इस कलियुग में दो भगवद भक्त गोस्वामी तुलसीदासजी और सूरदास जी ऐसे हुए हुए हैं जिनके बारे में सामान्यतया सबको पता है ।
यह बात भी सबको पता है कि ये
दोनों भक्त अलग-अलग भगवद स्वरूपों को अपना ईष्ट मानते थे । गोस्वामी जी के ईष्ट भगवान
श्रीराम और सूरदासजी के ईष्ट भगवान श्रीकृष्ण थे ।
आजकल कई संत और भक्त ऐसे
पाए जाते हैं जो तथ्य हीन बातें बताकर लोगों को गुमराह करते हैं । लेकिन न ही
तुलसीदास जी ने और न ही सूरदास जी ने कभी किसी को गुमराह किया ।
दोनों भक्त अपने-अपने ईष्ट में अनुराग तो रखते थे लेकिन दूसरे को कम
नहीं बताते थे । गोस्वामी जी ने लगभग ६१ पद ऐसे लिखे हैं जो पूर्णतया भगवान
श्रीकृष्ण को समर्पित हैं । इन ६१ पदों का संग्रह ही श्रीकृष्ण गीतावली नामक ग्रंथ
के रूप में उपलब्ध हैं ।
कुछ लोग मूर्खता वश ऐसा
प्रचार करते हैं अथवा बोलते हैं कि जो लोग राम जी की भक्ति करते हैं वे बाद में
कृष्णजी के भक्त बन जाते हैं । लेकिन यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि श्रीकृष्ण
गीतावली गोस्वामी जी की अंतिम कृत नहीं है । गोस्वामी जी की अंतिम कृत विनय
पत्रिका है । इसमें आया भी है कि ‘जिवन अवधि अति नेरे’ ।
गोस्वामी जी के ईष्ट तो
रामजी थे लेकिन वे कृष्ण जी को भी राम जी का ही स्वरूप मानते थे । भेद नहीं करते
थे । विनय पत्रिका जी में गोस्वामी जी रामजी से कहते हैं कि - ‘सुर मुनि बिप्र
बिहाय बड़े कुल गोकुल जन्म गोप गृह लीन्हयो’ ।
हर कोई जानता है कि सूरदास जी आरंभ से ही भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे । लेकिन सूरदास जी ने भगवान श्रीराम को समर्पित २५० से अधिक पद लिखे हैं । अब कोई कहने लगे कि बाद में सूरदासजी राम जी के भक्त बन गए थे तो यह मूर्खता है । मूल बात क्या है कि सूरदास जी भी कृष्ण जी को राम जी को एक ही मानते थे ।
इसलिए ही सूरदास जी ने भगवान श्रीराम के लिए २५० से भी अधिक पद लिखे जो तुलसीदास जी द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के प्रति लिखे गए पदों से चार गुने से भी अधिक है । सूरदासजी द्वारा लिखे हुए भगवान श्रीराम को समर्पित पद सूर रामायण अथवा सूर राम चरितावली नाम से भी प्रसिद्ध हैं ।
इस प्रकार तुलसीदासजी और
सूरदासजी दोनों श्रेष्ठ भगवद भक्त थे । वे रामजी में और कृष्ण जी में भेद नहीं
मानते थे । किसी को छोटा-बड़ा नहीं मानते थे । लेकिन आजकल मूर्खता वश कई लोग अनर्गल
प्रलाप करते हैं ।
लेकिन यह सोचने और समझने वाली बात है कि आजकल क्या कोई तुलसीदासजी और
सूरदासजी से भी बड़ा भक्त और संत है ? इसका एक ही जबाब है-नहीं । तो फिर अनर्गल
प्रलाप करने की क्या जरूरत है ? लोगों को गुमराह करने की क्या जरूरत है ?
।। जय श्रीराम ।।
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