पुष्पक विमान जिसका वर्णन रामायण और श्रीरामचरितमानस आदि
ग्रंथों में मिलता है, एक बहुत ही अद्भुत विमान था । इसका निर्माण स्वयं व्रह्माजी
ने किया था । इसकी भव्यता, इसकी दिव्यता, आदि का वर्णन श्रीवाल्मीकि रामायण के
सुंदर काण्ड में मिलता है ।
पहले यह कुबेर जी की सेवा में था । इसकी दिव्यता, भव्यता आदि
देखकर रावण का मन इस पर आ गया और उसने कुबेर से इस विमान को युद्ध करके जीत लिया-
एक बार कुबेर पर धावा । पुष्पक जान
जीति लै आवा ।।
जब भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त किया तो लंका से
अयोध्या आने के लिए विभीषण जी ने पुष्पक विमान को रामजी की सेवा में प्रस्तुत किया ।
रामजी, सीताजी, लक्ष्मणजी और अन्य सखा जब अयोध्या पहुँच गए तब राम जी ने पुष्पक
विमान से कहा कि अब तुम कुबेर की सेवा में चले जाओ । तब भगवान श्रीराम की आज्ञा
पाकर पुष्पक विमान कुबेर जी की सेवा में चला गया-
उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि, तुम कुबेर पहिं जाहु ।
प्रेरित राम चलेउ सो, हरषु बिरहु अति ताहु ।।
यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि पुष्पक कोई सामान्य विमान
नहीं था । वह दिव्य विमान था । चैतन्य था । इसलिए जब वह रामजी की प्रेरणा से चला
तो कुबेर के पास जा रहा था इस बात का उसे हर्ष था और रामजी से उसका वियोग हो रहा
था, इस बात का उसे दुख था । पुष्पक विमान बोल भी सकता था और सुन भी सकता था ।
जब पुष्पक विमान कुबेर
जी के पास पहुँचा तो कुबेर जी ने पुष्पक विमान को पुनः राम जी की सेवा में भेज
दिया । इसलिए वह अयोध्या जी में आ गया और राम जी से स्वीकार करके अपनी सेवा में
रखने के लिए निवेदन किया । रामजी ने कहा कि तुम मुक्त होकर विचरण करो और जब मुझे
आवश्यकता होगी तब मैं तुम्हारा स्मरण करूँगा । तब तुम मेरी सेवा में आ जाया करना ।
अतः पुष्पक विमान रामजी की सेवा में आ गया था । जब आवश्यकता पड़ती थी तब वह रामजी
की सेवा में प्रस्तुत हो जाता था । इस प्रकार पुष्पक विमान रामजी की सेवा में रहता
था । और यह बड़ा ही दिव्य विमान था जो चैतन्य था । तथा इसकी कई विशेषताएँ थीं ।
जैसे यह बोल और सुन भी सकता था । आदि ।
।। जय श्रीराम ।।
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