गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज भगवान श्रीरामजी से कहते थे कि हे नाथ आप केवल एक बार कह दो कि तुलसीदास मेरा है । बस इतने से ही मेरी बिगड़ी बन जायेगी । मुझे और कुछ पाना शेष नहीं रह जायेगा ।
पिछले पोस्ट में-कह्यो सो बहुरि कह्यो नहिं रघुवर में बताया गया है कि रामजी कोई बात एक बार ही बोलते हैं । और रामजी जो बोलते हैं वह हो जाता है । इसलिए गोस्वामी जी कहते थे कि हे नाथ आप बस एक बार कह दो कि तुलसीदास मेरा है ।
जिसे राम जी कह देंगे कि यह
मेरा है वह तो रामजी का हो ही जाएगा । और जो रामजी का हो जायेगा उसे फिर क्या पाना
शेष रह जायेगा ।
गोस्वामीजी कहते थे कि हे नाथ यदि मेरे दोषों, अवगुणों, पाप आदि को देखकर, जानकर आप को मुझसे कहने में संकोच हो रहा हो तो आप स्वंय न कहकर किसी और से कहलवा दीजिए कि तुलसीदास मेरा है ।
अब रामजी स्वयं कहें अथवा किसी और से कहलवा दें तो बात तो एक हुई । रामजी के कहने से भी बात बन जाएगी । ठीक इसी तरह से किसी दूसरे से कहलवा देने से कि तुलसीदास मेरा है तो भी बात बन जाएगी ।
रामजी किसी को कह दे अथवा किसी और से कहलवा दें कि तूँ मेरा है तो
इसका मतलब है कि रामजी ने उसे अपना लिया है, अपना बना लिया है । जिसे रामजी अपना
बना लें उसे और फिर क्या चाहिए ? रामजी ने गोस्वामीजी की प्रार्थना स्वीकार करके उन्हें
अपना बना लिया था ।
जीवन में भजन, साधन, सत्संग, जप, तप आदि का फल क्या है ? यही तो कि राम जी हमें अपना बना लें । यदि यह नहीं हो पाया तो समझो कुछ नहीं हुआ । कुछ नहीं हो पाया । केवल परिश्रम ही हाथ लगा ।
हम सबकी भी यही पार्थना होनी चाहिए कि हे रामजी आप हमें भी अपना बना
लो ।
मेरी अपने नाथ श्रीरघुनाथ जी के चरणों में यही पार्थना है कि हे नाथ
आप स्वयं कह दीजिए अथवा किसी और से ही कहलवा दीजिए कि दीन संतोष मेरा है ।
।। जय श्रीराम ।।
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