अयोध्याजी
परब्रह्म रूप हैं और सरयू जी साकार जलाकर परमपुरुष
परमात्मा हैं । अर्थात सरयूजी ब्रह्म का द्रवीभूत रूप हैं । उस अयोध्याजी के
निवासी समस्त जीव भगवान श्रीराम के रूप हैं । श्रीशंकरजी श्रीपार्वती जी से कहते
हैं कि हे देवि ! मैं सत्य कह रहा हूँ, मैं सत्य कह रहा हूँ-
अयोध्या च परं ब्रह्म
सरयूः सगुणः पुमान् ।
तन्निवासी जगंनाथः सत्यं
सत्यं वादाम्यहम ।।
उज्जैन को भगवान का चरण कहा गया है । कांचीपुरी को
भगवान का मध्यभाग कहा गया है । द्वारिकापुरी को भगवान की नाभि कहा गया है ।
हरिद्वार को ह्रदय, मथुरापुरी को भगवान का कंठ कहा गया है । सात पुरियों में से इन
छः पुरियों को भगवान का चरणादिरूप अंग बतलाकर अयोध्यापुरी को भगवान का मस्तक कहा
गया है । इस प्रकार अयोध्याजी सप्तपुरियों में श्रेष्ठ हैं ।
श्रीशंकर जी श्रीपार्वती जी से कहते हैं कि कि अयोध्यापुरी के अनुपम प्रभाव
को समस्त वेद, देवता, स्वयं मैं, और परम पुरुष विष्णु जी भी वर्णन करने में असमर्थ
हैं ।
मथुरापुरी में एक कल्प तक निवास करने से मनुष्य को
जो फल मिलता है, वही फल केवल सरयूजी के दर्शन से मिलता है । तीर्थराज प्रयाग में
बारह महीने तक निवास करने का जो फल मिलता है, वही फल सरयू जी के दर्शन से मिलता है
। सहस्त्रों मन्वंतर तक काशीपुरी में निवास करने से जो फल मिलता है, वही सरयूजी के
दर्शन से मिल जाता है ।
हजार
करोड़ कल्प तक अवन्तिकापुरी में निवास करने का जो फल होता है, वह फल सरयूजी के
दर्शन से प्राप्त हो जाता है । साठ हजार वर्ष तक श्रीगंगाजी में स्नान करने से जो
फल मिलता है, वही फल श्रीराम नगरी अयोध्या जी के दर्शन से मिल जाता है । इत्यादि ।
इस
प्रकार सरयूजी और अयोध्याजी की महिमा का वर्णन संभव नहीं है । श्रीराम नवमी आने
वाली है । अयोध्याजी-सरयूजी और भगवान श्रीराम के दर्शन के लिए अयोध्या पहुँचने का
सौभाग्य प्राप्त करके और श्रीराम नवमी को व्रत रखकर जीवन को धन्य करना चाहिए ।
।। श्रीअयोध्या-सरयूजी की जय ।।
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