एक बार भगवान राम और माता सीता कामद गिरि पर विराज रहे थे । रामजी ने ऊपर से देखा कि एक ग्वारिया गायों को चरा रहा है । हाथ में लकुटी लिए हुए था और सिर पर पगड़ी रखा हुआ था ।
रामजी ने उसे देखा और हँसने लगे । सीताजी रामजी के हँसने का
कारण पूछने लगीं ।
रामजी ने ग्वारिया को दिखाया और बोले मैं अपने अगले अवतार में ऐसे
ही ग्वारिया बनकर गायों को चराऊँगा ।
सीताजी ने कहा तब उस
रूप में आप कैसे दिखोगे ? यह मैं देखना चाहती हूँ । तब रामजी ने एक पत्थर की शिला
पर अपने उस रूप को उकेर दिया । और सीता जी ने उस रूप में भगवान राम को देखा ।
संत जन कहते हैं कि आज
भी भगवान कृष्ण की वह मूर्ति जिसे भगवान राम ने अपने हाथों से बनाया था, उड़ीसा
प्रान्त के एक श्रीकृष्ण मंदिर में सुरक्षित है ।
इस प्रकार त्रेता के भगवान राम कई चतुर्युगी बीत जाने पर भाद्रपद
माह के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण के रूप में मथुरा में अवतरित
हुए । और तभी से भक्त जन श्रीकृष्णजन्माष्टमी मनाते हैं । इस प्रकार रामजी
ग्वारिया बनकर गाय चराए ।
यहाँ कई चतुर्युगी
शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया है कि हर त्रेता के बाद द्वापर आता है । लेकिन जिस
त्रेता में भगवान राम का अवतार होता है उसके तुरंत बाद वाले द्वापर में भगवान
श्रीकृष्ण का अवतार नहीं होता है । कई बार त्रेता और द्वापर आते-जाते हैं और लाखों
वर्ष बीत जाने पर भगवान श्रीकृष्ण का अवतार होता है । भगवान श्रीराम और भगवान
श्रीकृष्ण के अवतार के बीच में डेढ़ करोड़ से भी अधिक वर्ष का अंतर होता है ।
श्रीवाल्मीकि रामायण
के अनुसार जब व्रह्माजी रावण वध के उपरांत रामजी की स्तुति करने आए तो राम जी को
मथुरेश कहकर स्तुति किया । अर्थात कई लाख वर्ष पूर्व ही व्रह्मा जी ने कह दिया था कि
हे भगवन आप ही अपने अगले अवतार में मथुरेश बनकर धरती का भार उतारेंगे ।
इस प्रकार भगवान श्रीराम ही मथुरेश और ग्वारिया बनकर व्रह्मा
जी की और अपनी वाणी को सत्य किया-
धनुष वाण या वेणु लो श्याम रूप के संग
।
मुझपे चढ़ने से रहा राम दूसरा रंग ।।
।। ग्वारिया और मथुरेश भगवान की जय ।।
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