इस कलियुग में भी एक से बढ़कर एक संत हुए हैं । हो चुके हैं और अभी भी हैं । ग्रंथों और संतों के अनुसार कलियुग में सभी साधनों की अपेक्षा राम नाम उत्तम और प्रभावी है ।
पहले भी राम नाम प्रेमी संत हुए हैं और आज भी राम नाम प्रेमी
संत हैं । लेकिन गोस्वामी तुलसीदास जी जैसा कोई राम नाम प्रेमी संत न इस कलियुग
में हुआ था, न है और न होगा ।
वैसे नाम और नामी में भेद नहीं है । फिर भी यह कहना गलत नहीं
है कि गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज को राम जी से अधिक विश्वास और प्रेम राम नाम से
था ।
गोस्वामीजी स्वयं राम नाम जपते थे । लोगों से जपने के लिए कहते
थे । और अपने ग्रंथों के माध्यम से आज भी हम लोगों को और आने वाली पीढ़ियों को भी
राम नाम जपने का उपदेश दे रहे हैं ।
ऐसा कहा जाता है कि एक व्यक्ति को हत्या को दोष लगा था । और वह
यहाँ-वहाँ मारा-मारा फिर रहा था । उसे काशी में भूँख-प्यास से पीड़ित देखकर
गोस्वामी जी ने कहा कि ‘राम’ बोलो । उसने राम कहा और गोस्वामीजी उसे अपनी कुटिया
में बिठाकर जलपान आदि कराया । यह बात चर्चा का विषय बन गई । लोगों ने कहा कि एक हत्यारे
को आपने अपनी कुटिया में बिठा लिया । गोस्वामी जी ने कहा कि वेद-उपनिषद, पुराण और
अन्यान्य ग्रंथों में जो राम नाम की महिमा गाई गई है उस पर आप लोगों को विश्वास
नहीं है क्या ? रामनाम पतितपावन है । राम नाम लेकर यह पवित्र हो चुका है । ऐसा
विश्वास था गोस्वामी जी को राम नाम पे ।
गोस्वामी जी को राम
नाम से इतना प्रेम था कि वे कहते थे कि यदि किसी के मुख से धोखे से भी एक बार राम
नाम निकल जाए तो उसके पैरों की जूतियों के लिए तुलसी के शरीर का चर्म काम में आ
जाए तो अच्छा है । राम नाम से इतना प्रेम गोस्वामी तुलसीदास जी के अतिरिक्त और कौन
कर सकता है-
तुलसी जाके वदन से, धोखेहूँ निकसत राम
।
ताके पग की पगतरी, मेरे तन को चाम ।।
।। जय श्रीराम ।।
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