आधुनिक विज्ञान में पलायन वेग-चाल का सिद्धांत है । हर ग्रह-उपग्रह आदि का पलायन वेग अलग-अलग होता है । जैसे पृथ्वी का पलायन वेग और चन्द्रमा का पलायन वेग अलग है ।
यह वह न्यूनतम वेग होता है
जिससे फेंके जाने पर कोई चीज उस ग्रह के गुरुत्वाकर्षण सीमा को पार कर जाती है ।
इसकी गणना का एक सूत्र होता है । जो यहाँ देना जरूरी नहीं है । पृथ्वी के लिए
पलायन वेग लगभग ११.२ किमी प्रति सेकेंड है ।
रावण की सेना में १००० ऐसे
सैनिक थे जिन्हें अमरता का वरदान प्राप्त था । सामान्यतया अमरता का वरदान
किसी को जल्दी नहीं दिया जाता और खासकर राक्षसों को । फिर भी ये लोग अमरता का
वरदान व्रह्मा जी से प्राप्त करने में सफल हो गए थे ।
जब रावण को लगा की रामजी की सेना से उसकी पराजय निश्चित है तो उसने
अपने इंही सैनिकों को युद्ध के लिए भेज दिया ।
रामादल में जब यह समाचार
पहुँचा कि रावण की अमर सेना लड़ने आ रही है तो चिंतन होने लगा कि इसका समाधान क्या
है ? अमर सेना से तो लड़ते जाओ कोई मरेगा ही नहीं ।
राम जी का प्रण था कि दुष्ट
राक्षसों से अर्थात जिनमें राक्षसत्व है उनसे पृथ्वी को बिहीन कर दूँगा । ऐसे में
इस अमर सेना का क्या किया जाय ?
हनुमानजी ने कहा कि प्रभु
मुझे आज्ञा दीजिए मैं अमर सेना से अकेले ही निपट लूँगा । हनुमानजी को आज्ञा मिल गई
। सेना और हनुमानजी युद्ध क्षेत्र में आमने सामने आ गए । इस स्थिति और परिस्थिति
में युद्ध करना बुद्धिमानी का कार्य तो था नहीं । और हनुमानजी महाराज बल, बुधि, विद्या, ज्ञान और विज्ञान के धाम हैं ही । इसलिए इस स्थिति में हनुमानजी ने
अपने ज्ञान-विज्ञान और बुधि का प्रयोग किया ।
हनुमानजी ने अपनी पूँछ को बढ़ाना शुरू किया और सारी सेना को पूँछ के
घेरे में लेकर बाँध लिया और फिर अतुलित बल के धाम हनुमान जी ने एक साथ सबको ऐसे
प्रक्षेपित किया कि सब के सब पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण सीमा को पार कर गए । और कभी
वापस नहीं लौट सके ।
आज भी अनंत आकाश में वे राक्षस चक्कर काट रहे हैं । उन्हें अपने अमर
होने पर भी पछतावा हो रहा होगा ।
इस प्रकार आज से डेढ़ करोड़ से भी अधिक वर्ष पूर्व रामायण काल में
राम-रावण युद्ध में हनुमानजी महाराज ने पलायन वेग-चाल सिद्धांत का प्रयोग करके
रावण की अमर सेना से पृथ्वी को मुक्त कर दिया था-
लूमि लपेटि अकास निहारिकै, हाँकि हठी हनुमान चलाये ।
सूखि गे गात चले नभ जात, परे भ्रम-बात न भूतल आये ।।
।। महाबली हनुमानजी महाराज की जय ।।
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