आजकल कथाएँ बहुत होती हैं । और उनमें बहुत लोग आते हैं । कई-कई लोग दशकों से कथाएँ सुन रहे हैं । ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि कितनी कथाएं सुनने के बाद कल्याण होता है ?
यह ध्यान रखने वाली बात है कि वास्तविक कल्याण भगवत प्राप्ति
ही है । कथा सुनने जाना अच्छी बात है । सत्संग करना अच्छी बात है । लेकिन कितना
सत्संग करने के बाद कल्याण होता है ।
कई लोग ऐसे भी होते हैं जो कथा में नहीं जाते । यदि चले भी
जाएँ तो तीन-चार घंटे बिताना, बैठना, सुनना बड़ा भारी हो जाता है । इनकी अपेक्षा जो
जाते हैं वे ठीक हैं । उत्तम हैं ।
चाहे एक साल सत्संग
करो चाहे दस साल और चाहे एक कथा सुनों चाहे पचास लेकिन वास्तविक कल्याण होगा नहीं ।
क्योंकि कल्याण स्वयं करना पड़ता है । सत्संग से और कथा से बदलाव होना चाहिए ।
लेकिन जो और जैसा दस साल पहले कर रहे थे वही आज भी कर रहे हैं । तो क्या लाभ हुआ ?
सत्संग और कथा में वक्ता का भी प्रभाव होता है । पुराणों में
ऐसी कथाएं मिलती हैं कि एक कथा सुनने से ही कल्याण हो गया । इसमें यह ही कहा जा
सकता है कि सुनाने वाले भी योग्य थे । पहुँचे हुए थे । और सुनने वाले भी योग्य थे ।
आजकल दोनों का अभाव है
। कई कथाओं में लोगों को बहुत आनंद आता है और तीन-चार घंटे का समय भी आसानी से
निकल जाता है । थोड़ा बहुत ज्ञान और वैराग्य भी बढ़ता है । लेकिन कोई बहुत अंतर नहीं
आता । अधिकांश कथाओं में ऐसा ही होता है ।
मुख्य बात यह है कि
जीवन बदले कैसे ? काम, क्रोध और लोभ पहले से कम हुआ कि नहीं । या जैसा पहले था
वैसा आज भी है । जीवन में पवित्रता बढ़ी या नहीं । ईमानदारी बढ़ी कि नहीं । आदि । यह
अवश्य विचारणीय है । सभी को इस पर बिचार करना चाहिए ।
भगवान में अनुराग बढ़ा । संसार से वैराग्य बढ़ा । अथवा नहीं । जब तक यह नहीं होगा तब तक कल्याण नहीं होगा ? चाहे जितना सत्संग कर लिया जाय और चाहे जितनी कथाएँ सुन ली जाएँ ? इसलिए कथा और सत्संग से वास्तविक लाभ लेने के लिए जीवन में बदलाव आना बहुत जरूरी है । जीवन में बदलाव लाकर ही भगवान की ओर बढ़ने का काम और संसार से अंतर्मन को हटाने का काम हो सकता है । सत्संग और कथा का मुख्य ध्येय यही है ।
।। जय श्रीराम ।।
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