भगवान के असंख्य
अवतार हैं । जिनमें से चौबीस प्रमुख हैं । और इनमेंसे दस प्रमुख हैं । यह पहले भी
बताया जा चुका है कि जब जैसे रूप, गुण और लीला की जरूरत होती है, उसी के अनुरूप भगवान
एक नए रूप में प्रकट हो जाते हैं । इसे ही अवतार कहा जाता है ।
लेकिन राम रूप में भगवान ने जिस तरह दीनदयालुता, दीनबंधुता, करुणानिधानता, दया, क्षमा, शील, आदि गुणों को प्रकट किया उतना अपने अन्य रूप में नहीं किए । भगवान के ये गुण सभी अवतारों में मिलेगें लेकिन रामजी की बात निराली है । इसे समझने के लिए इस लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए ।
और किसी भी अवतार में
भगवान कोल, किरात और भील के बीच में आकर नहीं बसे । केवट,
निषाद और वानर भालुओं पर इतनी कृपा नहीं किया । रामजी के अतिरिक्त
किसी ने भी वानरों और भालुओं को अपना सखा नहीं बनाया । इन्हें अपने बराबर बैठाने
वाले केवल और केवल भगवान राम हैं । गीध को पिता और भीलनी को माता के बराबर समझने
वाले केवल और केवल मेरे भगवान राम हैं ।
राम
रूप में भगवान अपने अनुगत भक्तों पर,
अपने से जुड़े लोगों पर जैसी करुणा बरसाई है । उसका न ही वर्णन हो
सकता है और न ही किसी से तुलना हो सकती है ।
लंका में युद्ध चल रहा था । रावण ने विभीषण जी पर एक ऐसी शक्ति चला
दी जिससे उनका बचना असंभव था । विभीषण जी को मारने के लिए ही रावण ने यह विशेष
शक्ति बचा कर रखी हुई थी । शक्ति विभीषण जी को अपना लक्ष्य बनाती इससे पहले रामजी
ने विभीषण जी को पीछे करके स्वयं आगे आ गए और वह प्रहार स्वयं सहन कर लिया ।
एक बार भूल वश
ठोकर लगने से विभीषण जी से एक वृद्ध व्राह्मण की मृत्यु हो गई । विभीषण जी को बंदी बना लिया गया । लोहे के जंजीर से बाँधकर रखा गया । और
लोग उन्हें मृत्यु दण्ड देना चाहते थे । लेकिन रामजी स्वयं पुष्पक विमान से वहाँ
पहुँच गए और बोले सेवक के अपराध का दण्ड तो स्वामी को मिलना चाहिए । इसलिए मैं
विभीषण के बदले दण्ड स्वीकार करने को तैयार हूँ । विभीषण मेरा सेवक है । उनका वध
नहीं हो सकता क्योंकि मैंने उन्हें एक कल्प तक राज्य करने का आशिर्वाद दिया है ।
इस पर व्राह्मणों ने विभीषण जी को मुक्त कर दिया । लेकिन जब विभीषण जी रामजी से
प्रणाम करने आए तो रामजी ने उन्हें पहले प्रायश्चित करके आने को कहा । इस प्रकार
रामजी विभीषण जी के बदले मृत्यु दण्ड लेने को भी तैयार हो गए थे ।
रामजी अपने से जुड़े वानरों और भालुओं की भी इतनी केयर करते हैं कि
युद्ध में मरे हुए सभी वानरों और भालुओं को जीवित करा दिया । भगवान राम कहते हैं
कि मुझे मेरा दास सबसे बढ़कर प्रिय है । इसलिए वानरों और भालुओं को वहाँ छोड़कर नहीं
आए । सबको जीवित कर दिया गया और सब वापस अपने-अपने स्थान को सुरक्षित चले गए ।
वैसे तुलना तो नहीं करनी चाहिए लेकिन ऐसा भगवान
ने अन्यत्र नहीं किया । महाभारत के युद्ध में दोनों पक्षों के अनेकों लोग मरे ।
यहाँ तक कि सगे संबंधी भी, लेकिन भगवान ने किसी
को जीवित नहीं कराया । अभिमन्यू को भी भगवान ने जीवित नहीं कराया ।
जब राम जी ने प्रत्यक्ष लीला का संवरण किया तो अपने साथ अपने दासों
को लेकर गए । यहाँ तक तिर्यक योनि के प्राणियों को भी अपने साथ ले गए और व्रह्मलोक
से भी ऊपर समयंतक पुरी में बसा दिया । ऐसा भगवान ने अपने श्रीकृष्ण रूप में नहीं
किया । स्वयं तो अपने लोक को गए और लोगों को यहीं छोड़ दिया ।
रामजी मनुष्य तो क्या कुत्ते, बिल्ली और पक्षी आदि को भी अपने साथ ले गए और उन्हें अपने लोक में बसा दिया । इस प्रकार तीनों लोकों, चौदहों
भुवनों और तीनों कालों में राम जी के जैसा स्वभाव वाला कोई नहीं है । कागभुशिंड जी
गरुड़ जी से कहते हैं -
अस स्वभाव कहुँ सुनहुँ न देखहुँ । केहि खगेस रघुपति सम लेखहुँ ।।
।। जय श्रीराम ।।
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