तैयार भी हो जाता है कि मैं तुम्हारे लिए मर जाऊँगा । और वह कहता भी रहे कि मैं तुम्हारे लिए मर जाऊँगा । तब भी अपना मरना नहीं रुकेगा । ठीक ऐसे ही कोई कहे कि मैं आप का कल्याण कर दूँगा तब भी अपना कल्याण नहीं होगा । अपना कल्याण स्वयं करना पड़ेगा ।
जैसे अपने शरीर में कोई रोग हो जाए तो रोग के निदान के लिए
स्वयं दवा लेनी पड़ती है । अपने जगह पर कोई दूसरा दवा ले भी ले तो अपने शरीर का रोग
दूर नहीं होगा । इसी तरह से अपना कल्याण स्वयं करना पड़ेगा । अर्थात भजन स्वयं करना
पड़ेगा । किसी और के भजन करने से अपना कल्याण नहीं होगा ।
जैसे अपने को बड़ी भूँख लगी हो तो स्वयं भोजन खाने से ही अपनी
भूँख जाती है । दूसरे के भोजन करने से अपनी भूँख नहीं जाती है । दूसरे अच्छा-अच्छा
भोजन कर रहे होंं तो उन्हें भोजन करते हुए देखने से भी अपनी भूँख नहीं जाती है ।
बिना स्वयं भोजन किए जिस तरह अपनी भूँख नहीं जाती ठीक इसी तरह बिना स्वयं भजन किये
अपना कल्याण नहीं होता है ।
कई लोग कहते, गाते और सोचते हैं कि गुरू जी हमारा कल्याण कर देंगे । लेकिन यदि गुरू ने भजन करने को कहा है और भजन किया जाय तब तो अपना कल्याण होगा । यदि गुरू कल्याण का रास्ता दिखाते हैं तो उस रास्ते पर स्वयं चलने से स्वयं का कल्याण होगा । अन्यथा यह कहने से कि गुरू जी कल्याण कर देंगे, कल्याण नहीं होगा । कल्याण अपने करने से ही होगा ।
रामहिं सुमिरिए गाइए रामहिं । संतत सुनिए राम गुन ग्रामहिं ।।
।। जय
श्रीराम ।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें