रावण को लोग भले ही विद्वान कहते और समझते हों लेकिन वह बड़ा मूर्ख भी था । यहाँ पर रावण की मूर्खता को सूरसागर के माध्मय से बताया जा रहा है । प्रसिद्ध संत और भक्त श्रीसूरदास जी महाराज अपने प्रसिद्ध ग्रंथ सूरसागर जी में कहते हैं कि अंगद जी ने रावण से कहा कि तूँ तो बड़ा मूर्ख है । और इतना बड़ा मूर्ख है कि स्वयं को रघुपति भगवान श्रीराम का शत्रु कहता और कहलवाता है ।
सूरदास जी कहते हैं कि
अंगद जी ने कहा कि जिन रामजी के नाम-जप से, ध्यान से तथा स्मरण से करोड़ों यज्ञ
करने का फल प्राप्त होता है । तूँ उन रामजी का शत्रु कहलाता है ।
देवर्षि नारद, सनकादि
महामुनि, असुर श्रेष्ठ प्रहलाद तथा भक्त बलि जिनका स्मरण करते हैं, मन-वाणी से
जिनका ध्यान करते हैं, वेद जिनके यश का गान ‘नेति-नेति’ कहकर करते हैं उन रामजी को
अपना शत्रु कहलाता है ।
सूरदास जी आगे कहते हैं कि अंगद जी ने कहा कि तूँ अपने को लंकेश
कहलाता है । और आगे भी कहलाता रहे इसके लिए केवल एक ही रास्ता है- ‘भगवान श्रीराम की
शरणागति’ । तुम जाकर उन कोशलपति भगवान से मिलो, जो शरणागतों के मनोभिलाषा को पूर्ण
करते हैं । श्रीसीताजी को देकर उन श्रीअवधेश के चरणों पर जा पड़ों । इस प्रकार
लंकेश कहलाते रहो । और कोई उपाय नहीं है ।
अर्थात जो तुम मूर्खता वश
रामजी का शत्रु कहलाते हो अब लंकेश भी नहीं कहलाओगे । अगर चाहते हो कि आगे भी
लंकेश कहलवाते रहो तो मूर्खता छोड़कर भगवान श्रीराम के चरणों की शरण ले लो ।
यहाँ पर सूरदास जी महाराज ने इस सिद्धांत को बताया है कि जो भगवान के
विमुख है वह चाहे विद्वान कहलवाता हो पर मूर्ख ही है-
मूरख रघुपति-सत्रु कहावत ?
जाके नाम, ध्यान, सुमिरन तें, कोटि जग्य-फल पावत ।।
नारदादि, सनकादि महामुनि सुमिरत मन-बच ध्यावत ।
असुर-तिलक प्रहलाद, भक्त बलि, निगम नेति जस गावत ।।
।। जय श्रीराम ।।
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