बालुकामय शिव लिंग को उखाड़ने के प्रयास में जब हनुमानजी
गिरकर मूर्छित हो गए तो राम जी हनुमानजी का सिर अपनी गोदी में रखकर विलाप करते हुए
हनुमानजी का मुख देखते हुए रो रहे थे । भगवान श्रीराम के कमलनयनों के जल से
हनुमानजी का मुख भीग गया । तब हनुमानजी को धीरे-धीरे चेतना लौटी । रामजी ने
हनुमानजी को ह्रदय से लगाया । हनुमानजी ने दण्ड के समान लेटकर भगवान श्रीराम के
चरणों में प्रणाम किया और फिर खड़े होकर हाथ जोड़े गदगद कंठ से भगवान श्रीराम की स्तुति
करने लगे –
नमो रामाय हरये विष्णवे प्रभविष्णवे ।
सबकी अर्थात चर-अचर संपूर्ण व्रह्मांड की उत्पत्ति के आदि कारण, सर्वव्यापी, श्रीहरि स्वरूप श्रीरामचंद्र जी को नमस्कार है । आदिदेव, पुराणपुरुष भगवान गदाधर को नमस्कार है । पुष्पक के आसन पर नित्य विराजमान होने वाले महात्मा श्रीरघुनाथ जी को नमस्कार है । प्रभो ! हर्ष से भरे हुए वानरों का समुदाय आपके युगल चरणारविन्दों की सेवा करता है, आपको नमस्कार है । राक्षसों के राजा रावण को पीस डालने वाले तथा संपूर्ण जगत का अभीष्ट सिद्ध करने वाले श्रीरामचंद्रजी को नमस्कार है । आपके सहस्त्रों मस्तक, सहस्त्रों चरण और सहस्त्रों नेत्र हैं, आप विशुद्ध विष्णु स्वरूप राघवेंद्र को नमस्कार है । आप भक्तों की पीड़ा दूर करने वाले तथा सीता के प्राणवल्लभ हैं, आपको नमस्कार है ।
दैत्यराज हिरण्यकशिपु के वक्षः स्थल को विदीर्ण करने वाले आप
नृसिंहरूप धारी भगवान विष्णु को नमस्कार है । अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को उठाने वाले
भगवान वराह ! आपको नमस्कार है । बलि के यज्ञ को भंग करने वाले भगवान त्रिविक्रम को
नमस्कार है । वामनरूपधारी भगवान को नमस्कार है । अपनी पीठ पर महान मंदराचल धारण
करने वाले भगवान कच्छप को नमस्कार है । तीनों वेदों की रक्षा करने वाले मत्स्यरूप
धारी भगवान को नमस्कार है ।
क्षत्रियों का अंत
करने वाले परशुराम रूपी राम को नमस्कार है । राक्षसों का नास करने वाले आपको
नमस्कार है । राघवेंद्र का रूप धारण करने वाले आपको नमस्कार है । महादेवजी के महान
भयंकर महाधनुष को भंग करने वाले आपको नमस्कार है । क्षत्रियों का अंत करने वाले
क्रूर परशुराम को भी त्रास देने वाले आपको नमस्कार है । भगवन ! आप अहिल्या का
संताप और महादेवजी का चाप हरने वाले हैं, आपको नमस्कार है । दस हजार हाथियों का बल
रखने वाली ताड़का के शरीर का अंत करने वाले आपको नमस्कार है । पत्थर के समान कठोर
और चौड़ी बाली की छाती छेद डालने वाले आपको
नमस्कार है । आप मायामय मृग का नाश करने वाले तथा अज्ञान हर लेने वाले हैं, आपको
नमस्कार है ।
दशरथजी के दुख रूपी समुंद्र
को शोष लेने के लिए आप मूर्तिमान अगस्त्य हैं, आपको नमस्कार है । अनंत
उत्तालतरंगों से उद्वेलित समुद्र का भी दर्प दलन करने वाले आपको नमस्कार है ।
मिथलेशनंदिनी सीता के ह्रदयकमल को विकसित करने वाले सूर्यरूप आप लोकसाक्षी श्रीहरि
को नमस्कार है । हरे ! आप राजाओं के भी राजा और जानकी के प्राणवल्लभ हैं, आपको नमस्कार
है । कमलनयन ! आपही तारक ब्रह्म हैं, आपको नमस्कार है । आपही योगियों के मन में
रमने वाले राम हैं । राम होते हुए चन्द्रमा के समान आह्लाद प्रदान करने के कारण
रामचंद्र हैं । सबसे श्रेष्ठ और सुखस्वरूप हैं । आप विश्वामित्रजी के प्रिय हैं,
खर नामक राक्षस का ह्रदय विदीर्ण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है । भक्तों को
अभयदान देने वाले देवदेवेश्वर ! प्रसन्न होइये । करुणासिन्धु श्रीरामचंद्र आपको
नमस्कार है । मेरी रक्षा कीजिए । वेद वाणी के भी अगोचर राघवेंद्र ! मेरी रक्षा
कीजिए ।
प्रसीद देवदेवेश भक्तानामभयप्रद ।
रक्ष मां करुणासिंधो रामचंद्र नमोऽस्तु ते ।।
रक्ष मां वेदवचसामप्यगोचर राघव ।
पाहि मां कृपया राम शरणं त्वामुपैप्यहम् ।।
श्रीराम कृपा करके
मुझे उबारिये । मैं आपकी शरण में आया हूँ । रघुवीर ! मेरे महान मोह को इस समय दूर
कीजिए । रघुनंदन ! स्नान, आचमन, भोजन, जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति आदि सभी क्रियाओं
और सभी अवस्थाओं में आप मेरी रक्षा कीजिए । तीनों लोकों में कौन ऐसा है, जो आपकी
महिमा का वर्णन या स्तवन करने में समर्थ हो सकता है । रघुकुल को आनंदित करने वाले
श्रीराम ! आपही अपनी महिमा को जानते हैं ।
महिमानं तव स्तोतुं कः समर्थो जगत्त्रये ।
त्वमेव त्वन्महत्वं वै जानासि रघुनन्दन ।।
इस प्रकार अंजनानंदन हनुमानजी ने करुणामूर्ति श्रीरघुनाथ जी की स्तुति किया । यह स्कंद पुराण के अंतर्गत श्रीहनुमानजी द्वारा की गई भगवान श्रीराम की स्तुति है ।
।। जय श्रीराम ।।
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