भगवान एक हैं लेकिन भगवान के अनंत स्वरूप हैं । भगवान के अनेकों अवतार हैं । और शंकरजी को भगवान बहुत प्रिय हैं । लेकिन शंकरजी का भगवान श्रीराम से जो प्रेम है वह निराला है । ऐसा प्रेम शंकरजी का भगवान के दूसरे रूप अथवा अवतार से देखने को नहीं मिलता है । इस तथ्य को इस लेख में प्रकाशित किया गया है ।
भगवान के हर अवतार में
शंकरजी भगवान का दर्शन करने आते हैं । और भगवान की लीला देखने भी आते हैं अथवा
देखते हैं । और कभी-कभी लीला में एक पात्र के रूप में सम्मिलत भी होते हैं ।
उदाहरण के लिए भगवान
श्रीकृष्ण की लीला में भगवान शंकर कई बार एक पात्र के रूप में आए हैं । जैसे
वाणासुर की ओर से भगवान श्रीकृष्ण से युद्ध करने के लिए आना । अथवा वृंदावन में
रासलीला के समय गोपी रूप में आना । आदि ।
इसी तरह श्रीनृसिंहा
अवतार में हिरण्यकश्यप के वध के बाद शंकर जी आए और भगवान का क्रोध शांत करने के
लिए सिंह शार्दूल का रूप धरकर नृसिंह भगवान से युद्ध भी किया ।
लेकिन भगवान श्रीराम
के अवतार के समय जहाँ एक ओर भगवान शंकर जी स्वयं तो आते ही थे । जैसे जन्म के समय,
रण लीला के समय, बार-बार स्तुति करने के लिए आदि । वहीं दूसरी ओर एक रूप से-हनुमान
जी बनकर सदा राम जी के पास रहते थे ।
भगवान श्रीराम की सेवा के लिए, उनके साथ रहने के लिए, उनका सेवक बनने के लिए शंकरजी स्वयं वानर बन गए । सेवक ही बनना था । तो मनुष्य रूप में भी सेवक बना जा सकता था । लेकिन शंकर जी ने सोचा कि जब हमारे स्वामी ही मनुष्य रूप में हैं तो हम मनुष्येत्तर योनि अर्थात वानर बनकर सेवा करेंगे । स्वामी से सेवक की कक्षा छोटी होनी चाहिए । इसलिए मनुष्य से छोटी योनि अर्थात वानर योनि में- श्री हनुमान जी बनकर शंकरजी भगवान श्रीराम की सेवा में आ गए ।
हनुमानजी राम जी के ऐसे सेवक बने, ऐसी सेवा की
जिसकी उपमा भूत और भविष्य में किसी से भी नहीं दी जा सकती है । हनुमानजी रामजी के
अनुपमेय सेवक हैं । और हनुमानजी ने रामजी की अनुपमेय सेवा भी की है ।
हनुमानजी का सर्वस्व
है- रामजी की रूप माधुरी । हनुमानजी को भगवान श्रीराम के मुखकमल का दर्शन करने में
बड़ा सुख मिलता है । हनुमानजी रामजी के मुखकमल को निहारते ही रहते हैं ।
हनुमानजी की सेवा, हनुमानजी का समर्पण सब कुछ अद्वितीय है । धन्य
हैं हनुमानजी जो केवल रामजी के लिए ही जीते हैं । धन्य हैं भगवान शंकर जिनको भगवान
श्रीराम से इतना प्रेम है । जो अपनी कक्षा से उतरकर प्रेम बस मनुष्य की कक्षा से
नीचे वानर बनकर दिन-रात भगवान श्रीराम की सेवा में रहते हैं-
जेहिं शरीर रति
राम से, सो आदरहिं सुजान ।
रूद्र देंह तजि नेह बस, वानर भे हनुमान ।।
।। जय श्रीहनुमान ।।
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