भगवान श्रीराम अनंत गुणगण निलय हैं । इसलिए शेष, महेश, गणेश,
शारद, नारद, वेद आदि रामजी के गुणों का वर्णन नहीं कर सकते हैं । भगवान राम के गुण
सदैव भगवान राम में स्थिति रहते हैं । इसलिए भगवान श्रीराम सदैव एकरस रहते हैं ।
उनके गुण कभी भी, कहीं नहीं जाते । अर्थात उनसे दूर नहीं होते-तेरो गुन कहियो न जाय ।
संसार के लोग और यहाँ तक देवता भी एकरस नहीं रहते । इनके लिए
गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज कहते हैं कि ये लोग तो बहुत जल्दी जूड़ें और बहुत जल्दी
गरम हो जाते हैं । अर्थात कब खुश होकर कुछ हित कर दें और कब नाराज होकर कुछ अहित
कर दें अथवा अहित करने के बारे में सोचने लगें, कुछ कहा नहीं जा सकता है ।
लेकिन हमारे रामजी के गुण कभी नहीं जाते हैं । इसलिए रामजी के
लिए थोड़े में ही जूड़ें और थोड़े में ही गरम होने की बात लागू नहीं होती । और भक्त के
हित की, शरणागत के हित की क्या बात की जाय जब रामजी अपने शत्रु का भी हित ही चाहते
हैं । रामजी गुणग्राही, छमानिधान और करुणानिधान हैं और इसलिए जिस पर एक बार कृपा
कर देते हैं उस पर कृपा ही करते रहते हैं ।
चूँकि रामजी के गुण किसी भी दिन, कभी भी नहीं जाते हैं इसलिए
ही उनके विरद की रीति आज तक पहले के ही भाँति चली आ रही है और आगे भी चलती रहेगी-
श्रीराम चरण अब भी जन को उतना ही
सुखदाई है ।
करुणासागर की करुणा में, कहीं कमी
नहीं कोई आई है ।।
न ही राघव ने अपने विरद की रीति भुलाई
है ।
साधु संत सद्ग्रंथों ने किया झूठी नहीं बड़ाई है ।।
।। जय श्रीराम ।।
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