अयोध्याजी की बड़ी महिमा है । अयोध्याजी विश्व की प्रथम नगरी और सप्तपुरियों में सर्वश्रेष्ठ हैं । भगवान श्रीराम कहते हैं कि अयोध्या पुरी सुख की राशि और मेरे परम धाम को देने वाली हैं । भगवान राम को अयोध्यापुरी बहुत प्रिय है ।
अयोध्या जी बड़ी सुहावनी हैं । मनोहर हैं । सभी लोकों में प्रसिद्ध हैं और अत्यंत पवित्र हैं । सभी
सिद्धियों को देने वाली हैं । और मंगलो की खानि हैं- राम धामदा पुरी सुहावनि । लोक समस्त बिदित अति पावनि ।। जो अयोध्या जी में साधना करते हैं उनके
सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं । और उन्हें राम धाम की
प्राप्ति हो जाती है ।
अयोध्या जी की महिमा जीव के समझ में तभी आती है जब हाथ में धनुष-वाण
धारण करने वाले रघुनाथ जी उसके हृदय में बस जाते हैं- अवध प्रभाव
जान तब प्रानी । जब उर बसहिं राम धनु पानी ।। अन्यथा लोग अयोध्या जी को भी साधारण नगरी
समझते रहते हैं । और अयोध्याजी में बसने, रहने, का महत्व नहीं समझ पाते । अयोध्या पुरी जीव को राम जी से जोड़ती हैं । उसे
कभी न कभी राम परायण बना देती हैं ।
श्रीरामचरितमानसजी में वर्णन आता है कि संसार में चार तरह के अनंत जीव होते हैं- स्वेदज, अंडज, जरायुज और उद्भिज । मनुष्य जरायुज होते हैं । इनमें से कोई भी प्राणी जो अयोध्याजी में देंह छोड़ता है उसे जन्म और मृत्यु के चक्कर में नहीं पड़ना पड़ता । अर्थात उसे पुनः संसार में नहीं आना पड़ता -चारि खानि जग जीव अपारा । अवध तजे तनु नहि संसारा ।।
।। जय अयोध्या जी की ।।
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