चित्रकूट विहारिणी-विहारी जी और चित्रकूट धाम की बड़ी महिमा है । कामद गिरि का दर्शन करने से मन के विषाद मिट जाते हैं । रामजी की ऐसी कृपा है । मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं ।
जीवन में कोई उथल-पुथल चल रही हो तो चित्रकूट दर्शन से उसका समाधान मिल जाता है । ग्रंथों में ऐसा वर्णन मिलता है कि राजा नल और दमयंती, पाँचो पांडव और द्रोपदी के जीवन की उथल-पुथल और दुख चित्रकूट दर्शन से दूर हो गए थे ।
।।श्रीसीतारामाभ्याम नमः ।।
।। चित्रकूट विहारी साँवरे तुम सम कोऊ न दिखाय ।।
चित्रकूट विहारी साँवरे तुम सम कोऊ न दिखाय ।
रघुकुलभूषण राम सियावर सीधे सरल सुभाय ।।१।।
जन हित कारण राम चले वन दशरथ मान बढ़ाय ।
तात मातु गुरजन पुरवासी थोड़ी अवधि
बताय ।
तिहुँपुर रघुकुल होत बड़ाई राम सरिस सुत पाय ।
सीता अनुज सहित वन आए राजिवनयन हर्षाय ।।३।।
नीच निषाद भेंटि उर लायो दीनबंधु
रघुराय ।
केवट जनम सुफल करि आयो चरण कमल धुलवाय
।।४।।
खग मृग वृंद पथिक मगवासी निरखे रूप
लुभाय ।
कोल किरात भील वनवासी रहे जनम फल पाय ।।५।।
अगजग नायक श्रीरघुनायक बोलन मिलन
सुहाय ।
कण-कण तृण गिरि भयो सुहावन महिमा सकै
को गाय ।।६।।
आवत यहाँ होत मन भावन कामद दिह्यो
बनाय ।
मंदाकिनि महिमा सुर गावत सेवत पाप नसाय
।।७।।
पाँवरी देइ भरत समुझायो दीन्हेउ अवध
पठाय ।
सुर मुनि अभय कियो सुरनायक रावन करि वनराय ।।८।।
नीच जयंत सराहत राघव निज अघ कृत फल पाय ।
मुनिवर वेष विराजत सेवत लखन सिया मन लाय ।।९।।
राम समान राम जन गावत उपमा खोजि लजाय
।
दीन संतोष दीन जन राखत आरत दीन सहाय ।।१०।।
।। चित्रकूट विहारी की जय ।।
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