भगवान राम अपनी भगवत्ता को सामान्यतया प्रगट
नहीं करते थे । इसलिए
एक बार ऋषि दुर्वासा के मन में विचार आया कि मुझे कुछ करना चाहिए जिससे लोग भगवान
राम के प्रभाव के बारे में और अधिक जान सकें ।
भगवान राम के पौरुष से सामान्य लोगों को परिचत कराने के लिए एक बार ऋषि दुर्वासा अपने साठ हजार शिष्यों को लेकर अयोध्या आ पहुँचे । और बोले कि मेरा एक व्रत सम्पन्न हुआ है और अब भोजन करना है । राम जी ने प्रसन्नता व्यक्त की और बोले कि अभी भोजन की व्यवस्था हो जायेगी । दुर्वासा जी बोले एक शर्त है । भोजन अग्नि से-ताप से, मणि से कामधेनु से नहीं तैयार अथवा प्राप्त करना है । भोजन सिद्ध-पका हुआ, मेरी रूचि के अनुरूप और सब पकवानों से युक्त होना चाहिए । यदि ऐसा भोजन करा सको तो ठीक है नहीं तो हम चले जाएँगे । और मुझे ऐसे पुष्प चाहिए जिसे आज तक पृथ्वी वासियों ने देखा न हो । राम जी ने कहा कि आपकी प्रत्येक इच्छा पूरी की जायेगी । ऋषि बोले ज्यादा समय नहीं है कुछ घड़ी का ही समय है इसलिए जल्दी से व्यवस्था हो जानी चाहिए । हम लोग सरयू स्नान करके तुरंत आ रहे हैं । रामजी ने कहा ठीक है । आप स्नान करके आ जाइये ।
ऋषि स्नान करने चले
गए । इधर मंत्री गण, सारे भाई और अन्य लोग एक दूसरे का मुख देखने लगे । और विचार
करने लगे कि ऋषि को भोजन कराने के लिए कह दिया गया है लेकिन ऐसा पुष्प जिसको किसी
पृथ्वी वासी ने आज तक न देखा हो कहाँ मिलेगा ? भोजन ताप-अग्नि से बनाना नहीं है । और
न कामधेनु से प्राप्त करना है और न ही मणि से तो ऐसे भोजन की व्यवस्था कैसे होगी ?
राम जी ने लक्ष्मण जी
से एक पत्र लिखाया और अपने वाण के माध्यम से इंद्रलोक में भेज दिया । इंद्र की सभा
में वाण पहुँच गया । वाण देखकर सब लोग चिंता में पड़ गए । देखा तो वाण पर राम नाम
अंकित था । और साथ में पत्र था । पत्र में ऋषि दुर्वासा के शर्तानुसार पुष्प और
भोजन की व्यवस्था करने के लिए पारिजात और कल्पवृक्ष अयोध्या बिना विलंब किए भेजने
के लिए लिखा था । और ये भी लिखा था कि दूसरे वाण की प्रतीक्षा मत कीजियेगा ।
इंद्र ने देवताओं के साथ सभा करके मंत्रणा
किया और बिना देर किए देवताओं के साथ पारिजात और कल्पवृक्ष लेकर अयोध्या में रामजी
की सेवा में उपस्थित हो गए ।
इधर दुर्वासाजी ने
अपने एक शिष्य को भेजा कि देखकर आओ कुछ व्यवस्था हुई कि सब लोग सोच विचार ही कर
रहे हैं । शिष्य ने देखकर बताया कि देवराज इंद्र देवताओं के साथ पारिजात और
कल्पवृक्ष लेकर उपस्थित हैं ।
ऋषि दुर्वासा अपने
शिष्यों के साथ आ गए और पारिजात के पुष्प से पूजा सम्पन्न करके कल्पवृक्ष से
प्राप्त भोजन किया और संतुष्ट होकर चले गए ।
भगवान राम ने देवराज
से कहा कि आप कल्पवृक्ष और पारिजात को वापस स्वर्ग लोक लेते जाइए । तब इंद्र ने
निवेदन किया कि जब तक आप पृथ्वी पर रहकर अपनी लीला करते रहेंगे तब तक कल्पवृक्ष और
पारिजात यहीं अयोध्या में ही रहेंगे । जब आप अपनी लीला सम्पन्न करेंगे तब
कल्पवृक्ष और पारिजात स्वर्गलोक में जाएँगे । रामजी ने ऐसा स्वीकार कर लिया और
इंद्र देवताओं के साथ स्वर्ग लोक चले गए ।
इसी पारिजात के लिए द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण को देवराज इंद्र और देवताओं के साथ युद्ध करना पड़ा था । और सत्यभामा जी के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण द्वारका में पारिजात को ले आए थे ।
।। जय श्रीराम ।।
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