अगहन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को विवाह पंचमी भी कहा जाता है । क्योंकि आज के दिन ही भगवान श्रीसीताराम जी का विवाह सम्पन्न हुआ था ।
सबको पता है कि जनकपुर में बरात पहले
पहुँच चुकी थी । लेकिन जब मंगल मूल और समस्त सगुनों से परिपूर्ण हेमंत रितु के
अगहन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि आई तब भगवान श्रीसीताराम का विवाह सम्पन्न
हुआ-
मंगल मूल सगुन दिन आवा । हिम रितु अगहन मास सुहावा ।।
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श्रीरामचरितमानस ।
तभी से आज के दिन संत और भक्त विवाह महामहोत्सव मनाते हैं ।
मिथिला-जनकपुर में तो विशेष उत्सव होता ही है । पूरे देश में भगवान श्रीराम के
मंदिरों में विवाह पंचमी का आयोजन होता है ।
सूरदास जी कहते हैं कि भगवान
श्रीसीताराम के विवाह के समय जनकपुर में बहुत-अमित आनंद हुआ जिसका गायन श्री सुकदेव
जी ने पुराणों में किया है-
सूर अमित आनंद जनकपुर, सोइ सुकदेव पुराननि गायो ।
- सूरसागर ।
सूरदास जी कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने दूल्हा बनकर श्रीजनकनंदिनी
का पाणिग्रहण करके उन्हें सुख प्रदान किया
। यह सुनकर देव गण जय हो, जय हो ऐसा जय घोष करने लगे । जनकपुर के सभी नर
नारी प्रेम में मग्न हो गए-
पानि-ग्रहन रघुवर बर कीन्ह्यौ, जनकसुता सुख दीन ।
जय-जय धुनि सुनि करत अमरगन, नर-नारी लवलीन ।।
- सूरसागर ।
विवाह के उपरांत दशरथ जी चारों पुत्रों, चारों पुत्र बधुओं आदि के
साथ आनंद मग्न होकर अवधपुर आ गए । सभी को बहुत सुख मिला रहा है । कौसल्यादि माताएँ
थाल सजाकर आरती कर रही हैं । यह सुख देखकर देवता, मनुष्य, मुनिगण सभी आनंदित हो
रहे हैं । सूरदास जी महाराज इस सुख पर स्वयं बलिहार हो रहे हैं-
कौसिल्या आदिक महतारी, आरति करहिं बनाइ ।
वह सुख निरखि मुदित सुर नर मुनि, सूरदास बलि जाइ ।।
- सूरसागर ।
।। विवाह पंचमी की बधाई ।।
Jai Ho Seeta Ram ji ki
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