दीनबंधु करुणानिधान प्रनतपाल रघुनाथजी मेरे भगवान श्रीराम गई बहोरि हैं । इसका अर्थ है कि किसी की कोई महत्वपूर्ण चीज चली जाय तो रामजी उसे वापस मिला देते हैं । जैसे किसी का स्वास्थ्य चला जाय तो हमारे राम जी उसे स्वास्थ्य दिला देते हैं ।
किसी का मान सम्मान चला जाय तो राम जी उसे मान सम्मान दिला
देते हैं । किसी की पद-प्रतिष्ठा चली जाय तो रामजी उसे पद प्रतिष्ठा दिला देते हैं
। आदि । आदि । इसलिए रामजी को गई बहोरि कहा जाता है ।
थपन उथपन पन का मतलब है कि यदि कोई उजड़ा हुआ राम जी की शरण में
चला जाय तो रामजी उस उजड़े हुए को बसा देते हैं । शरण में आए हुए उजड़े को बसाना रामजी
का प्रण है ।
सुग्रीवजी का राज्य
चला गया था, मान-सम्मान चला गया था लेकिन राम जी ने सब वापस दिला दिया । बालि ने
सुग्रीव जी को उजाड दिया था लेकिन रामजी ने सुग्रीवजी को बसा दिया । जहाँ से उजाड़े
गए थे वहीं बसा दिया ।
इसी तरह विभीषणजी का मान सम्मान चला गया था । रावण ने विभीषण
जी को लात मारकर लंका से निकाल दिया था । लेकिन रामजी ने विभीषणजी को मान-सम्मान
दिलाया । जिस लंका से विभीषणजी निकाले गए थे उसी लंका का राजा, राम जी ने विभीषणजी
को बना दिया ।
ऐसे रघुनाथ जी जो प्रनत कुटुंबपाल कहलाते हैं और जो गई बहोरि
तथा उजड़े हुए को बसाने वाले हैं ऐसे रामजी के सिवा मुझ जैसे दीन हीन की लाज कौन
रखेगा क्योंकि रामजी के सिवा मेरा कोई दूसरा सहायक नहीं है-
गई बहोरि थपन उथपन पन तुम बिनु कौन
सहाय ।
अवधपुरवासी साँवरे तेरो गुन कहियो न
जाय ।।
।। जय श्रीराम ।।
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