गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज कहते हैं कि भगवान श्रीराम की भक्ति सुलभ है और सुख देने वाली है । भगवान श्रीराम की भक्ति दैहिक, दैविक तथा भौतिक तापों को एवं शोक और भय को हरने वाली है ।
अर्थात जिसके भीतर राम जी की भक्ति आ जाती है यानी जो वास्तविक भक्त
होता है वह तीनों तापों से रहित हो जाता है । वह निर्भय और शोक रहित हो जाता है ।
उसे न किसी बात की और न ही किसी का भय रहता है और न ही उसे कोई चिंता सताती है ।
गोस्वामीजी कहते हैं कि बिना सत्संग के भक्ति नहीं होती है और
सत्संगति भगवान श्रीराम की कृपा के बिना नहीं मिलती है । जब जीव पर भगवान श्रीराम
की कृपा हो जाती है तो उसे साधु, सदग्रंथ आदि के माध्यम से सत्संग जरूर मिलता है
जिससे जीव के भीतर भक्ति का बीजारोपण हो जाता है ।
गोस्वामीजी महाराज कहते हैं कि जब दीनों पर दया करने वाले भगवान
श्रीराम किसी जीव पर द्रवित हो जाते हैं तो उसे ऐसे साधुओं की संगति मिल जाती है
जिनके दर्शन, स्पर्श और भगवत चर्चा से पाप की राशियों का नास हो जाता है । और
जिनके मिलने से सुख और दुख समान लगने लगते हैं । अर्थात जीव न दुख में दुखी होता
है और न सुख में सुखी होता है । प्रसंशा और गाली को वह एक समान समझने लगता है । वह
स्वयं तो अमानी और दूसरों को मान देने वाला बन जाता है । आदि । यानी जीव के अंदर
वास्तविक समता आ जाती है ।
और जीव के अंदर सुबोध-सत-असत का तत्व ज्ञान उतर जाता है जिससे मद, मोह,
लोभ, विषाद और क्रोध सहज ही दूर हो जाते
हैं ।
आजकल लोग समता की बात अधिक करते हैं लेकिन समता में जीते नहीं हैं ।
जबकि समता में जीने की जरूरत होती है ।
जब उपरोक्त बातें जीव के भीतर उतर जायेंगी, चरितार्थ हो जायेगी तो वह
स्वयं संत हो जाएगा । संत होने के लिए भेष की नहीं भाव की ही प्रधानता होती है । और
तब भक्ति भी आ जायेगी और रामजी भी मिल जाएँगे-
रघुपति भगति सुलभ सुखकारी । सो त्रय ताप शोक भय हारी ।।
बिनु सत्संग भगति नहि होई । ते तब मिलइ द्रवय जब सोई ।।
जब द्रवय दीनदयालु राघव साधु संगति पाइये ।
जेहि दरस परस समागमादिक पाप राशि नसाइये ।।
जिनके मिले दुख सुख समान अमानतादिक गुन भये ।
मद-मोह –लोभ विषाद क्रोध सुबोध ते सहजेहिं गये ।।
आज के समय में ऐसी स्थिति के संत और सत्संगति मिलना दुर्लभ है कि जिनके मिलने से ‘दुख सुख सरिस प्रशंसा गारी’ चरितार्थ हो जाए और अमानतादिक गुन जीवन में आ जाएँ-‘सबहिं मानप्रद आप अमानी’। फिर भी यथा संभव सत्संग करते रहना चाहिए और भजन में लगे रहना चाहिए ।
।। जय श्रीराम ।।
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