धर्म परायण लोग ग्रंथों के माध्यम से, संतों के माध्यम से और
गीत आदि के माध्यम से सत्संग की महिमा सुनते अथवा जान पाते हैं । इसलिए लोग सत्संग
करते हैं और यह मानते हैं कि इससे उनका कल्याण होगा । लेकिन क्या-क्या सुनते हो, किससे सुनते हो आदि बातों का भी
प्रभाव होता है और साइड इफेक्ट तो लाजिमी है ही ।
कई लोग यह नहीं जानते हैं कि सत्संग का मतलब केवल कथा प्रवचन सुनना नहीं होता है । सत्संग ऐसा विचार भी है, ऐसी सोच अथवा ऐसी प्रेरणा भी है जिससे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है, जीवन में उत्थान होता है । और ऐसा विचार, ऐसी सोच अथवा ऐसी प्रेरणा किसी भी माध्यम से मिल सकती है । यह सब सत्संग के अंतर्गत ही आता है और रामजी की कृपा से ही सुलभ होता है ।
अतः ऐसा कह सकते हैं कि सत्संग के कई प्रकार हैं और कई माध्यम हैं जिसमें से वह सत्संग जो भगवान से जोड़ता है ज्यादा श्रेष्ठ माना जाता है ।
आज के समय में सत्संग का साइड इफेक्ट भी होता है । सत्संग से
लोक और परलोक दोनों बिगड़ भी सकते हैं । अब यहाँ यह प्रश्न है कि जिसे करने से लोक
और परलोक दोनों बिगड़ जाते हैं उसे सत्संग क्यों कहा जा रहा है ? इसे भी सत्संग
इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि यह सब भी सत्संग के नाम पर ही होता है और लोग इसे
सत्संग मानकर ही सुनते अथवा अनुसरण करते हैं ।
सनातन धर्म के आधार ग्रंथ वेद, उपनिषद, पुराण, गीता, रामायण और रामचरितमानस आदि हैं । जहाँ इन ग्रंथों की उल्टी व्याख्या हो रही हो उस सत्संग से लोक और परलोक दोनों बिगड़ जाएँगे इसमें किस बात का संदेह है ? कुछ समय पूर्व मैंने देखा था कि कुछ लोग ऐसी पुस्तकें बाँट रहे थे जिसमें उपरोक्त ग्रंथों का गलत विवेचन करके बताया गया था कि इन पुस्तकों के लेखक से ही कल्याण होगा और दुखों से मुक्ति होगी । और कई लोग इस रास्ते को भी चुन रहे हैं । ऐसी स्थिति में यदि भगवान को कोई अन्य नर्क बनाना पड़े तो क्या आश्चर्य है ?
कहीं-कहीं ऐसे सत्संग होते हैं जिसमें अपने को सही और दूसरों को गलत समझाने का प्रयास किया जाता है । लोगों को गुमराह करके अपने से जोड़ने का प्रयास किया जाता है । जैसे एक संत बता रहे थे कि जो बड़े-बड़े संत कथा-प्रवचन करते हैं वे सब फँसे हुए हैं और उन्हें संसार में फिर से आना पड़ेगा । उनकी कथाओं में जो साधु-संत उनके साथ आते हैं अथवा रहते हैं वे माल-पूड़ी काटने के लिए और मोटी दक्षिणा पाने के लिए आते हैं अथवा रहते हैं । आजके समय में पहले से ही साधु-संतों के प्रति श्रद्धा और विश्वास की कमी है यह सब सुनकर श्रद्धा और विश्वास और कम होगा । यह भी सत्संग का साइड इफेक्ट है । कथा में एक संत कह रहे थे कि पिछले बीस-पच्चीस वर्षों में कोई अच्छा संत और भक्त नहीं हुआ । अब एक-दो वर्षों में कोई बड़ा चमत्कार होने वाला है लेकिन आप लोग इसे मेरा अभिमान मत समझना । एक पास बाकी सब फेल । इसका भी साइड इफेक्ट है ।
भगवद प्राप्ति, भगवद दर्शन,
भगवद लीला में प्रवेश, मैं में स्थित होना, समता में आ जाना आदि को बहुत हल्का-खेल
बना देने के भी बड़े-बड़े साइड इफेक्ट होते हैं । लेकिन कलियुग में खेल ही खेल है-
रामदास कलिकाल में, खेल खेल में खेल ।
दर्शन प्राप्ती खेल भै, खेल भै लीला
मेल ।।
सत्संग करके कोई स्त्री अपने पति के विरुद्ध हो जाए अथवा
विरुद्ध आचरण करने लगे तो यह भी साइड इफेक्ट है । यही बात पुरुष के लिए भी लागू
होती है ।
किसी ग्रंथ में कोई बात कही गई है अथवा किसी अच्छे संत ने कोई
बात कही है तो किसके लिए कही है, किस प्रयोजन से कही है, किस प्रसंग में कही है यह सब समझे बिना, जाने बिना
कहीं और कुछ भी बोल देने के भी साइड इफेक्ट होते हैं । एक छोटी सी घटना का उल्लेख
कर रहे हैं ।
अभी हाल ही में एक
संत कथा कहते हुए कह रहे थे कि यदि आपका बेटा अथवा कोई अन्य आपका कहना नहीं मानता
तो इसमें आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है । दुखी होने की जरूरत नहीं है । वह
आपका हितैषी है । वह आपको संसार से मुक्त करेगा आपको संसार में फँसाएगा नहीं ।
आपको उससे बहुत राजी होना चाहिए । इसलिए कहना न मानना बहुत अच्छी बात है । वह आपका
शत्रु नहीं बल्कि मित्र है आदि । इस सत्संग में कई बच्चे भी थे । एक दस-ग्यारह
वर्ष का लड़का भी था वह घर आकर अपनी माता जी से बोला कि आज से मैं आपकी एक भी बात
नहीं मानूँगा । महाराज जी कथा में यही बता रहे थे । आदि ।
कुल मिलाकर बहुत सावधान
रहने की जरूरत है । किससे और क्या सुन और सीख रहे हैं इन सब बातों का बड़ा महत्व है
। कुछ भी किसी से भी सुन लेना सत्संग नहीं है । आजकल के कई सत्संग से लोक और परलोक
दोनों बिगड़ भी सकते हैं और वैकुण्ठ की प्राप्ति तो दूर की कौड़ी हो सकती है भगवान
को कोई अन्य नर्क भी बनाना पड़ सकता है ।
।। जय श्रीराम ।।
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