बहुत पहले एक पोस्ट में समझाया गया था कि हम भगवान को एक विंदु मान सकते हैं । और इस विंदु को केंद्र विंदु मानकर हम अलग-अलग त्रिज्या के एक-दो नहीं बल्कि अनंत वृत्त बना सकते हैं । यह सामान्य गणित की बात है ।
जिस वृत्त की त्रिज्या जितनी
बड़ी होगी वह वृत्त उतना ही बड़ा होगा और जो वृत्त जितना बड़ा होगा वह केंद्र विंदु से
उतना ही दूर होगा ।
इसी तरह जिस वृत्त की
त्रिज्या जितनी कम होगी वह वृत्त उतना ही छोटा होगा और जो वृत्त जितना छोटा होगा वह
उतना ही केंद्र विंदु के पास होगा ।
कक्षा पाँच स्तर की गणित का
ज्ञान रखने वाले भी इस बात को ठीक से समझ जाएँगे और अनुभव कर लेंगे कि जो वृत्त
जितना बड़ा होता है केंद्र से उसकी दूरी भी उतनी ही अधिक होती है और जो वृत्त जितना
छोटा होता है केंद्र से उसकी दूरी भी कम होती है । वृत्त का बड़ा अथवा छोटा होना
उसकी त्रिज्या पर निर्भर करता है । जिसकी त्रिज्या बड़ी वह वृत्त बड़ा और जिसकी
त्रिज्या छोटी वह वृत्त छोटा ।
इसमें एक रहस्य वाली बात यह है कि जिसकी त्रिज्या शून्य हो जाती है वह वृत्त केंद्र से एकाकार कर लेता है । अर्थात वह वृत्त केंद्र विंदु से मिलकर विंदु ही हो जाता है । यह भी सामान्य गणित की बात है ।
जिस प्रकार यहाँ केंद्र विंदु भगवान है ठीक उसी तरह अलग-अलग त्रिज्या
के वृत्त कुछ और नहीं पर भगवान के भक्त हैं । और त्रिज्या संसार-जंजाल है ।
ऊपर आया है कि जो वृत्त जितना
बड़ा होता है वह केंद्र विंदु से उतना ही अधिक दूर होता है अर्थात वह छोटा भक्त
होता है । इसी तरह जो वृत्त जितना छोटा होता है वह केंद्र विंदु के उतना ही पास होता
है अर्थात वह बड़ा भक्त होता है ।
इस प्रकार बड़ा भक्त छोटा बनकर भगवान के पास रहता है और छोटा भक्त बड़ा
बनकर भगवान से दूर रहता है ।
।। जय श्रीराम ।।
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